जय श्री राम।।
श्री राम जी ने कुंभकरण का वध किया और कुंभकरण का वह तेज भगवान के मुख में समा गया ।
भगवान ने कुंभकरण को अपने में लीन कर लिया।
इन प्रसंगों को पढ़कर हमारे मन में यह प्रश्न उठता है ।
कि भगवान ने ऐसे दुष्ट राक्षसों को भी अपने में लीन कर लिया। उन्हें अपना परमधाम दिया। जबकि इनको तो कठोर दंड मिलना चाहिए था ।
मारीच ने भी मायावी मृग बनकर छल कपट किया था ।
भगवान ने उसे भी अपना परमधाम दिया ।
ऐसा क्यों किया?
संत महात्मा इन प्रसंगों की बड़ी सुंदर व्याख्या करते हैं।
भगवान ने इन राक्षसों को परमधाम दिया ।
अपने में समाहित किया इसके पीछे भी कारण है।
रावण कुम्भकरन यह कोई गैर नहीं थे ।
यह भगवान के द्वारपाल थे।
सनद कुमारों के श्राप के कारण राक्षस हुए थे।
भगवान ने इनका उद्धार करने का इन्हें वचन दिया था।
अपने वचन को निभाते हुए इन्हें राक्षस योनि से मुक्त किया।
इनाम स्वरूप भगवान ने इन्हें अपना धाम दिया।
कि वाह तुमने मेरी नर लीला में क्या महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है मेरी इस नर लीला को कितना रोचक बनाया है।
मारीच को भी एक तरह से यह पुरस्कार ही दिया।
कि वाह कितना सुंदर अभिनय किया है ।
कुंभकरण और आदि अनेक वीर राक्षस योद्धाओं को भगवान ने इनाम स्वरूप ही अपना परमधाम दिया।
और अपने में समाहित किया।
जिस परमात्मा से यह सृष्टि चलाएमान है।
हर पल हर क्षण की जानने वाले परमात्मा क्या कभी किसी धोखे में आ सकते हैं।
क्या राक्षस मारीच भगवान को धोखा दे सकता था ।
क्या रावण का इतना सामर्थ्य था जो श्री जानकी जी का हरण कर लें जाता कभी नहीं।
जिस परमात्मा ने ब्राह्मण गौ और संत महात्माओं के हित के लिए जन्म लिया ।
जिसे हर पल हर क्षण की खबर है।
यहां तक कि बाल्वस्था में जब
भगवान भोलेनाथ माता कौशल्या को राम जी के भविष्य की हस्तरेखा देखकर सुंदर कथाएं कह रहे थे।
तभी श्री राम जी ने भगवान शिव को रोक दिया था।
बाबा विवाह तक की खबर आपने सुनाई वहां तक तो ठीक है इसके आगे की कथा मत सुनाना क्योंकि माता को दुख होगा। भगवान सब जानते हैं कि मुझे क्या करना है ।
और कौन क्या करेगा।
इसलिए संत कहते हैं भगवान की लीला में संसय रखना हमारे जीवन के कल्याण में बाधक है।
कुंभकरण वध के पश्चात उधर से मेघनाथ रणभूमि में आया ।
इधर से लक्ष्मण जी रणभूमि में गए।
जब लक्ष्मण जी पहली बार मेघनाथ से युद्ध करने गए थे।
तब बड़े जोश में गए थे।
राम जी से आज्ञा तो ली थी ।
किंतु तुलसीदास जी ने प्रणाम का वर्णन नहीं किया है।
लक्ष्मण जी, रामजी को प्रणाम करके नहीं गये।
राम जी की लीला बड़ी अद्भुत है। राम जी, रामायण के पात्रों के माध्यम से अपनी लीला में यह संकेत करना चाहते हैं।
कि किस पर किस तरह विजय प्राप्त की जा सकती है।
मेघनाथ काम का स्वरूप है।
और काम को जोश से समाप्त नहीं किया जा सकता है।
काम यदि समाप्त होगा तो बोध से होगा।
ज्ञान से होगा।
बोध नहीं रहा इसी कारण लक्ष्मण जी पहली बार गए तो मेघनाथ को मार नहीं पाए ।
और दूसरी बार जब गए भगवान से आज्ञा भी ली और भगवान को प्रणाम भी किया।
पूरे होस में गए ।
वही मेघनाथ था, और वही लक्ष्मण जी थे।
राम जी की कृपा से लक्ष्मण जी ने मेघनाथ का वध कर दिया ।
इस प्रशंग से आशय यही है कि कोई अपने बल पर किसी को समाप्त करना चाहे ।
तो यह सम्भव नहीं है।
बिना रामजी की कृपा के काम क्रौध मोह लोभ पर विजय पाना असम्भव है।
रामायण के प्रशंग अनेक रामायणों में अलग अलग मिलते हैं।
इस प्रशंग में एक कहानी यह भी सुनने को मिलती है कि, । मेघनाथ का वध होने पर उसकी भुजा कटकर मेघनाथ के महल में गिरी।
मेघनाथ की पत्नी सुलोचना। अपने पति की भुजा देखकर जान गई कि यह भुजा मेरे पति की है । सुलोचना बहुत विलाप करने लगी।
इनका बध करने वाला कौन है? सुलोचना एक सती नारी थी। सुलोचना ने अपने सतीत्व के बल पर कहा।
कि यदि मेरे सतीत्व में सत है ।तो मेरे पति की भुजा काटने वाले का नाम भुजा पर अंकित हो जाए।
ऐसा कहते ही मेघनाथ की भुजा पर राम जी के छोटे भाई लक्ष्मण जी का नाम अंकित हो गया। सुलोचना
रावण के दरबार में गई ।जाकर रावण को समाचार सुनाया।
यह सुनकर रावण बहुत दुखी हुआ।
सुलोचना ने कहा पिताजी यदि आपकी आज्ञा हो तो मैं युद्ध भूमि में रामादल में जाकर अपने पति का शव लेकर आ जाऊं?
रावण ने कहा अवश्य।
रावण के दरबारियों ने कहा महाराज।
पुत्र की मृत्यु पर आप अपने होश गवां चुके हो।
आप जरा विचार कीजिए ।
अपनी पुत्रवधू को दुश्मन के खेमे में भेज रहे हो।
आपके तो दश शिर है।
इतना ज्ञान तो एक शिर वाले को भी होता है।
ऐसा भी तो हो सकता है ।
कि जिस तरह आपने श्री सीता जी को अशोक वाटिका में कैद कर रखा है।
यदि सुलोचना रामादल में जाती है ।
और वहां शत्रु पक्ष द्वारा सुलोचना को बंदी बना लिया जाए ।
और फिर आपसे कहा जाए।
कि तुम सीता जी को मुक्त कर दो।
हम सुलोचना को मुक्त कर देंगे। मंत्रियों की बातें सुनकर रावण ने कहा।
नहीं नहीं ऐसा नहीं होगा।
किसी नारी को बंदी बना लेना यह काम तो रावण का है।
राम का नहीं ।
उसकी सेना में ब्रह्मचारी हनुमान है।
महाबली अंगद जामवंत है।
मैं जानता हूं राम ऐसा नहीं कर सकता।
रावण ने अपनी पुत्रवधू सुलोचना को मेघनाथ का शव लाने कि अनुमति दी।
*इसके आगे का प्रसंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।*🙏🙏