श्रीराम मंदिर पर चर्चा करने के पूर्व गहराई से अयोध्या को समझने का प्रयास करें।
अयोध्या की प्राचीनता एवं विशिष्टता
अयोध्या अति प्राचीन नगरी है , जिसका अस्तित्व वैदिक काल से माना जाता है। अथर्ववेद के दशम कांड में अयोध्या का सुस्पष्ट उल्लेख है -
अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।
तस्यां हिरण्यय: कोश: स्वर्गो ज्योतिषावृत:।।
अर्थात् इसमें आठ चक्र थे और बाहर आने-जाने के लिए नौ प्रमुख द्वार थे। पारंपरिक रूप से इसकी मान्यता देव नगरी के रूप में थी। इसमें स्वर्ण की अपार निधि थी। यह स्वर्ग के सदृश आनंदमयी और चमक-दमक से परिपूर्ण थी। प्रत्येक द्वार पर शक्तिसंपन्न रक्षक रहते थे। इसमें रहनेवाले देवताओं के तुल्य माने जाते थे। इस पुरी के निवासी इसे ही स्वर्गधाम समझते थे।
ब्रह्म पुराण और अग्नि पुराण में अयोध्या की गणना सात महापुरियों में की गई है। विश्व में हिंदुओं के सप्तपुरियों में अयोध्या प्रथम तीर्थ के रूप में प्रतिष्ठित हो गया -
अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवंतिका।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैता मोक्षदायिका:।।
(माया अर्थात् हरिद्वार एवं अवंतिका अर्थात् उज्जैन।)
भक्त तुलसीदास जी रामचरितमानस में " वंदना प्रकरण " के अंतर्गत लिखते हैं -
बंदउ अवध पुरी अति पावनि।
सरजू सरि कलि कलुष नसावनि।।
अर्थ - मैं अति पवित्र श्रीअयोध्यापुरी और कलियुग के पापों का नाश करनेवाली सरयू नदी की वंदना करता हूं।
ऋग्वेद के एक मंत्र में " इक्ष्वाकु " वंश का भी उल्लेख मिलता है।
महाकवि कालिदास ने रघुवंश में लिखा है कि इक्ष्वाकु वंश में एक श्रेष्ठ एवं प्रशंसनीय गुणोंवाले ककुत्स्थ नामक राजा हुए। उनके वंशधर काकुत्स्थ कहलाते थे। अतः वाल्मीकि रामायण में श्रीराम को काकुत्स्थ कहकर संबोधित किया गया है।
जिस स्थान पर राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया था, वह अयोध्या में है। भगवान राम जिस शिव मंदिर में शिव की उपासना करते थे , वह मंदिर अयोध्या में है। वे जिस देवी की उपासना करते थे , शक्ति का वह मंदिर अयोध्या में है।
अयोध्या केवल प्रभु श्री राम का ही जन्म स्थान नहीं है , वरन् भगवान राम के पूर्वजों का केंद्र भी अयोध्या रहा है।
जैन मत के पांच तीर्थंकरों - आदिनाथ , आदित्यनाथ , अभिनंदननाथ , सुमतिनाथ और अनंतनाथ - की जन्मभूमि भी अयोध्या रही है।
सिख मत के श्री गुरु नानक देव , श्री गुरु तेग बहादुर और श्री गुरु गोविंद सिंह अयोध्या में ठहरे थे। वहां नजरबाग और ब्रह्मकुंड दो गुरुद्वारे हैं , जिनमें उक्त तीनों गुरुओं की स्मृतियां सहेज कर रखी गई हैं।
नाथ योगियों का भी महत्वपूर्ण केंद्र अयोध्या रहा है। वहां के राजा समुद्रपाल योगी के बाद उनकी 17 पीढ़ियां ने राज किया।
अमीर खुसरो ने हिंदी और फारसी को मिलाकर
" खालिकबारी " नाम से एक शब्दकोश बनाया था , जो उसने अयोध्या में बैठकर ही लिखा था।
इस प्रकार हम देखते हैं कि गत हजार वर्षों के दौरान जितने भी प्रमुख मत-पंथ / संप्रदाय हुए हैं , उन सब का कोई-न-कोई महत्वपूर्ण स्थान अयोध्या में है।
1901 के आसपास अयोध्या में एडवर्ड नाम के जिलाधिकारी थे। उन्होंने एक सभा बनाई , उसे नाम दिया था - अयोध्या तीर्थ विवेचनी सभा। इसके अंतर्गत पूरे अयोध्या क्षेत्र का अध्ययन करके 148 स्थान निश्चित किए गए , जिनका अयोध्या से किसी न किसी तरह आध्यात्मिक या धार्मिक संबंध रहा था। उन सभी स्थानों पर उन्होंने पत्थर की एक बड़ी शिला लगवाई। पहली शिला रामकोट में लगी , जहां श्रीराम का अवतरण हुआ था। उस शिला को नाम दिया गया था - तीर्थ क्रमांक -1। इसी तरह सभी स्थानों पर अलग-अलग नाम से शिलाएं लगवाई गई थीं।
भारत की विविधताओं में एकात्मकता लाने के लिए ऋषि-मुनियों ने तीर्थों का विकास किया था। उन तीर्थों में अयोध्या सर्वोपरि है।
अगले अंक में प्रभु श्रीराम मंदिर पर हुए विदेशी आघात और हिंदुओं द्वारा उसके प्रतिकार पर प्रकाश डाला जाएगा।
मिथिलेश ओझा की ओर से आपको नमन एवं वंदन।
।। श्री राम जय राम जय जय राम ।।