जब श्री राम जी को समुद्र से प्रार्थना करते हुए 3 दिन बीत गए। और समुद्र पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा ।
तब राम जी ने लक्ष्मण जी से कहा। अब पुरुषार्थ का ही प्रयोग करना पड़ेगा।
यह मूर्ख समुद्र प्रार्थना करने से मानने वाला नहीं है।
भय के बिना प्रीति सम्भव नहीं है
*बिनय न मानत जलधि जड़,गये तीनि दिन बीति,*
*बोले राम सकोप तब,भय बिनु होइ न प्रीति।।*
राम जी ने अपने धनुष पर बाण का संधान किया ।
लक्ष्मण जी बोले प्रभु मैंने आपसे
पहले ही कहा था ।कि प्रार्थना करना केवल आलसियों का काम है ।
काम तो पुरुषार्थ से ही बनेगा ।
यह काम आप तीन दिन पहले ही कर लेते।
राम जी ने कहा तुम ठीक कह रहे हो लक्ष्मण।
मूर्ख को जब तक भय न दिखाया जाए तब तक वह मानता नहीं है
आज मैं इस समुद्र को सुखा कर रहूंगा।
राम जी की बातें सुनकर लक्ष्मण जी हंसते हुए व्यंग्य करते हुए बोले।
प्रभु आपको क्रोध करना आता नहीं है। बेकार प्रयत्न करते हो।
श्री राम जी बोले लक्ष्मण मुझे क्रौध आ रहा है और तुम हंस रहे हो?।
लक्ष्मण जी हंसते हुए बोले भय्या मै जानता हूं।
आपने कभी किसी पर क्रोध किया ही नहीं है।
आपका स्वभाव तो केवल कृपा करना है।
और फिर आप किसी पर क्रोध करो या कृपा दोनों का अर्थ तो एक ही है ।
आपको स्मरण होगा ।
जब आपने घायल पड़े हुए जटायु जी की व्यथा जानी।
तब वहां पर भी आपने क्रोध का अभिनय किया था।
तब जटायु जी हंसे थे।
आपने जटायु जी से भी यही प्रश्न किया था।
कि जटायु जी मुझे क्रौध आ रहा है और तुम हंस रहे हों। क्या कारण है ?
तब जटायु जी ने आपसे कहा था प्रभु क्यों व्यर्थ में क्रौध का अभिनय कर रहे हो।
आपने कहा था कि जटायु जी क्या मेरा क्रौध तुम्हें दिखाई नहीं दे रहा है?।
जटायु जी ने आपसे कहा था ।कि आप क्रोध करते हुए कह रहे हो कि मैं रावण को कुल समेत वहां पहुंचा दूंगा। जहां पिताश्री गए हुए हैं ।
और रावण ही अपने मुख से यह कहानी सुनाएगा।
जब रावण को भी उसी स्थान पर भेजना चाह रहे हो ।जहां पिताजी गए हैं ।तो फिर तुम्हारे क्रोध और कृपा में अंतर ही क्या रहा।
रावण पर क्रौध कर रहे हो ।
और उसे कुल सहित अपने धाम में भेजना चाह रहे हैं।
और मुझ पर कृपा कर रहे हो तो मुझे अकेले को अपने धाम में भेज रहे हो।
तो यह बताओ भगवन ?
आपकी कृपा और क्रौध में अंतर क्या है?
आप किसी पर क्रौध करो य कृपा दोनों का अर्थ एक ही है।
लक्ष्मण जी ने फिर कहा।
आपने क्रोध तो सुग्रीव जी पर भी किया था ।
और उसमें भी आप कह रहे थे कि मैं उस मूर्ख को कल मारूंगा।
जिस वाण से बाली को मारा है ।उसी बाण से उसे मारूंगा ।
किंतु मारूंगा कल।
जब मैंने कहा था मुझे आज्ञा दीजिए मैं आज ही उसे मार दूंगा।तब आपने कहा था ।
नहीं नहीं ऐसा नहीं करना है।
उसे मारना नहीं है। वह मेरा मित्र है।
जब मारना नहीं है तो कह क्यों रहे हो।?
