राम जी से आज्ञा लेकर सब वानर भालू सीता जी की खोज में वन वन भटक रहे हैं।
जहां कहीं कोई राक्षस मिल जाता है तो एक चपत लगाकर उसके प्राण ले लेते थे।
कतहुं होइ निशिचर से भेंटा।
प्रान लेहिं एक एक चपेटा।।
और जहां कोई मुनि महाराज मिल जाते तो सब उन्हें घेरकर श्री सीता जी का पता पूछने लगते।
कोउ मुनि मिलइ ताहि सब घेरहिं
किसी को श्री सीता जी का पता नहीं लगा। सभी वानर भूख प्यास के मारे व्याकुल हो रहे थे।
लागि तृषा अतिशय अकुलाने।।
किंतु हनुमानजी को भूख प्यास ने विचलित नहीं किया। क्योंकि हनुमान जी ने राम जी की दी हुई मुद्रिका अपने मुख में रख ली थी। किसी ने हनुमान जी से कहा कि तुम तो बुद्धिमान हो। फिर क्या तुम्हें यह नहीं मालूम।?
क्या मुद्रिका मुख में रखने की वस्तु है?
हनुमान जी ने कहा मुद्रिका तो मुख में रखने की वस्तु नहीं है। किंतु इस मुद्रिका पर जो राम नाम लिखा हुआ है। वह मुख में रखने की ही चीज है। और जिसने सच्चे भाव से राम नाम को अपने मुख में रख लिया ।फिर उसे संसार की किसी भी प्रकार की प्राकृतिक पीड़ा नहीं सताती है। सभी ने हनुमान जी की बुध्दि की प्रशंसा की।हनुमान जी ने अनुमान लगाया सब वानर भूख प्यास से मर जायेंगे।सब वानर भालू की प्राण रक्षा करना हनुमान जी ने अपना कर्तव्य समझा ।एक विशाल वृक्ष पर चढ़कर हनुमान जी ने चारों और देखा।
चढि गिरि शिखर चहुं दिशि देखा।
उन्होंने देखा कि एक गुफा के द्वार से कुछ पक्षियों का आना जाना लगा हुआ है। हनुमान जी को लगा कि यहां अवश्य जल है। वह सभी को लेकर उस गुफा के द्वार पर गए ।अब प्रश्न यह था कि इस गुफा में प्रवेश करने का साहस किसमें है?
कोई उस गुफा में प्रवेश करने का साहस नहीं कर पा रहा है। सबने अंगद जी की और देखा ।अंगद जी कहने लगे मेरी और मत देखो। मुझे तो गुफा के नाम से ही डर लगता है ।
क्योंकि मेरे पिता श्री और महाराज सुग्रीव जी का विवाद भी गुफा को लेकर ही हुआ था ।
तब से मैं गुफा का नाम सुनते ही डरता हूं। मैं इसमें नहीं जाऊंगा ।हनुमान जी अनुकूल परिस्थिति में सबसे पीछे रहते हैं। किंतु प्रतिकूल परिस्थिति में सबसे आगे हो जाते हैं ।हनुमान जी ने कहा चलो आओ मेरे पीछे। हनुमान जी सब वानर भालूओं को अपने साथ लेकर उस गुफा में गए।
आगे के हनुमंतहि लीन्हा।।
गुफा के अंदर जाकर देखा। गुफा स्वयं में प्रकाशमान थी। उन्हें वहां एक देवी दिखाई दी ।
मंदिर एक रुचिर तंह,
बैठि नारि तप पुंज।।
पोराणिक ग्रंथों में विवरण आता है। कि वह देवी स्वयंप्रभा नाम की एक देवी थी। भगवान विश्वकर्मा की पुत्री हेमा ने अपनी इस सहेली स्वयं प्रभा को यह गुफा सोंप कर गयी थी।
और कहा था कि एक दिन श्री सीता जी की खोज करते हुए वानर दल आएगा ।तुम उन्हें जल पान करा कर यहां से आगे का मार्ग दिखाना। तब तुम्हें भगवान की प्राप्ति होगी ।सभी वीर वानरों ने उस देवी को प्रणाम किया।
दूरी ते ताहि सबन्हि सिरु नावा।।
उस देवी ने सबसे पहले सब वानरों को जल और फलाहार ग्रहण कराया।
तेहि तब कहा करहु जल पाना।
खाहु सुरस सुंदर फल नाना।।
इसके पश्चात स्वयं प्रभा देवी ने कारण पूछा?
कि आप लोग किस प्रयोजन से यहां आए हो? हनुमान जी ने कहा हम भूख प्यास से व्याकुल थे। और श्री सीता जी की खोज में निकले हैं। स्वयं प्रभा जी ने कहा तुम्हारा लक्ष्य उत्तम है। वैसे तो इस गुफा में प्रवेश करने के पश्चात कोई निकल नहीं पाता है। किंतु मैं तुम्हारी सहायता करूंगी। तुम अपने नेत्र बंद कर लो। मैं तुम्हें सीता जी तक पहुंचा देती हूं।
और मैं अब भगवान के धाम को जाती हूं।
मैं अब जाब जहां रघुराई।।
सभी वानरों ने स्वयं प्रभा जी की बात पर विश्वास करके नेत्र बंद कर लिए ।तुलसीदास जी मानस प्रसंग में अपने मन की उपमा बंदरों से देते हैं। मन भी चंचल होता है ।और वानर भी चंचल होता है ।मन भी एक स्थान पर अधिक देर टिक नहीं पाता है। वानरों ने स्वयं प्रभा जी की बात पर कुछ समय के लिए विश्वास तो किया। नेत्र बंद कर लिए। किंतु तुरंत ही नेत्र खोल लिए। उन्हें लगा कि ऐसा ना हो कि हम कहीं खतरे में पड़ जाएं ।और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोलें ।तो अपने आप को समुद्र के किनारे खड़े पाया।
नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा।
ठाढे सकल सिंधु के तीरा।।
बड़ी अद्भुत बात थी। यहां बैठकर नेत्र बंद किए थे ।और जब अपने आपको पाया तो खड़े हुए पाया। विद्वान मर्मज्ञ संत कहते हैं कि यदि स्वयं प्रभा जी की बात पर पूर्ण विश्वास किया होता ।नेत्र नहीं खुलते तो शायद वानर श्री सीता जी तक पहुंच जाते।
किंतु तुरंत नेत्र खोलने पर समुद्र के किनारे तक ही पहुंचे थे। और जब हमें नेत्र बंद करने पर स्वयं के प्रकाश पर विश्वास नहीं होता है ।तब हमारे सामने संशय रूपी समुद्र आ जाता है। यदि ध्यानस्थ स्थिति में जो प्रकाश पुंज दिखाई देता है उस प्रकाश पुंज को ईश्वर का स्वरूप मान लिया जाए, उस पर पूर्ण विश्वास कर लिया जाए तो जीव कि कल्याण हो जाता है।🙏
इसके आगे का प्रश्गं अगली पोस्ट में ।जय श्री राम।।