धर्म, अध्यात्म और सेवा के माध्यम से लोक कल्याण करने वाले,अखिल विश्व गायत्री परिवार के संस्थापक, युगदृष्टा मनीषी पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी की जयंती पर उन्हें कोटि-कोटि नमन।
परमार्थ को समर्पित आपके पुण्य विचारों की ज्योत अनंतकाल तक सभी को लोककल्याण का मार्ग दिखाती रहेगी:
पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य भारत के एक युगदृष्टा मनीषी थे जिन्होने अखिल भारतीय गायत्री परिवार की स्थापना की। उन्होंने अपना जीवन समाज की भलाई तथा सांस्कृतिक व चारित्रिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया।
उन्होंने आधुनिक व प्राचीन विज्ञान व धर्म का समन्वय करके आध्यात्मिक नवचेतना को जगाने का कार्य किया ताकि वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना किया जा सके। उनका व्यक्तित्व एक साधु पुरुष, आध्यात्म विज्ञानी, योगी, दार्शनिक, मनोवैज्ञानिक, लेखक, सुधारक, मनीषी व दृष्टा का समन्वित रूप था।
महामना पं.मदनमोहन मालवीय जी ने उन्हें काशी में गायत्री मंत्र की दीक्षा दी थी। पंद्रह वर्ष की आयु में वसंत पंचमी की वेला में सन् 1926 में ही लोगों ने उनके अंदर के अवतारी रूप को पहचान लिया था। उन्हें जाति-पाँति का कोई भेद नहीं था। वह कुष्ठ रोगियों की भी सेवा करते थे। इस महान संत ने नारी शक्ति व बेरोजगार युवाओं के लिए गाँव में ही एक बुनताघर स्थापित किया व अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया।
भारत के परतंत्र होने की पीड़ा उन्हें बहुत सताती थी. वर्ष 1927 से 1933 तक स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई।
उन्होंने अपने जीवन में लगभग ३२०० से ज्याद अलग अलग भाषा में पुस्तके लिखी जो लोगों को प्रेरित कर आत्मज्ञान का प्रकाश करती हैं, आज करोड़ों लोग गायत्री परिवार से जुड़े हैं और जाति पति से उपर उठकर धर्म प्रचार और जनकल्याण में।लगे हैं, साथ ही निरन्तर होते यज्ञ हवन पर्यावरण को शुद्ध करते हैं और सात्विक शक्ति का प्रशार करते हैं
गंगा दशहरा के दिन 02 जून को आचार्य जी शरीर छोड़ ब्रह्मलीन हो गए....