हनुमान जी महाराज ने भगवान श्री राम जी को श्री जानकी जी के सारे समाचार सुनाएं।
प्रभु ने प्रसन्न होकर हनुमान जी को हृदय से लगा लिया।
भगवान हनुमान जी से अब पूछने लगे।
हनुमान बताओ वह रावण की लंका कैसी है ?वहां का किला कैसा है? तुमने उसे कैसे जलाया।
*कहु कपि रावण पालित लंका केहि बिधि दहेऊ दुर्ग अति बंका।*
हनुमान जी ने प्रभु को प्रसन्न जाना ।तब हनुमान जी बताने लगे।
*नाघ सिधुं हाटकपुर जारा।*
*निसिचर गन बधि बिपिन उजारा।*
हनुमान जी बोले समुद्र लांघ कर लंका को जलाया ।और राक्षसों को मारकर बाग को उजाड़ा।
भगवान कहने लगे हनुमान यह बताओ?समुद्र लांघने के तुरंत बाद लंका जलाई।? राक्षसों को बाद में मारा? बाग को पहले उजाड़ा?। क्या यह सही है?
हनुमान जी ने कहा नहीं प्रभु समुद्र लांघने के बाद मैं माता जानकी के दर्शन करने गया ।संदेश लेने गया।
राम जी ने कहा हनुमान तुमने लंका क्यों जलाई ?क्या तुम्हें लंका जलाने का पाप नहीं लगा?हनुमान जी ने कहा नहीं प्रभु ।मुझे पाप नहीं लगा। मैंने ऐसा सुना है कि जिंदे आदमी को जलाने में पाप लगता है। और यदि मुर्दों को नहीं जलाते हैं तो पाप लगता है। मैंने देखा लंका में जिंदा कोई नहीं है ।आप ही ने कहा है जो परमात्मा का भजन नहीं करता है उसे मुर्दा ही समझना चाहिए। तो वहां सब मुर्दे ही थे ।केवल एक व्यक्ति जिंदा था विभीषण। मैंने उसका घर नहीं जलाया तो मुझे पाप क्यों लगेगा। मैंने तो मुर्दों को जलाया है।
भगवान बोले हनुमान तुम्हें लंका जलाने को किसने कहा था? क्या जामवंत जी ने तुम्हें कहा था? की लंका जलाकर आना ? हनुमान जी बोले नहीं प्रभु जामवंत जी ने तो केवल इतना कहा था कि श्री जानकी जी के समाचार लेकर वापस आ जाना। और वह संदेश प्रभु श्री राम जी को सुनाना है। किंतु जब मैं समुद्र लांग कर जा रहा था ।तब उस सर्पों की माता राक्षसी ने कहा था। की तुम भगवान का सब कार्य करके आना ।और इतना ही नहीं जब मैंने लंका में प्रवेश किया। तब भी उस लंकनि राक्षसी ने मुझसे कहा की श्री राम जी के सारे कार्य करके आओ। मैं समझ ही नहीं पा रहा था कि सब काम है क्या?
मुझे तो केवल इतना याद था कि माता के समाचार लेकर जाना है? जब मैं वृक्ष में पत्तों की ओट में बैठकर विचार कर रहा था कि क्या करूं?
करहुं विचार करों का भाई।
तभी आपकी भक्त त्रिजटा ने अन्य राक्षसियों से कहा। कि
*सपने वानर लंका जारी।*
तब मेरी समझ में आया कि एक काम यह भी करना है। क्योंकि प्रभु अपने भक्तों के मुख से तो आप ही बोलते हो। बस मैं समझ गया की लंका जलाना है ।यह आपका आदेश है। लेकिन बिना कारण के जलाऊंगा कैसे?
तभी उस राक्षसी ने कहा कि हनुमान जी ने राक्षसों को मार डाला है।
*सपने वानर लंका जारी।*
*जातुधान सेना सब मारी।।*
बस तभी मेरी समझ में आ गया कि राक्षसों को भी मारना है। तभी लंका जलाने का कार्यक्रम बनेगा। बस यह सब आपकी इच्छा से हुआ है प्रभु। भगवान हनुमान जी से प्रश्न करते हैं। हनुमान इसका अर्थ यह हुआ कि तुम समुद्र लांग कर गए,
इसके पश्चात श्री जानकी जी के दर्शन किए समाचार लिए फिर बाग उजाड़ा और राक्षसों को मारा इसके बाद लंका को जलाई ।हनुमान जी ने कहा हां प्रभु ऐसा ही किया। भगवान बोले हनुमान फिर तुम्हारे कहने का क्रम तो ठीक नहीं लगा ।तुम कह रहे हो कि समुद्र लांघ कर लंका जलाईं।
*नाघि सिंधु हाटकपुर जारा।।*
*निसिचर गन बधि बिपिन उजारा।*
यह क्रम तो तुम्हारा ठीक नहीं है हनुमान जी ने कहा नहीं प्रभु क्रम ठीक ही है ।सिंधु पार करके जाने के बाद जब मैंने आपकी भक्त त्रिजटा के मुख से सुना ।कि सपने वानर लंका जारी ।तब मैंने यह जान लिया कि भगवान के संकल्प में तो लंका जल ही चुकी है ।मेरे हाथों चाहे जब जले। इसलिए मैंने यह बात उसी क्रम में कही है ।मेरा क्रम गलत नहीं है।
*राम जी हनुमान जी संवाद का बाकी प्रशंग अगली पोस्ट में*
*जय श्री राम।।🏹*