जोरावर जोर से बोला, फतेह सिंह शेर सा बोला रखो ईंटें भरो गारे, चुनों दीवार हत्यारे!
सिख परम्परा के दशम गुरु, गुरु गोविन्द सिंह महाराज के पुत्र बाबा फतेह सिंह, जोरावर सिंह का बलिदान दिवस है। गुरु गोबिन्द सिंह के प्रकाश पर्व पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़ा ऐलान किया था। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ट्वीट में लिखा 'इस साल से 26 दिसम्बर की तारीख को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जायेगा।' दोनों वीर बालकों का बलिदान केवल एक दिन का कार्यक्रम मात्र नहीं है, वह बलिदान आज की नई पीढ़ी के लिए था। आज के नये भारत के लिए है। वो दोनों वीर बालक हमारे लिए प्रेरणा पुंज है की जिस 6 और 8 कि उम्र में आज के बच्चे खिलौनों और उनके परिवार पश्चिम को महान बताने में व्यस्त है उन दोनों बालकों ने अपने धर्म की रक्षा के लिए दीवारों में चुनवा लेना ठीक समझा। जब दीवारों में चुने जा रहे थे दोनों बालकों के चेहरों पर मुस्कुराहट थी और मुगलों के चेहरे पर खौफ। इतनी कम उम्र में उनका साहस अपने धर्म, परम्परा, सभ्यता के प्रति चिन्तन देख लगता है कि ईश्वर इन दोनों बालक के रूप में मुगलों की जड़ को हिला डालने के लिए अवतरण लिया था।
317 साल पूर्व क्रूर मुगल शासक औरंगजेब के काजी ने गुरु गोविन्द सिंह के दोनों पुत्रों पर फतवा जारी किया। फतवे में लिखा, ये बच्चे बगावत कर रहे हैं, इसलिए इन्हें जिन्दा ही दीवार में चुनवा दिया जाये'। औरंगजेब ने इनको इस्लाम मनवाने के लिए हर वो नाकाम प्रयास किया। औरंगजेब ने किले की सबसे ऊँची दीवार पर कपकपाती ठण्ड में दोनों बच्चों को नंगा करके रखा, लालच दिया, मौत का खौफ दिखाया साथ ही अन्य कई तरीकों से प्रताडि़त किया लेकिन फिर भी इन दोनों बच्चों ने इस्लाम धर्म को नहीं अपनाया। आप दूसरी ओर देखे तो औरंगजेब ने गुरु गोविन्द सिंह को हराने के लिए 'कुरान' की झूठी कसम खाई। गुरु गोविन्द सिंह को लिखे खत में औरंगजेब ने कहा था- 'मैं कुरान की कसम खाता हूँ, अगर आप आनन्दपुर का किला खाली कर दें, तो बिना किसी रोक-टोक के यहाँ जाने दूँगा।' गुरु गोविन्द सिंह को इस बात का अन्दाजा था कि औरंगजेब अपनी बात से मुकर सकता है, इसके बावजूद उन्होंने किले को छोडऩा स्वीकर किया और फिर वही हुआ जिसका डर था। मुगल सेना ने गुरु गोविन्द सिंह और उनकी सेना पर आक्रमण कर दिया। सरसा नदी के किनारे लम्बा युद्ध चला और गुरु गोविन्द सिंह का परिवार बिछड़ गया।
आज इस देश मे औरंगजेब और इस्लाम के नाम पर राजनीति करते बहुत से सेक्युलरिज्म के चैंपियन को देखा होगा। ऐसे बड़ी संख्या में मुस्लिम मतालम्बी जो औरंगजेब को अपना हीरो मानते है आदर्श मानते है। क्या उन्हें इस बात का जरा सा भी भान नही है कि यही औरंगजेब जिसने पवित्र 'कुरान' का मान भी नहीं रख सका अपितु उसके सामने दो छोटे बालक ने अपने धर्म के लिए बलिदान हो गये। औरंगजेब ने धर्म, इस्लाम, कुरान के नाम पर महाराष्ट्र से काशी तक तबाही मचाई। मन्दिरों के शिखर को तोड़ मस्जिद के गुम्बद बनाये। हिन्दू गाँवों को इस्लाम न कबूल करने पर मौत के घाट उतार दिये गये। हिन्दू महिलाओं का बलात्कार किये गये। छोटे-छोटे बच्चो और बुजुर्गों को काट दिया गया। आज भी दुर्भाग्य देखिये देश की राजधानी में सड़क का नाम 'औरंगजेब रोड' है। खैर, हिन्दू-सिख कोई अलग नहीं है। सिख वह है, जो गुरुओं की शिक्षाओं को मानता है, गुरुवाणी को मानता है, गुरु ग्रन्थ साहिब को मानता है। गुरु ग्रन्थ साहिब की शिक्षाओं को मानने वाला ही सिख है। हिन्दू वह है, जो हजारों साल पहले लिखे गये ग्रन्थों की शिक्षाओं को मानता है। इन ग्रन्थों में वेद, उपनिषद और पुराण शामिल हैं। जो इन ग्रन्थों को मानता है, वह हिन्दू है। जो इन ग्रन्थों की शिक्षाओं पर अमल करता है, वह हिन्दू है। दोनों धर्म की शिक्षावाणी एक समान है।
