श्री राम जी सिंहासन पर विराजमान हुए।
चारों वेदों ने ब्राह्मणों का रुप धारण करके भगवान की स्तुति की।
राम राज्य की महिमा का रामचरितमानस में गोस्वामी जी श्री तुलसीदास जी महाराज ने बड़ा सुंदर वर्णन किया है।
राम राज्य में दैहिक दैविक भौतिक यह तीनों ताप किसी को नहीं व्यापते थे।
सब नर नारी आपस में नीति का मर्यादा का पालन करते हुए अपने-अपने धर्म का निर्वाह करते थे।
*दैहिक दैविक भौतिक तापा।*
*रामराज नहिं काहहु ब्यापा ।।*
*सब नर करहिं परस्पर प्रीति।*
*चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।*
राजनीति में शत्रुओं को जीतने तथा चोर डाकू आदि का दमन करने के लिए साम दाम दंड और भेद चार नीतियां अपनाई जाती है।
किंतु राम राज्य में केवल दो ही नीति थी।
*साम और दाम।*
किसी ने कहा दंड और भेद यह क्यों नहीं थे?कहां चले गए थे?
संत कहते हैं दंड और भेद इन दोनों नीतियों की आवश्यकता ही नहीं थी।
दंड केवल सन्यासियों के हाथ में रहता था।
और भेद केवल सुरताल के लिए प्रयोग किया जाता था ।
जैसे सुरताल में भेद होता है। अलग-अलग सुरों के अलग-अलग नाम है।
नृत्य होता है ।
नृत्य में भी अलग-अलग नाम से भेद है।
कुचिपुड़ी नृत्य कत्थक नृत्य आदि।
इस तरह यह भेद शब्द केवल सुरताल और नृत्य आदि के लिए प्रयोग किया जाता था ।
दंड और भेद की दूसरी आवश्यकता नहीं थी।
क्योंकि राम राज्य में कोई शत्रु ही नहीं था।
इसलिए किसी को जीतने की आवश्यकता ही नहीं थी ।
इसलिए दंड की आवश्यकता नहीं थी।
*दंड जतिन्ह कर भेद,जंह तंह नर्तक नृत्य समाज।*
*जीतहु मनहि सुनित असरामचंद्र कें राज।।*
गोस्वामी जी श्री तुलसीदास जी महाराज ने बड़ा सुंदर वर्णन किया है।
सूर्य भगवान भी उतना ही तपते थे। जितनी आवश्यकता होती थी।
और तो और पानी के भरे बादल घूमते रहते थे।
आवश्यकता होने पर ही पानी गिराते थे।
ऐसा नहीं कि जब इच्छा हो तब बरसने लगे।
तुलसीदास जी महाराज ने लिखा भी है
*बिधु महि पूर मयूखनिह रवि तप जैएतन्हि काज मांगे बारिद देहिं जल रामचंद्र के राज।।*
राम जी के राज्य में कूलर पंखा बिजली जैसे कोई आधुनिक यंत्र नहीं थे।
जरूरत ही नहीं थी।
अत्यधिक गर्मी होती ही नहीं थी।
जितनी आवश्यकता होती बस उतनी गर्मी सर्दी होती थी।
एक सज्जन एक महात्मा जी से कहने लगे।
राम राज्य में सब सुख सुविधाओं का वर्णन है।
किंतु अस्पतालों का वर्णन नहीं है।
योग्य चिकित्सकों का कोई वर्णन नहीं।
कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि बहुत सुंदर और सस्ते अस्पताल थे ।
जहां तुरंत उपचार होता था।
और बहुत योगय डॉक्टर होते थे। जिनकी बहुत कम फीस हुआ करती थी।
जो मरीज को तुरंत आराम पहुंचा देते थे।
ऐसा कहीं लिखा नहीं है श्री
तुलसीदास जी ने।
महात्मा जी ने कहा भाई।
जब राम राज्य में कोई बीमार ही नहीं होता था।
तो वहां अस्पतालों की क्या आवश्यकता थी।
छोटी अवस्था में किसी की मृत्यु ही नहीं होती थी।
और न ही किसी तरह का कोई रोग होता था।
*अल्प मृत्यु नहीं कवनिउ पीरा।।*
फिर क्या आवश्यकता अस्पतालों और डाक्टरों की।
वह सज्जन बोले हां बात तो आपकी सही है।
कितु अदालतों का भी तो वर्णन नहीं है।
महात्मा जी ने कहा भैया।
जब आपस में किसी का कोई बैर ही नहीं था । कोई झगड़ते ही नहीं थे।
तो वहां अदालतों की क्या आवश्यकता थी।
अंतर्मन का भेद ही नहीं था लोगों में ।
रामराज में सब भेदभाव मिट गए थे।
*बयरु न कर काहू सन कोई।*
*राम प्रताप बिषमता खोई।।*
सब बैर भाव भुलाकर प्रेम से रहते थे।
मनुष्यों की कौन कहे।
हाथी और सिंह में कोई बैर भाव नहीं था ।
सब एक साथ रहते थे।
पशु पक्षी सभी ने अपने स्वाभाविक बैर को भुलाकर आपस में मित्रता कर ली थी।
प्रेम बढ़ा लिया था।
*खग मृग सहज बयरु बिसराई।*
*सबनिह परस्पर प्रीति बढाई।।*
श्री तुलसीदास जी महाराज लिखते हैं कि,। राम राज्य की सुख संपत्ति का वर्णन शेष जी और सरस्वती जी भी नहीं कर सकते हैं।
*राम राज कर सुख संपदा।*
*बरनि न सकई फनीस सारदा।।*
*इसके आगे अगली पोस्ट पर।जय श्री राम।।*🙏🙏