#शुभ_रात्रि
ब्रह्म ने अपने अंदर व्याप्य प्रकृति और परमाणु से स्थूल जगत को बनाकर बाहर स्थूल रूप कर और आप उसी में व्यापक होकर साक्षी भूत आनंदमय हो रहा है। जब जगत उत्पन्न होता है तभी जीवों के विचार, ज्ञान ,ध्यान, उपदेश श्रवण में परमेश्वर प्रसिद्ध और बहुत स्थूल पदार्थों से सह वर्तमान होता है ।लेकिन जब प्रलय होता है तब परमेश्वर और मुक्त जीवों को छोड़कर उसको कोई नहीं जानता।
सृष्टि के अंत से जब तक दूसरी बार सृष्टि नहीं होगी तब तक भी जगत का कारण सूक्ष्म होता है। सृष्टि से पहले यह जगत अंधकार से आवृत था और प्रलय के पश्चात भी ऐसा ही होता है ।उस समय न किसी के जानने में ,न तर्क में लाने और न प्रसिद्ध चिह्नो से युक्त इंद्रियों से जानने योग्य होता है और न होगा।
*“ईश्वर के अंदर जगत की रचना करने का विज्ञान ,बल और क्रिया है ।ईश्वर के न्याय , धारण, दया आदि गुण भी तभी सार्थक हो सकते हैं जब वह जगत को बनावे। उसका अनंत सामर्थ्य जगत की उत्पत्ति, स्थिति, प्रलय और व्यवस्था करने से ही सफल है। इसलिए ईश्वर जगत की रचना किया करता है।”*
इससे स्पष्ट हुआ कि जगत की उत्पत्ति , स्थिति और प्रलय करने से जगत पिता की सामर्थ्य ,बल एवं क्रिया की जानकारी होती है।
*यह ब्रह्मांड ,यह सारी सृष्टि ईश्वर की बनाई हुई है। परमात्मा ने इतने बड़े ब्रह्मांड को प्रकृति से बनाया है। परंतु इसमें आत्मा परमात्मा का ही अंश है। मुक्त अवस्था में आत्मा परमात्मा के साथ विचरण करता है और मन आत्मा से अलग हो जाता है, क्योंकि मन प्रकृति जन्य है।*
परंतु इस प्रकार के संसार में परमात्मा का क्या महत्व है ? सृष्टि की उत्पत्ति कैसे करता है ईश्वर?
परमात्मा ब्रह्मा की शक्ति बनकर संसार को उत्पन्न करता है । परमात्मा के सृष्टि रचने में सामर्थ्य होने के कारण ही ब्रह्मा कहते हैं। परमात्मा स्वयं सृष्टि की स्थापना करता है ।प्रश्न पैदा होता है कि कैसे बनाता है? और किस पदार्थ से बनाता है ? इसके लिए एक उदाहरण प्रस्तुत करना चाहेंगे कि जैसे यज्ञ का ब्रह्मा यज्ञशाला में विराजमान होकर अपने शरीर से अतिरिक्त भिन्न द्रव्यों का आयोजन यज्ञ के लिए करता है और कराता है । यज्ञवेदी को रचाता है तो यजमान उससे भिन्न होते हैं। इसी प्रकार से मूल प्रकृति को महत्व प्रदान करके सृष्टि उत्पन्न करता है। यह प्रकृति प्रलय काल में अव्यक्त रूप में अर्थात शून्य रूप में थी ।उसी सूक्ष्म रूप प्रकृति को महतत्व रूप में परिवर्तित करके, इसमें प्राण प्रदान करके, तथा क्रिया पैदा करके, तन्मात्राओं को पैदा करता है । तन्मात्रा से यह पंचभूत और पंच भूतों से यह संसार बनता है। महान परमात्मा ने इस सूक्ष्म और महान प्रकृति से संसार को बनाया है। हमारे शरीरों को बनाया है। अनेक प्रकार के विषय सूक्ष्म रूप से हैं।
परमात्मा को शून्य या अव्यक्त प्रकृति को चेतन में लाने की आवश्यकता क्यों पड़ी ? परमात्मा ने यह सब सृष्टि किसके लिए बनाई ?
यह सर्व सिद्ध है कि परमात्मा तो पूर्ण है ।इस पर दो मत नहीं है । परमात्मा को स्वयं संसार में आने की अथवा यह संसार बनाने की आवश्यकता क्यों पड़ती है,? जैसे एक माता अपनी लोरियों में बालक को जीवनदान करती है ।उसी प्रकार हम आत्माओं के लिए परमात्मा ने इस सृष्टि को उत्पन्न किया है ।प्रलय के समय यह सारी सृष्टि और सारे जीव उस परमात्मा के गर्भ में होते हैं। इसलिए यह परमात्मा के ही सब अंश हैं।
परमात्मा हमारे लिए सृष्टि को उत्पन्न करता है। क्योंकि हम उसमें कर्म करने के लिए तत्पर हो रहे हैं। जैसे मुक्ति के पश्चात आत्मा पुनः संसार में आकर कर्म करना चाहती है। निष्कर्ष आता है कि यह संसार ईश्वर ने हम आत्माओं के लिए बनाया है। मानव के लिए, आत्मा के लिए ही परमात्मा ने संसार को बनाया है। यह मनुष्य को अच्छी प्रकार जान लेना चाहिए।आत्मा को कर्म करने के लिए बनाया है। जिससे कि आत्मा शुभ कर्म करें, और पुनः मोक्ष को प्राप्त हो। यदि इस संसार में आकर के परमात्मा की बनाई हुई संपूर्ण सृष्टि में अच्छे कर्म नहीं करेंगे तो हमारे जैसा मूर्ख और कोई नहीं होगा, हमारे जैसा अज्ञानी और कोई नहीं होगा। इसलिए मानव को इस संसार क्षेत्र में आकर अच्छा कर्म करना चाहिए।
. *🚩हर हर महादेव🚩*