जय श्री राम।।
देव ऋषि नारद जी बताते हैं कि, यह विषय लंका का है।
जब श्री राम जी ने नरलीला करते हुए अपने आप को मेघनाथ के हाथों नागपास के बंधन में बंधा लिया।
*ब्यालपास बस भये खरारी।*
रामजी बंधन में बंध गए।
नारद जी तो ऐसे मौके की तलाश में ही रहते हैं।
नारद जी तुरंत गरुड़ जी के पास गए।
और कहा गरुड़ जी भगवान संकट में है।
ब्याल पास के बंधन में बंध गए हैं तुम ही हो जो उन्हें मुक्त कर सकते हो।
तुम जल्दी चलो देर मत करो। गरुड़ जी चल दिए ।
तुलसीदास जी लिखते हैं।
*गरुड़ महा ज्ञानी गुण राशि।*
*श्रीपति पुर बैकुंठ निवासी।।*
तुलसीदास जी ने इस पूरी पंक्ति में कहीं भक्ति का उल्लेख नहीं किया।
केवल ज्ञान का उल्लेख किया। ज्ञानी गरुड़ जी गए।
मानो ज्ञानाभिमानी गरुड़ जी गए अब यहां बड़ी अद्भुत बात लिखी गई है।
*खगपति सब धरि खाए ।*
*माया नाग बरूथ।।*
माया के सांपों को गरुड़ जी ने खा लिया ।
माया का अर्थ है जो ना हो।
जो दिखे वैसा ना हो वही माया है।
भगवान बंधन में बंधे हुए दिख रहे थे।
किंतु थे नहीं ।
और गरुड़ जी ने उन सांपों को खा लिया।जो थे ही नहीं।
माया के उन नागो को गरुड़ जी ने खा लिया।
भगवान की माया ने गरुड़ जी को भ्रमित कर दिया।
अब गरुड़ जी विचार करने लगे।
क्या सचमुच राम जी भगवान है।?
क्या सच में नागपास के बंधन में बंध गए हैं।?
भव बंधन से मुक्त करने वाले स्वयं भगवान बंधन में बंध गए ।जो सबको मुक्त करते हैं।
उनको मैंने मुक्त किया।
यदि मैं नहीं जाता तो इन्हें कौन बंधन से मुक्त करता।?
गरुड़ जी विचार करने लगे।कि
शंकर भगवान कहते हैं कि राम जी भगवान हैं।
वेद पुराण कहते हैं कि राम जी भगवान है ।
और भगवान को बंधन से मुक्त मैंने किया।
राम जी भगवान है भी या नहीं? ऐसा तो नहीं यह साधारण इंसान है ।?
मैं यूं ही इन्हें भगवान मान रहा हूं?।
लेकिन अब मैं पूछूं किससे ?
गरुड़ जी को मन में संसय हो गया ।
गरुड़ जी को संसय हुआ।
नारद जी मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए ।
वह तो इसी अवसर की तलाश में थे ।
नारद जी मन ही मन प्रसन्न हो रहें हैं कि जो बीमारी मुझे कई बार हुई है।
वही बीमारी आज गरुड़ जी को हो गई है।
अब बड़ा मज़ा आयेगा।
अब नारद जी प्रचार करने लगे। कमाल हो गया कमाल हो गया। अद्भुत आश्चर्य ।
गरुड़ जी को काट लिया।
गरुड़ जी को काट लिया।
किसी ने पूछा ?
भाई किसने काट लिया गरुड़ जी को?
नारद जी बोले।
गरुड़ जी को सांप ने काट लिया।
किसी ने कहा क्या बात कर रहे हो?
