वानर राज सुग्रीव के कहे अनुसार हनुमान जी महाराज ब्राह्मण का रूप धारण करके राम जी और लक्ष्मण जी का भेद जानने के लिए चले ।हनुमान जीने जब अपने प्रभु श्री राम जी को देखा तो पहचान गए। यह तो मेरे प्रभु श्री राम जी है।मन ही मन सिर झुका कर प्रणाम किया। राम जी भी हनुमान जी को पहचान गये ।यह तो मेरा परम भक्त हनुमान है।
राम जी ने मन ही मन विचार किया। वाह हनुमान ।रूप तो हू बहू ,ब्राह्मण का बनाया है। किंतु वास्तविक ब्राह्मण हो नहीं। इधर हनुमान जी मन ही मन राम जी से कह रहे हैं ।प्रभु रूप तो आपने भी क्षत्रिय का बनाया है। किंतु वास्तविक क्षत्रिय हो नहीं।
राम जी मन ही मन कह रहे हैं। हनुमान तुम ब्राह्मण की भूमिका तो अच्छी निभा रहे हो ।किंतु कुछ गड़बड़ कर दी ।पकड़ में आ गए ।वह ब्राह्मण कैसा जो क्षत्रिय को देखकर प्रणाम करें। हनुमान जी ने कहा प्रभु भूल तो आपसे भी हुई है। वह क्षत्रिय कैसा जो ब्राह्मण को देखकर प्रणाम नहीं करें। ब्राह्मण समझकर आपने भी तो मुझे प्रणाम नहीं किया। भूल तो आपसे भी हुई है। प्रभु आपका अनुमान ठीक नहीं है।आपको यह लगा कि ब्राह्मण होकर मैंने क्षत्रिय को प्रणाम किया है। किंतु मेरा भाव यह था ।कि जैसे ही मैंने आपको देखा तो मैं तो फोटो का मिलान कर रहा था ।कि, क्या यह राम जी वही हैं। जिनको मैंने अपने हृदय में धारण कर रखा है। तो गर्दन झुका कर मैं अपने हृदय में बैठे हुए राम जी से आपके रूप का मिलान कर रहा था। और आपको लगा कि मैं आपको प्रणाम कर रहा हूं ।राम जी मन ही मन हनुमान जी की बुद्धिमता की प्रशंसा कर रहे हैं। फिर आपस में वार्तालाप प्रारंभ होता है ।हनुमान जी प्रश्न करते हैं। कि आप सांवले और गौरे शरीर वाले कौन हो?और इस वीरान जंगल में क्यों फिर रहे हो?
को तुम स्यामल गोरि शरीरा।
क्षत्रिय रुप भिरहुं वन वीरा।।
यह भूमि बहुत कठोर है। और तुम्हारे चरण बहुत कोमल हैं।
कठिन भूमि कोमल पद गामी।।
तुम किस प्रयोजन से इस वन में फिर रहे हो?
क्या आप ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देवों में से कोई हो ? य नर और नारायण हो?
की तुम्ह तीनि देव मंह कोई।
नर नारायण की तुम्ह दोऊ।।
अपना परिचय दीजिए। श्री राम जी हनुमान जी को परिचय देते हैं ।कि हम अयोध्यापुरी नरेश महाराजा दशरथ के पुत्र हैं। पिताजी की आज्ञा मानकर वन में आए हैं।
कोशल दशरथ के जाए।
हम पितु वचन मान वन आए।।
हम दोनों भाई हैं,राम और लक्ष्मण हमारा नाम है।
नाम राम लछिमन दोऊ भाई।।
हमारे साथ मेरी भार्या श्री जानकी जी थी ।जिसका हरण दुष्ट रावण ने किया है। हम उसी की खोज में फिर रहे हैं।
ईहां हरी निशिचर बैदेही।
बिप्र फिरहिं हम खोजत तेंही।।
लक्ष्मण जी हनुमान जी से प्रश्न करते हैं। ब्राह्मण देवता आप कौन हैं ?और इस जंगल में किस प्रयोजन से आए हो? हनुमान जी अपना परिचय छुपाते हैं ।और प्रश्न पर प्रश्न करते हैं।लक्ष्मण जी श्री राम जी से कहते हैं। भय्या यह ब्राह्मण देवता मुझे वास्तविक ब्राह्मण नहीं दिखते हैं ।अपना रूप बदले हुए कोई और लगते हैं। रामजी ने कहा नहीं लक्ष्मण। यह कोई और नहीं है ।इनकी भाषा से लगता है। यह चारों वेदों के ज्ञाता है। कोई विद्वान ब्राह्मण है। हनुमान जी को पूर्ण विश्वास हो जाता है। कि यह तो मेरे प्रभु श्री राम जी हैं ।तब हनुमान जी कहते हैं प्रभु। मैं तो तुम्हारा भक्त साधारण वानर हूं ।
