हरित भ्रांति के आगमन से पहले किसान खरपतवारों को इतनी घृणा की दृष्टि से नहीं देखते थे, जितनी आज देखते हैं। मिट्टी में उगने वाला प्रत्येक पौधा मिट्टी से पोषक तत्व लेता है। हमारे भारत के किसानों के पास इन खाद्य तत्वों को अपने आहार में बदलने की अद्भुत कला थी। अंग्रेज कृषिशास्त्री भी भारतीय किसानों के इस ज्ञान पर विश्वास करते थे।
पौधों के बीज (गेहूं, मक्का, बाजरा आदि) जिन्हें किसान सीधे भोजन के रूप में उपयोग कर सकते हैं, उन्हें मिट्टी में बोया जाएगा और उत्पादित होने पर भोजन के रूप में उपयोग किया जाएगा। इसी बीच खेत में कुछ पौधे अपने आप उग रहे थे, जिन्हें बाद में खरपतवार कहा जाने लगा किसान इन खरपतवारों (बाथू, पियाजी, खाबल आदि) को काटकर दुधारू पशुओं को खिलाता था और दूध को घी के रूप में भोजन में बदल देता था।
खरपतवार के पौधे (स्वांक, मन्ना, आदि) जो परिपक्व हो गए, उन्होंने अपने बीज मुर्गियों को खिलाए और उन्हें अंडे के रूप में भोजन में बदल दिया। कुछ खरपतवार (पुनरानवन, पित्त पापरा, भरिंगराज आदि) का उपयोग अपने और अपने जानवरों के स्वास्थ्य के लिए जड़ी-बूटियों के रूप में किया जाता था, इसलिए खेत में उगने वाला प्रत्येक पौधा किसान के लिए भोजन का स्रोत था। हरित भ्रांति के आगमन से किसान के मन में इन खरपतवारों के प्रति नफरत भर गई। इसका सबसे बुरा असर यह हुआ कि किसान को खरपतवारों की पहचान, गुण और उपयोग के बारे में जानकारी ख़त्म हो गई।
नीचे चित्र बड़े गोखरू व पुठकंडे का है जो कि खरपतवार नहीं बल्कि एक औषधियां हैं।