सिंधु बचन सुनि राम,
सचिव बोलि प्रभु अस कहेउ,
अब बिलंबु केहि राम,
करहु सेतु उतरै कटकु।।
समुद्र के बचन सुनकर राम जी ने कहा अब विलंबु न किया जाए।
पुल तैयार करो जिससे की सेना पार हो जाए।
जब श्री राम जी को यह ज्ञात हुआ कि नल और नील के हाथों में ऐसी कारीगरी है तो श्री राम जी ने उनसे पूंछा।
कि तुमने हमें बताया नहीं कि तुम इस कला में प्रवीण हो।?
नल और नील ने बड़ी गम्भीरता से उत्तर दिया।
भगवन आपसे क्या छुपा है ।
आप तो घट घट की जानने वाले हो। और फिर हमारे माता-पिता ने हमसे कहा था ।
अपनी इस योग्यता का अपने मुख से बखान मत करना।
हम इसलिए चुप थे।
श्री राम जी ने दोनों भाइयों के मुख से यह बात सुनी तो अति प्रसन्न हुए।
समुद्र के बताए गए उपाय के अनुसार श्री राम जी ने समुद्र पर सेतु निर्माण का कार्य आरंभ कराया ।
सारे वीर बानर बड़े-बड़े पत्थर ला ला कर नल और नील को देने लगे।
*अति उतंग गिरि पादप,लीलहिं लेहिं उठाइ*
*आनि देहिं नल नीलहिं,रचहिं तें सेतु बनाइ।।*
उन पत्थरों पर राम शब्द लिखा गया ।
नल और नील के द्वारा जब वह पत्थर समुद्र के जल में पुल बनाने के उद्देश्य से छोड़े जा रहे थे ।
तो वह पत्थर पानी में तैर तो रहे थे। किंतु एक स्थान पर स्थिर नहीं रह पा रहे थे।
सब अलग-अलग दिशाओं में बहने लगे।
कोई उत्तर की ओर जा रहा है ,कोई पूर्व में कोई पश्चिम में कोई दक्षिण में।
श्री हनुमान जी महाराज ने कहा इन पत्थरों पर राम शब्द इस तरह ना लिखा जाए ।
एक पत्थर पर रा लिखो और दूसरे पत्थर पर म लिखो।
फिर दोनों पत्थरों को पास पास रखा जाए ।
तब यह इधर-उधर नहीं बहेंगे। एक स्थान पर स्थिर रहेंगे। हनुमान जी के कहने से फिर ऐसा ही किया गया।
राम शब्द को दो पत्थरों में अलग-अलग लिखा गया ।
एक पत्थर पर और और दूसरे पतथर पर म तब दोनों पत्थर चिपक कर स्थिर हो गए।
अति शीघ्रता से सेतु निर्माण कार्य चल रहा था।
श्री राम जी ने विचार किया ।
वीर वानर भालू इतना परिश्रम कर रहे है। इसमें थोड़ा योगदान मुझे भी करना चाहिए।
ऐसा मन में विचार करके रामजी दो पत्थर लेकर चले।
वीर वानरों ने प्रभु से आग्रह भी किया।
प्रभु आप तो विश्राम कीजिए। यह कार्य हम सुगमता से कर लेंगे।
रामजी ने कहा नहीं नहीं मुझे भी कुछ करने दीजिए ।
रामजी की लीला बड़ी अद्भुत है ।भगवान ने मन ही मन विचार किया कि नल और नील के द्वारा छूने से यह पत्थर पानी में तैर रहे हैं ।
मैं भी देखता हूं मेरे द्वारा छोड़ा गया पत्थर पानी में तैरता है या नहीं?।
रामजी ने जब उन पत्थरों पर रा और म अक्षर लिखकर पत्थर पानी में छोड़ा तो वह पत्थर डूब गये।
श्री राम जी ने मन में विचार किया।
क्या कारण है? नल और नील के द्वारा छोड़े गए पत्थर तो तैर रहे हैं। और मेरे द्वारा छोड़ा गया पत्थर डूब गया।
श्री राम जी ने हनुमान जी से पूछा?
हनुमान मेरे द्वारा छोड़ा गया पत्थर डूब गया ।
इसका क्या कारण है?
हनुमान जी ने बड़ा सुंदर उत्तर दिया ।
कहा प्रभु दूसरों के द्वारा इन पत्थरों को छोड़ा जा रहा है तो वह तुम्हारे नाम के सहारे तेर रहे हैं ।
किंतु जो आपके नाम के सहारे तैर रहे हैं।
उन्हें यदि आप ही छोड़ दोगे ।
तो बेचारे वह किसके सहारे तेरेंगे। उन्हें तो डूबना ही है ।
जब आपने पत्थरों को छोड़ा तो उनका तो कोई सहारा ही नहीं रहा ।
इसलिए बेचारे डूब गए ।
हनुमान जी की बातें सुनकर राम जी मन ही मन हनुमानजी की प्रशंसा करने लगे।
वीर बानरों के द्वारा समुद्र पर सेतु बनकर तैयार हो गया।
तब भगवान श्री राम जी ने यह संकल्प लिया कि , मैं यहां भगवान भोलेनाथ की स्थापना करुंगा।
*करिहऊं इहां संभु थापना,*
*मोरे हृदय परम कलपना।।*
वानरराज सुग्रीव के आदेश से अनेक दूत गये।और श्रेष्ठ मुनियों को बुलाकर शिवलिंग की स्थापना की गई।
श्री राम जी ने कहा भगवान शिव के समान मुझे कोई और प्रिय नहीं है।और कहा
जो शिवजी से द्रोह रखता हो और मेरा भक्त बनता हो, तो ऐसा मनुष्य मुझे स्वप्न में भी नहीं पा सकता है।
*शिवद्रोही मम दास कहावा।*
*सो नर सपनेहुं मोहि न पावा।।*
भगवान आगे कहते हैं।
जो केवल भगवान शिव का भक्त बनता है, और मुझ से विद्रोह रखता है वह भी घोर नरक में निवास करेंगे।
*संकरप्रिय मम द्रोही,सिवद्रोही मम दास,*
*तें नर करहिं कलप भरि,घोर नरक मंहु बास।।*
श्री राम जी ने समुद्र के किनारे भगवान शिव की स्थापना करने के पश्चात शिव जी का नया नाम दिया। रामेश्वरम। अर्थात रामजी के ईश्वर ।
और कहा,जो मनुष्य रामेश्वरम के दर्शन करेंगें, वह शरीर छोड़ने के पश्चात निश्चित मेरे लोक को जायेंगे।
*जे रामेश्वर दरशनु करिहहिं ते तनु तजि मम लोक सिधरिहहिं*
और जो मनुष्य रामेश्वरम में गंगा जी का जल चढ़ायेंगे,वह सायुज्य मुक्ति को प्राप्त होंगे।
*जो गंगाजलु आनि चढाइहिसो सायुज्य मुक्ति नर पाइहि।*
*इसके आगे का प्रशंग अगली पोस्ट में। जय श्री राम।।*🚩🚩🏹