माया से परेशान जीव कहता है।
अब परेशान हो गए।
रास्ता बताओ।
भगवान की इस माया के आगे तो ब्रह्मा विष्णु महेश भी नाचते हैं।
हम करें क्या? कुछ तो उपाय बताओ।
किसी ने कहा ज्ञान प्राप्त करलो।
भगवान कहते हैं।
ज्ञान एक दीपक है ।
उसको जलाना बड़ा कठिन है।
और यदि कोई यत्न करके इसे जला भी ले ।
तो इसका जलते रहना टिक पाना कठिन है।
*ज्ञान अगम प्रत्यूह अनेका।*
*साधन कठिन न मन कहुं टेका।।*
जलाना इसलिए कठिन है कि,।
इसे जलाने के लिए बाती की आवश्यकता होती है।
और बिना घी के वह बाती जल नहीं पाती है।
इस घी को तैयार करने के लिए बहुत यत्न करना पड़ता है।
सबसे पहले तो श्रद्धा रूपी गाय चाहिए।
और वह गाय नियम रूपी घास का सेवन करें।
इसके पश्चात् भाव रूपी बछड़े को जन्म दे।
निर्मल मन रूपी ग्वाला इसके दूध का दोहन करें।
उस दूध को जामण देकर दहीं बनायें।
फिर उसे बिलोकर मक्खन तैयार करें।
फिर कहीं जाकर घी तैयार होता है।
फिर उस घी को तपस्या की अग्नि में गर्म करना होता है।
फिर हृदय में सोहं रूपी ज्योति प्रज्वलित करना पड़ती है।
फिर बाती को जलाना होता है।
*सोहं कृति इति दीप अखंडा।*
*दीप सिखा सोई परम प्रचंडा।।*
कितना कठिन काम है इस दीप को जलाना।
और कोई यदि इसे जला भी लेता है।
तो रखता कहां है? हृदय में।
और यह मानव देह दरवाजे वाला शरीर है।
इसमें दरवाजे ही दरवाजे हैं।
पता नहीं किस दरवाजे से हवा का झोंका आ जाए।
और इस दीपक को बुझा जाए।
इस दीपक को बुझने में एक पल नहीं लगता है।।
क्योंकि प्रत्येक दरवाजे पर देवता का वास है।
बिना देवता के कोई इंद्रियां कार्य नहीं करती है।
इन इंद्रियों के देवताओं को भगवान का भजन प्यारा नहीं होता है।
इनकी सदा विषय भोग पर प्रीति होती है।
किसी ने एक महात्मा जी से प्रश्न किया की।
क्या प्रमाण है इंद्रियों पर देवताओं का वास है।
और यह भोग के प्रति आसक्त होते हैं।?
महात्मा जी ने कहा प्रमाण है।
रसना के देवता वरुण है।
और यह व्यवहारिक जगत में देखने में भी आता है।
लोगों को कहते हुए भी सुना है।
कि, स्वादिष्ट मिठाइयां देखकर मेरे मुंह में पानी आ गया।
यह प्रमाण ही तो है।
कोई यह तो नहीं कहता है की स्वादिष्ट मिठाइयां देखकर मेरे मुंह में हवा भर गई।
मुंह में पानी आ गया।
क्योंकि रसना के देवता वरुण है।
विषय भोग पर प्रीति सदा ही।
इन इंद्रियों के देवताओं को विषय भोग प्यारा होता है।
*आवत देखहिं विषय बयारी।*
*ते अति देखि कपाट उघारी।।*
विषय भोग को देखकर यह तुरंत दरवाजा खोल देते हैं।
दरवाजा खुलते ही
हवा का झोंका प्रवेश करके इस दीपक को बुझा जाता है।
भगवान कहते हैं बहुत कठिन काम है यह।
फिर भी यदि कोई इस ज्ञान रूपी दीपक को जला लेता है ।
तो भक्तिहीन होने का कारण वह मुझे प्रिय नहीं होता है।
*करत कष्ट बहु पावइ कोऊ।*
*भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ।*
भगवान कहते हैं ।
इसलिए भक्ति करो।
ज्ञान के चक्कर में मत रहो।
मेरी भक्ति सब सुखों को देने वाली है। और स्वतंत्र है।
मेरी भक्ति को छोड़कर मनुष्य केवल ज्ञान चाहता है तो यह तो वैसा ही है ।
जैसे दूध देने वाली कामधेनु को छोड़कर मनुष्य बिना ब्याहने वाली गाय को प्राप्त करना चाहता है।
इसलिए भक्ति करो।
किंतु यह मेरी भक्ति भी बिना सत्संग के मनुष्यों को प्राप्त नहीं हो पाती है।
भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी।
बिनु सत्संग न पावहिं प्रानी।।
भगवान कहते हैं ।
बिना पुण्यों के प्रभाव के संतों का सानिध्य भी नहीं मिल पाता है।
और जब तक जीवन में सत्संग नहीं आएगा।
संतों का सानिध्य नहीं मिल पाएगा ।
तब तक जीवन मरण का अंत नहीं हो सकता है।
*पुन्य पुंज बिनु मिलहि न संता।*
*सतसंगति संसृति कर अंता।।*
जिस तरह श्रीमद् भागवत गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन को कुछ गुप्त रहस्य बताते हैं।
इसी तरह भगवान रामचरितमानस में एक गुप्त रहस्य बताते हैं।
भगवान कहते हैं कि जब तक कोई भगवान शंकर का भजन नहीं करता है।
उनकी आराधना नहीं करता है।
तब तक मनुष्य मेरी भक्ति को पा भी नहीं सकता है।
*औरउ एक गुपुत मत,सबहि कहऊं कर जोरि,संकर भजन बिना नर,भगति न पावई मोरि।।*
अब यहां प्रश्न यह आता है कि,
भगवान शंकर की भक्ति के बिना परमात्मा को प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
तो क्या राम-राम जपना छोड़कर शिवजी का जाप करें?
संत कहते हैं।
भगवान शिव गुरु है।
ऐसा वेदों ने कहा है ।
वेदों में भगवान शिव को त्रिभुवन का गुरु माना है।
*तुम त्रिभुवन गुरु वेद बखाना।।*
रामजी का भी कहने का आशय यही है ।
कि बिना गुरु के मुझे प्राप्त करना सम्भव नहीं है।
भगवान को प्राप्त करने की युक्ति केवल गुरु ही बता सकता है।
भक्ति मार्ग में कुछ भी परिश्रम नहीं है।
इसमें योग जप तप उपवास कुछ भी आवश्यक नहीं है।
केवल यहां इतना आवश्यक है कि ।
व्यक्ति का सरल स्वभाव हो।
मन में कुटिलता ना हो ।
और जो कुछ मिले उसी में सदा संतोष रखें।
*सरल स्वभाव न मन कुटिलाई।*
*जथा लाभ संतोष सदाई।।*
भगवान और आगे बताते हैं।
संत जनों के संसर्ग से जिन्हें सत्संग से प्यार हो।
*प्रीति सदा सज्जन संसर्गा।*
*स्वर्ग के सुख को भी तृण के समान समझता हो।*
*तृन सम बिषय स्वर्ग अपवर्गा।।*
भगवान कहते हैं कि जो मेरे नाम का पारायण हो जाता है ममता मद और मोह से रहित हो जाता है उसका सुख वही जानता है।
वह परम आनंद को प्राप्त होता है।
*मम गुन ग्राम नाम रत,गत ममता मद मोह,ता कर सुख सोइ जानइ,परानंद संदोह।।*
जय श्री राम।।
*इसके आगे अगली पोस्ट में।*
*जय श्री राम।।*🏹🚩