👆👆🏿 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मथुरा में बांके बिहारी मंदिर की 12 एकड़ की जमीन जो अखिलेश राज में रातों-रात एक मुस्लिम संस्था को कब्रिस्तान बनाने को दे दिया था उसे वापस बांके बिहारी मंदिर को देने का आदेश दिया....
ये अपनी तरह का विश्व का अनूठा मामला है जिसमें इतनी बड़ी जमीन जो एक हिंदू मंदिर की है उसे रातों-रात एक मुस्लिम संस्था के नाम कर दिया गया। आप कल्पना करिए यदि आवापास अखिलेश राज आया तो और क्या करेगा?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने शुक्रवार (15 सितंबर, 2023) को छाता तहसील के अधिकारियों को आदेश दिया कि बाँके बिहारी जी महाराज मंदिर की जिस जमीन को मुस्लिम कब्रिस्तान बता दिया गया है, उस जमीन से जुड़े राजस्व के कागजात में सुधर किए जाएँ। इसमें सुधार कर के इसे बाँके बिहारी मंदिर के नाम पर करने का आदेश दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सौरभ श्रीवास्तव की एकल पीठ ने ये फैसला सुनाया। मथुरा स्थित ‘श्री बिहारी जी सेवा ट्रस्ट’ ने इस संबंध में याचिका दायर की थी।
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दायर की गई याचिका में बताया गया था कि 2004 में राजस्व के रिकॉर्ड्स में बदलाव कर के उक्त जमीन को मुस्लिम कब्रिस्तान बता दिया गया था। 11 अगस्त, 2023 को छाता के तहसीलदार को मथुरा हाईकोर्ट ने इसका विवरण साझा करने का निर्देश दिया था। साथ ही पूछा था कि 2004 में आखिर कैसे इस जमीन का स्वामित्व बदल दिया गया, कागजात में छेड़छाड़ कैसे हुई। ट्रस्ट ने इस एंट्री को गलत बताते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट से गुहार लगाई थी कि इसे दुरुस्त किया जाए।
‘श्री बिहारी जी सेवा ट्रस्ट’ ने जानकारी दी थी कि ये पूरा मामला प्लॉट संख्या 1081 से जुड़ा हुआ है। ये भूमि प्राचीन काल से ही बाँके बिहारी मंदिर की रही है। भोला काला पठान ने राजस्व विभाग के अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर के इसे 2004 में कब्रिस्तान के रूप में पंजीकृत करवा दिया। मंदिर ट्रस्ट को इसकी सूचना मिली, जिसके बाद आपत्ति दायर की गई। वक्त बोर्ड के पास भी ये मामला पहुँचा। एक 7 सदस्यीय जाँच कमिटी ने भी पाया कि कागजात में अवैध छेड़छाड़ हुई है।
इलाहाबद हाईकोर्ट ने ये आदेश भी दिया है कि 2 महीने के भीतर मंदिर को ये भूमि सौंप दी जाए। और पीछे जाएँ तो ये मामला 1991 तक जाता है, जब इस जमीन को तालाब के रूप में रजिस्टर किया गया था। ‘धर्म रक्षा संघ’ के राम अवतार गुर्जर भी इस मामले में हाईकोर्ट पहुँचे थे। ये जमीन शाहपुर गाँव में स्थित है। ये इलाका मथुरा से 60 किलोमीटर की दूरी पर है। यहाँ कोई आता-जाता नहीं है, लेकिन चबूतरे के पास पुलिसकर्मियों की ड्यूटी लगी रहती है।
यहाँ तक कि ग्रामीण भी मानते हैं कि ये बाँके बिहारी मंदिर का ही हिस्सा हुआ करता था, जिसे औरंगजेब के ज़माने में तोड़ डाला गया और फिर मुस्लिम इसे अपना कब्रिस्तान कहने लगे। ‘धर्म रक्षा संघ’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सौरभ गौड़ ने फैसले पर ख़ुशी जताते हुए कहा कि संगठन कई वर्षों से इस फर्जीवाड़े का विरोध कर रहा था। उन्होंने षड्यंत्रकारियों को सज़ा देने की भी माँग की। 1970 से ही इस 2.25 बीघा जमीन पर कब्जे की कोशिश इस्लामी कट्टरपंथी कर रहे हैं।
‘दैनिक भास्कर’ से बात करते हुए राम अवतार गुर्जर ने बताया कि भोला पठान समाजवादी पार्टी का बूथ अध्यक्ष था और लेखपाल से मिल कर उसने पूरा षड्यंत्र रचा था। इतना ही नहीं, मुस्लिम पक्ष के लोग बुलडोजर लेकर आए और चबूतरे के पास स्थित ऐतिहासिक कुएँ को भी तोड़ डाला था। जमीन पर कँटीले तार लगाए जाने लगे। बाँके बिहारी जी का सिंहासन तोड़ कर मजार बना दी गई। पूरा फर्जीवाड़ा कैसे किया गया, ग्रामीणों के पास इसका कागज भी मौजूद है।