आपकी माया के कारण मुझसे भूल हो सकती है,
किंतु आप तो सर्वज्ञ हो। आपने अपने भक्त को क्यों नहीं पहचाना
तव माया बस फिर उं भुलाना।
ताते मैं नहिं प्रभु पहचाना।।
ऐसा कह कर हनुमान जी श्री राम जी के चरणों में गिर गए।
प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना।।
अपना वास्तविक हनुमान जी का रूप प्रकट किया। राम जी ने हनुमान जी को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। राम जी हनुमान जी से पूछते हैं ।भाई हमने अपनी कथा तुम्हें गाकर बताई ।अब तुम अपनी कथा कहो। हनुमान जी कहने लगे प्रभु मेरी तो कोई कथा नहीं है। और जो आपकी व्यथा है ।वही व्यथा हमारे महाराज सुग्रीव की है। तुम दोनों की कहानी मिलती-जुलती है ।आप भी नारी के विरह में व्यथित हो ।और वह भी नारी के विरह में व्यथित है ।आपने अपने भाई के कारण राज्य का त्याग किया है ।और उसके भाई ने राज्य के कारण उसका त्याग किया है। पर्वत पर सुग्रीव जी रहते हैं ।वह आपके दास है।
*नाथ सैल पर कपिपति रहहि।*
*सो सुग्रीव दास तव अहहि।।*
आप उनसे मित्रता कर लीजिए।वह अवश्य आपकी सहायता करेंगे।
*तेहि सन नाथ मयत्री कीजे।।*
रामजी ने कहा हनुमान आज तक हमें जितने मिले हैं। सब मित्र ही मिले हैं ।एक सुग्रीव जी ही हैं ।जिनके बारे में आप कह रहे हो कि वह आपका दास है ।तो फिर उन्हें हमारा दास ही रहने दो। मित्रता क्यों करवा रहे हो? यदि मैं उनको मित्र बना लूंगा तो यह दास का पद तो खाली ही रह जाएगा। हनुमान जी ने कहा प्रभु मैं यही तो चाहता हूं ।आप सुग्रीव जी को अपना मित्र बना लीजिए। और जो दास का पद रिक्त हो रहा है। उसके स्थान पर मुझे रख लीजिए। राम जी कहते हैं हनुमान आप कह रहे हो सुग्रीव जी आपका दास है। तो वह दास कैसा जो अपने स्वामी को ही आदेश करे कि हमारे स्वामी को हमारे पास लेकर आओ। तुम इसी प्रयोजन से तो हमारे पास आए हो। जबकि दास का तो कर्तव्य बनता है। कि वह स्वयं आकर स्वामी के चरणों में प्रणाम करें ।हनुमान जी ने कहा प्रभु इसका एक कारण है ।तुम्हारा वह दास इस पर्वत से नीचे नहीं आ सकता है। उसके पास आपको चलना होगा ।हनुमान जी राम जी को सुग्रीव जी की सारी कहानी बताते हैं। राम जी ने कहा हनुमान जी इस पर्वत का रास्ता बहुत टेढ़ा मेढ़ा है। इस पर चढ़ना तो बड़ा मुश्किल होगा। हनुमान जी ने कहा प्रभु आप चिंता मत कीजिए। आप दोनों भाई मेरे कंधे पर बैठ जाइए ।मैं तुम्हें सकुशल वहां पहुंचा दूंगा। रामजी ने कहा हनुमान जी कहीं पर्वत के रास्ते पर आपका पैर फिसल गया तो ,आप तो गिरोगे साथ में हम भी गिरेंगे। हनुमान जी ने कहा प्रभु आप कंधे पर बैठ कर दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लीजिए। फिर नहीं गिरोगे। रामजी ने कहा हम तो नहीं गिरेंगे। किंतु यदि तुम गिर गए तो फिर क्या होगा? हनुमान जी ने कहा प्रभु जिसके कंधे पर आप बैठे हो ।जिसके मस्तक पर आपका हाथ हो। यदि वह भी गिर गया तो फिर आप यह बताओ। इस संसार में बचेगा कौन? राम जी हनुमान जी के बुद्धिमानी भरे वचनों से बहुत प्रभावित हुए ।और दोनों भाई हनुमान जी के कंधे पर बैठ गए। हनुमान जी उन्हें लेकर सुग्रीव जी के पास गए।
यह प्रसंग अगली पोस्ट में