कागभुसुंडि जी गरुड़ जी को कथा सुना रहे हैं कि,।
है पक्षीराज गरुड़ जी।
मैंने अपने जीवन काल में घटित घटनाओं का वर्णन किया।
अब मैं तुम्हें सुनाता हूं।
कि, मुझे भी एक बार यह भ्रम हुआ था कि, शायद रामजी भगवान नहीं है।
और मैं ऐसा मानता हूं ।
कि यह भी भगवान की ही एक माया थी।
क्योंकि मैंने सदा निर्गुण ब्रह्म का खंडन किया था।
मैं एक ही बात कहता था।
पहले भगवान के दर्शन करूंगा।
फिर ज्ञान को समझूंगा ।
अब मुझे भगवान के दर्शन हो चुके थे।
संत कहते हैं कि, ऐसे लोगों के प्रेरणा स्रोत भी स्वयंम भगवान ही होते हैं।
परमात्मा मुझे ज्ञान की अनुभूति कराना चाहते थे।
इसीलिए भगवान की उस माया ने मुझे भ्रमित किया।
ताकि मैं, ज्ञान के माध्यम से भगवान को जान सकूं।
परमात्मा प्राप्ति में ज्ञान सर्व श्रेष्ठ है।
ज्ञान का स्थान सबसे ऊपर है।
लोमस ऋषि के आशीर्वाद से आकाशवाणी ने उनके वचनों को सत्य होने की पुष्टि कर दी थी।मुझे यह वरदान मिल चुका था। कि मेरे आश्रम के निकट सौ योजन तक माया नहीं व्यापेगी ।किंतु जब मैं राम जी की बाल लीला को देखने ,श्री राम जी के बाल रूप के दर्शन के लिए अयोध्या पुरी गया।
तब भगवान की उस माया ने मुझे भ्रमित कर दिया।
मैं अपनी मूर्खता की बातें तुम्हें बताता हूं।
*राम कृपा आपन जड ताई।*
*कहऊं खगेश सुनुहु मन लाई।।*
जब मैं अयोध्यापुरी में श्री राम जी के बाल रूप के दर्शन के आनंद ले रहा था।
छोटे से कौवे का शरीर धरकर मैं उनके भांति भांति के बाल चरित्र को देखा करता था।
*लघु बायस बपु धरि हरि संगा।*
*देखऊं बालचरित बहु रंगा।।*
श्री राम जी ठुमक ठुमक कर आंगन में चलते थे।
जहां-जहां जाते थे।
वहां वहां में साथ उड़ता था।
और आंगन में उनकी जो झूंठन पड़ती वह उठाकर खाता था।
*लरिकाई जंह जंह फिरहिं।*
*तंह तंह संग उड़ाऊं,*
*जूठनि परइ अजिर मंह,*
*सो उठाइ करि खाऊं।।*
किंतु जब एक बार मैंने देखा।
कि श्री राम जी को भूख लग रही है ।
और कौशल्या माता से भोजन मांग रहे हैं।
भोजन के लिए राम जी रो रहे हैं।
तब मुझे यह भ्रम हुआ।
कि क्या यही ब्रह्म है।?
यही परमात्मा है ?
जो जगत का पालन करते हैं?
जगत को भोजन देते हैं?
और स्वयं रोटी के लिए रो रहे हैं। कहीं मैं धोखा में तो नहीं हूं ।?जिसे मैं परमात्मा मान रहा हूं यह कोई साधारण राजा के राजकुमार तो नहीं है?
ऐसा मेरे मन में संसय हो गया।
मेरे मन में इस तरह का संसय आते ही रघुनाथ जी की वह माया मुझ पर छा गई।
*एतना मन आनत खगराया।*
*रघुपति प्रेरित व्यापी माया।।*
और उस संशय को लेकर मैं वहां से उड़ा।
मन में विचार आया कि कहीं किसी से जाकर पूछूंगा।
किंतु बड़ा आश्चर्य कि।
राम जी की वह नन्ही भुजाएं। मेरे पीछे लग गई ।
राम जी के वह नन्हे नन्हे हाथ केवल मुझ से दो ऊंगल की दूरी पर थे।
मैं जहां-जहां गया।
वहां वहां उस भुजा ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा ।
मैं लौटकर वहीं अयोध्यापुरी में गया।
राम जी के चरणों में लेट गया। और कहा प्रभु मैं सब कुछ जान गया।
मैं सब कुछ जान गया हूं ।
श्री राम जी ने मुस्कुराते हुए पूछा क्या जान गए हो?
तब मैंने कहा प्रभु सब जगह आप हो, सब जगह आप ही की सत्ता है ।
जहां मैं हूं वही आप हो।
सारे संसार में आप ही व्याप्त हो श्री राम जी ने मुझसे कहा ।
काग भुसुंडी ।
अभी तुम मुझे पूरी तरह नहीं जाने हो ।
अब तुम मेरे भीतर जाकर देखो। ऐसा कहकर भगवान हंसे।
और मैं उनके मुख में चला गया।
*मोहि बिलोकि राम मुसुकाही।*
*बिहंसत तुरत गयऊं मुख माहीं।।*
भगवान के मुख में जाने के बाद मैंने सारे ब्रह्मांड को भगवान के मुंह में देखा।
*उदर माझ सुनु अंडज राया।*
*देखेऊं बहु ब्रह्मांड निकाया।।*
बड़ा आश्चर्य था ।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था। कि अयोध्यापुरी में राम जी है ।
या राम जी मे अयोध्या पुरी है।
काग भूसुंडी जी गरुड़ जी से कहते हैं।
है पक्षीराज ।
मैंने जो कभी देखा नहीं ,सुना नहीं ।
जो मन में समा नहीं सकता। जिसकी कभी कल्पना नहीं की जा सकती।
वह सब अद्भुत सृष्टि मैंने श्री राम जी के उदर में देखी।
*जो नहीं देखा नहिं सुना।जो मनहूं ना समाय,सो सब अद्भुत देखऊं ,बरनि कवन विधि जाइ।।*
*अब राम कथा का अंतिम प्रसंग अगली पोस्ट में जय श्री राम।।*🙏🙏