क्रोध में ऐसा नहीं होता है भय्या । आप क्रौध तो करते हो ।
किंतु आपके क्रौध के पीछे आपकी कृपा छुपी रहती है।
भगवान कहने लगे।
नहीं आज मैं इस समुद्र को अवश्य सुखा कर रहूंगा।
राम जी की क्रोध भरी बातें सुनकर समुद्र के जीव जंतु घबराने लगे।
*मकर उरग झस गन अकुलाने।*
*जरत जंतु जलनिधि जब जाने।।*
समुद्र भी घबरा गया ।
भयभीत होता हुआ मणियों का थाल लेकर ब्राह्मण के रूप में प्रकट हुआ।
*कनक थार भरि मनि गन नाना।*
*बिप्र रुप आयउ तजि माना।।*
भयभीत होते हुए कहने लगा। प्रभु, मैं तो स्वभाव से ही जड़ हूं। यह सब आप ही की कृपा से बनाए हुए हैं ।
प्रकृति ने हमें यह गुण दिया है।
मैं उसी का पालन कर रहा हूं।
*तव प्रेरित माया उपजाए।*
*सृष्टि हेतु सब ग्रन्थन गाए।।*
आपसे विनय प्रार्थना करता हूं। जैसा आपका आदेश होगा मैं वैसा करने को तैयार हूं।
*प्रभु अग्या अपेल श्रुति गाई।*
*करौं सो बेगि जो तुम्हहि सोहाई।*
आप मुझे सुखाकर रास्ता बना सकते हो पार हो सकते हो।
किंतु इसमें आपका बड़प्पन नहीं रहेगा। मर्यादा नहीं रहेगी।
गोस्वामी जी श्री तुलसीदास जी महाराज कहते हैं ।
कि हमारे प्रभु श्री राम जी का स्वभाव बहुत कोमल है। अभी-अभी समुद्र पर क्रोध कर रहे थे। उसे मूर्ख कह रहे थे।
और जब समुद्र की कोमल वाणी सुनी तो बिल्कुल सहज हो गए। समुद्र को तात कहकर संबोधित करने लगे।
*जेहि बिधि उतरे कपि कटकुतांत सो कहहु उपाइ।।*
इसीलिए लक्ष्मण जी श्री राम जी से कह रहे थे।
भय्या क्रोध करना आपका स्वभाव नहीं है ।क्रोध में भी आप कृपा ही करते हो
रामजी ने समुद्र से कहा ।
यह बताओ हमें उस पार होने का क्या उपाय है?
समुद्र ने विनय करते हुए कहा। प्रभु आपकी वानर सेना में नल और नील नाम के दो वानर हैं।
*नाथ नील नल कपि द्वौ भाई ।*
उन्हें बचपने में ऋषियों से आशीर्वाद मिला है ।
*लरिकाई रिषि आषिस पाईं।।*
उनके हाथों से पानी में छोड़े गए पत्थर डूबते नहीं हैं। आप के प्रताप से पत्थर पानी में तैर जायेंगे।
*तिन्ह कें परस किएं गिरि भारे।*
*तरहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे।।*
यहां पर उनकी सहायता से सेतु का निर्माण कीजिए ।
जो युगो युगो तक रहेगा।
*एहि बिधि नाथ पयोधि बंधाइअ।*
*जेहिं यह सुजसु लोक तिहुं गाइअ*
श्री राम जी ने समुद्र की बात मानकर ऐसा ही करने की स्वीकृति दी।
समुद्र रामजी के चरणों की वंदना करते हुए वापस अपने स्थान पर चला गया।
*सकल चरित कहि प्रभुहि सुनावा*
*चरन बंदि पाथोदि सिधावा।।*
*इसके आगे का प्रशंग अगले पोस्ट में जय श्री राम।।*🚩🚩