बड़ा आश्चर्य है यह तो।
गरुड़ जी तो स्वयं सांपो का भक्षण करते हैं।
इनको सांप ने कैसे काट लिया?।
नारद जी बोले सही कह रहा हूं।
नारद जी को संसय के सर्प ने काट लिया है।
संसय सर्प ग्रसहिं मोहि ताता।।
संत कहते हैं।
यह संसय रुपी सर्प बड़े बड़े ज्ञानियों को भी भीतर ही भीतर काटता रहता है।
कि राम जी भगवान है कि नहीं? ।?है कि नहीं? हैं की नहीं।?
यह ज्ञानी लोग बड़े भ्रमित रहते हैं।
यह न तो सच्चे मन से भगवान को मानते हैं।
न हि पूरी तरह छोड़ते हैं।
सदा भ्रमित रहते हैं।
एक महात्मा जी ऐसे ही एक ज्ञानाभिमानी , व्यक्ति का किस्सा सुना रहे थे।
वह ज्ञान का अभिमान रखने वाला व्यक्ति।
हमेशा भगवान का खंडन करता था ।
सबसे कहता फिरता था।
कि भगवान न था,न है,न होगा।
हमेशा खंडन करता था।
किंतु एक दिन उसके कुरते की जेब में माला निकली।
किसी ने उससे कहा ।
जब तुम भगवान को मानते ही नहीं हो।
तो फिर यह माला लेकर क्यों घूमते हो?
उसने सफाई देते हुए कहा।
कि वैसे तो भगवान है नहीं।
और कभी-कभी लगता भी है कि शायद हो।
तो माला भी फेर लेता हूं।
क्योंकि यदि नहीं हुए तब तो कोई बात नहीं ।
और यदि हुए तो सबसे ज्यादा हालत खराब हम जैसे लोगों की ही होगी ।
इसलिए माला भी फेर लेता हूं।
ताकि कहने को हैं जायेगा।
कि यदि खंडन करता था तो माला भी तो फेरता था।
तुम्हारा नाम भी तो लेता था ।क्षमा करो प्रभु ।
संत कहते हैं यह हालत है,
ज्ञानाभिमानी लोगों की।
अब गरुड़ जी नारद जी के पास पहुंचे।
और जाकर सीधे यही पूछा ?नारद जी बताओ?
राम जी भगवान है या नहीं ?
मुझे बड़ा संसय हो रहा है।
तुम मेरे संसय का निवारण करो।
तुम ही मेरे संसय को दूर कर सकते हो।
नारद जी मन ही खुश होते हुए
बड़ी सहानुभूति जताते हुए बोले ।देखो मेरा तो केवल एक मुख है जिससे मैं केवल भगवान का गुणगान करता रहता हूं।
तुम एक काम करो ।
ब्रह्मा जी के पास जाओ।
उनके चार मुख हैं।
वह तुम्हें विस्तार से समझा पाएंगे ।
गरुड़ जी को और अभिमान हो गया ।
उन्हें लगा कि मेरा प्रश्न बड़ा महत्वपूर्ण है।
जिसका उत्तर नारद जी के पास भी नहीं है।
इन्होंने मुझे ब्रह्मा जी के पास भेजा है।
ठीक है जाता हूं ब्रह्मा जी से पूछूंगा ।
अब गरुड़ जी ब्रह्मा जी के पास चल दिए ।
ब्रह्मा जी के पास पहुंचने पर गरुड़ जी ने ब्रह्मा जी को प्रणाम किया ।
और जाकर कहा ब्रह्मा जी।
मैं एक महत्वपूर्ण प्रश्न लेकर आपके पास आया हूं।
मुझे यह समझाओ ,राम जी भगवान है या नहीं?
ब्रह्मा जी ने कहा पहले तुम मुझे यह बताओ ?
तुम्हें मेरे पास भेजा किसने है? गरुड़ जी ने कहा कि मुझे आपके पास नारद जी ने भेजा है।
ब्रह्मा जी बोले हां मैं समझ रहा था।
मेरा हनुमान सही था ।
यह काम नारद ही कर सकता है ठीक है।
*इसके आगे की कथा अगली पोस्ट में जय श्री राम।।*🙏🌷