मतभेदों को मिटाकर हमें मिलकर रहना, लोभ को त्यागकर अपने हाथों से मेहनत और न्यायोचित तरीके से धन कमाना, किसी का हक नहीं छीनना और जरूरतमन्दों की मदद करना, स्त्री का आदर दोनों संस्कृति का मूल ज्ञान है। गुरुनानक देव ने 'एक ॐकार' का नारा दिया, हिन्दू धर्म मे ॐ का क्या महत्व है हमसब भली भांति जानते है। मेरा अपना अनुभव है पंजाब के बरनाला में धोला नामक गाँव है। इस गाँव में जितने भी सिख है वह खुद को ब्राह्मण बताते हैं क्योंकि वह ब्राह्मण परिवार से आते हैं। बरनाला के इस गाँव में 200 के करीब सिख परिवार रहते हैं जो खुद को सारस्वत ब्राह्मण बताते हैं और इन सभी के नाम भी ब्राह्मणों के नाम पर ही मौजूद हैं। इन सभी परिवारों का यह कहना है कि इनके पूर्वज ब्राह्मण थे और यह लोग यहाँ पर ब्राह्मण बनकर ही रह रहे हैं इनके घरों में भगवान कृष्ण, भगवान राम और गुरु गोविन्द सिंह व नानक समेत सभी हिन्दू सिख देवी देवताओं की तस्वीरें हैं। दिल्ली में कृष्णजन्माष्टमी उत्सव पर पंजाबी बाग स्थित गुरुद्वारे जाने का अवसर मिला जहाँ बड़े धूम धाम से कृष्णजन्माष्टमी उत्सव मनाया गया। देखे तो बड़ी संख्या में देश के हर कोने में हिन्दू गुरुद्वारा जाकर मत्था जरूर टेकता है। सिख संस्कृति में आस्था प्रगाढ़ है। प्रकाश पर्व जैसे बड़े उत्सव पर प्रेम की बानगी देखने को मिलता है। हिन्दू सिख एकता की मिसाल देखने को मिलता है।
'बाल दिवस' और 'वीर बाल दिवस' दोनों सुनने में एक सा लग रहा है पर इसके पीछे का सच गहरा है, बहुत कुछ कहता है। हैरानी होती है जब हर 14 नवम्बर बाल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस तिथि को लेकर हमेशा कई तरह के तर्क सुनने मिलता है कहा गया देश के प्रथम प्रधानमंत्री पण्डित जवाहरलाल नेहरू को बच्चो से बहुत प्रेम है और बच्चे भी प्रेम से पण्डित जी को 'चाचा नेहरू' कहते है इसलिए पण्डित जी के जन्मदिन को देश मे बाल दिवस के रूप मनाया जायेगा। उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में 14 नवम्बर 1889 को जन्म हुआ था जवाहरलाल नेहरू का। इस घोषणा पर आश्चर्य नहीं लेकिन इतिहास के पन्ने पलटे गये तो जानकारी मिली भारत में 1964 से पहले तक बाल दिवस 20 नवम्बर को मनाया जाता था, लेकिन जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद उनके जन्मदिन अर्थात 14 नवम्बर को 'बाल दिवस' के रूप में मनाने का फैसला कम्युनिस्ट समर्थित सरकार द्वारा किया गया।
कई देशों में एक जून को बाल दिवस के तौर पर मनाया जाता है। कुछ देश संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुरूप 20 नवम्बर को बाल दिवस मनाते हैं। 1964 से पूर्व भारत में भी 20 नवम्बर को ही बाल दिवस मनाया जाता था। लेकिन कम्युनिस्टो के तर्क को देखे तो हास्यास्पद भी लगता है चूंकि ये 'communist Party of India' है, इनका मूल चीन से है जिसके कारण ये कम्युनिस्ट हमारी संस्कृति परम्परा से जरा भी वाकिफ नही है। इन्हें पता ही नही की हमारी इस भारतीय संस्कृति में किसी भी छोटे बच्चे से हमारा लगाव अपने आप ही हो जाता है वो अपने परिवार का हो अथवा नही। हम अपने पड़ोसी या किसी अनजान बच्चे से लगाव उसी तरह रखते है जैसे कि वो अपने परिवार का है। फिर ऐसा क्या विशेष गूढ़ बाते थी की तिथि और कारण दोनों बदल दिए गए? देश में बाल दिवस के कई ऐसे कारण हो सकते थे जो विषय पर ठीक बैठते।
इनमें प्रमुखता से फतेह सिंह-जोरावर सिंह थे जो आने वाली युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनते। मेरा मानना है हम जैसा हीरो चयन करेंगे हमारा व्यक्तित्व, व्यवहार वैसा ही होगा। हमारी सोच वैसी ही होगी। हम उसी दिशा में कार्य करेंगे। पर तब की कम्युनिस्ट समर्थित सरकारों ने इस युवा पीढ़ी को अपने सही हीरो और इतिहास से कोसो दूर कर दिया। उन पन्नों को फाड़ दिए गए या जला दिए गए जिनमें गुरु गोविन्द सिंह के पुत्रों के नाम दर्ज थे। आज हम आजादी के अमृतकाल में प्रवेश कर चुके है, शताब्दी वर्ष की ओर बढ़ रहे है तब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 'वीर बाल दिवस' की घोषणा कर के धूल लग चुके उन इतिहास के पन्नो को फिर से उभारा है। आज का युवा जिसने कभी अपनी किताबो में फतेह सिंह- जोरावर सिंह का नाम नहीं पढ़ा या सुना होगा वो आज की तकनीकी माध्यम से उन नामो को ढूँढ़ रहा है। उन पन्नो को कुरेद रहा है। जब वो पन्ने खुलेंगे, उन वीरो की कथाएँ कही जायेंगी, पढ़ी जायेंगी तब नये प्रश्न उठेंगे और वो प्रश्न इस नये भारत को जड़ तक ले जायेंगे।