*गयऊ गरुड़ जहां बसइ भुसुंडा।*
*पक्षीराज गरुड़ जी वहां गए जहां*
कागभुशुण्डि जी प्रतिदिन राम कथा का वर्णन करते हैं।
कागभुशुण्डि जी कथा प्रारंभ करने ही वाले थे ।
तब गरुड़ जी ने वहां प्रवेश किया।
और जैसे ही गरुड़ जी ने उस आश्रम में प्रवेश किया।
तो मन प्रशन्न हो गया।
*माया मोह अज्ञान सब चला गया।*
कागभुशुण्डि जी के आश्रम में राम कथा श्रवण करने के लिए सारे बूढ़े पक्षी आए हुए थे।
*बृद्ध बृद्ध बिहंग तंह आए।*
*सुनै राम के चरित सुहाए।।*
गरुड़ जी का अपने आश्रम में प्रवेश देखकर कागभुशुण्डि जी ने उनका बड़ा आदर किया।
और बैठने के लिए सुंदर आसन दिया।
*अति आदर खगपति करि कीन्हा।*
*स्वागत पूछिं सुआसन दीन्हा।।*
कागभुशुण्डि जी अपने मन में बड़े प्रसन्न हो रहे हैं ।
कि भगवान की कृपा से आज मुझे गरुड़ जी की उपस्थिति में सत्संग करने का अवसर मिला है।
गरुड़ जी से पूंछने लगे।
है पक्षी राज गरुड़ जी आपने जो यहां आने की कृपा की है।
उसका प्रयोजन क्या है?
आप यहां किस प्रयोजन से आए हैं?
गरुड़ जी ने कहा मेरे आने का प्रयोजन तो यहां आते ही समाप्त हो गया।
मेरा अज्ञान सब चला गया।
मेरा सब संसय दूर हो गया।
अब तो आपसे केवल यही विनती है कि मुझे प्रेम सहित राम कथा सुनाइए।
मैं श्री राम कथा श्रवण करना चाहता हूं ।
तुम्हारी बढ़ाई स्वयं भगवान शिव करते हैं।
भगवान शिव तुम्हारे द्वारा सुनाई गई रामकथा को यहां आकर श्रवण करते हैं।
वही रामकथा आप मुझे सुनाने की कृपा करें।
कागभुशुण्डि जी ने गरुड़ जी के निवेदन पर श्री राम कथा का वर्णन किया ।
नारद मोह से लेकर लंका विजय और अयोध्या में रामराज्य की स्थापना तक का वर्णन किया।
गरुड़ जी ने कागभुशुण्डि जी का बहुत बहुत आभार माना। धन्यवाद किया ।
रामकथा श्रवण करने के पश्चात गरुड़ जी ने कहा है कागभुशुण्डि जी।
जिस पर राम जी की कृपा होती है उसे ही सत्संग का लाभ मिल पाता है।
छाया की अनुभूति का सुख वही जानता है जो धूप से तपा हुआ हो आज मैंने वह सुख पाया है।
यदि मुझे मोह न होता तो आज मैं आपसे कैसे मिल पाता।
मेरे संसय का निवारण कैसे हो पाता।
जौं नहिं होत मोह अति मोही।
मिलतेंऊ तात कवन विधि तोही।।
शुद्ध संत उसी को मिलते हैं जिन पर रामजी कृपा करते हैं।
संत बिसुद्ध मिलहिं परि तोही।
चितवहिं राम कृपा करि जेही।।
कागभुसुंडि जी ने कहा है पक्षीराज गरुड़ जी।
न तुम्हें किसी तरह का संसय है ना मोह है ।
यह सब भगवान की माया ही थी। इस बहाने भगवान ने तुम्हारे अंदर संसय प्रकट करके मुझ तक आने को प्रेरित किया ।
और इस बहाने श्री राम जी ने मुझे बढाई प्रदान की है।
*तुम्हहि न संसय मोह न माया।*
*मों पर नाथ कीन्ह तुम्ह दाया।*
*पठइ मोह मिस खगपति तोही।*
*रघुपति दीन्हि बढ़ाई मोही।।*
कागभुशुण्डि जी गरुड़ जी को वर्णन करके सुनाते हैं।
कि, तुम्हें जो मोह संसय हुआ वह कोई आश्चर्य का विषय नहीं है।
मोह ने किसे अंधा नहीं किया।?
काम को किसने नहीं सताया।?
क्रोध ने किसका हृदय नहीं जलाया है।?
संसार में ऐसा कौन है जिसकी लोभ ने मट्टी पलीद न की हो। ? प्रतिष्ठा प्रकार किसे अभिमान न हुआ है।?
ऐसा कौन है जिसे मृग नयनी युवति के नेत्रवाण ना लगे हों। ?
सत रज तम यह तीनों गुण
किसे नहीं व्याप्ते हैं ।?
अहंकार ने किसै अछूता छोड़ा है?
ममता ने किसके यश का नाश नहीं किया है।?
ममता रूपी सांप ने किसे नहीं खाया है।?
जगत में ऐसा कौन है जिसे माया न व्यापती हो।?
भगवान की यह माया बड़ी बलवान है।
यह सब गुण दोष माया के परिवार की भांति हैं।
इससे शिवजी ब्रह्मा जी भी डरते हैं ।तो दूसरे जीवों की तो गिनती ही क्या है।
यह माया भगवान की दासी है। किंतु राम जी की इच्छा के बिना
यह किसी को छूती भी नहीं है।
श्री राम जी वही सच्चिदानंद घन परमात्मा है।अजन्मा है अविनाशी है।
सर्व व्यापक अखंड अनंत संपूर्ण अमोघ शक्ति जिसकी शक्ति कभी व्यर्थ नहीं होती है।
है पक्षीराज गरुड़ जी भगवान के भजन के बिना क्लेशों का निवारण नहीं होता है।
बिनु हरिभजन न जाइ कलेशा।।
है पक्षीराज गरुड़ जी
राम जी की महिमा को केवल वही जान पाता है ।
जिस पर रामजी कृपा करते हैं।
कोई कितना ही ज्ञानी क्यों न हो
बिना रामजी की कृपा से वह इस मर्म को नहीं जान पाता है।
*राम कृपा बिनु सुनु खगराई।*
*जानि न जाइ राम प्रभुताई।।*
ऐसी बात नहीं है कि यह संसय केवल तुम्हें हुआ है।
यह संसय तो बड़ों बड़ों को हुआ है।
जगत जननी मां सती माता को यह संसय हुआ है।
मुझे भी एक बार यह संसय हुआ है।
और यह संसय मुझे अयोध्या पुरी में रहते हुए हुआ है।
*यह कथा मैं तुम्हें विस्तार से बताऊंगा।*
*यह प्रशंग अगली पोस्ट में जय श्रीराम।।*🙏🙏