तब सुग्रीव जी ने राम जी से कहा कि परीक्षा दो। तब मैं मानूंगा कि आप बाली को मार सकते हो। राम जी ने लक्ष्मण जी की और देखा। लक्ष्मण जी ने कहा भैया आप मेरी और क्या देख रहे हो ?दो परीक्षा। आप ही विश्वास किए जा रहे हो इस पर्। इसे आप पर विश्वास ही नहीं है । मुझे तो यह आदमी पहले से ही ठीक नहीं लग रहा था।और मुझे तो लगता है कि माता सीता ने इन्हें देखकर जो वस्त्र और आभूषण गिराए थे। उसका कारण यह रहा होगा ।कि माता सीता ने मन में विचार किया होगा कि, जब तुम अपनी वानर सेना के सहित बैठे-बैठे देख रहे हो ।तुम्हारे सामने एक दुष्ट राक्षस एक नारी का अपहरण करके ले जा रहा है। और तुम कुछ कर नहीं पा रहे हो ।तुमसे अच्छा तो वह एक जटायु पक्षी था। जिसने अपने प्राणों का बलिदान देकर भी उस राक्षस का सामना किया ।इसलिए इससे अच्छा तो यह है कि तुम यह जनाने वस्त्र धारण कर लो ।और आभूषण पहन लो। बस माता सीता का इन्हें देख कर वस्त्र और आभूषण गिराने का अभिप्राय यही रहा होगा ।किंतु ठीक है प्रभु। आपने इससे मित्रता की है। तो परीक्षा देकर देख लीजिए। इस पर इस परीक्षा की क्या प्रतिक्रिया होती है ।राम जी ने सुग्रीव जी से कहा चलो भाई ठीक है बताओ। मैं तुम्हें किस तरह की परीक्षा दूं। जिससे कि तुम्हें विश्वास हो जाए। सुग्रीव जी ने दुंदुभी राक्षस की हड्डियों पर उगे हुए ताल के वह सात वृक्ष दिखाएं। और कहा कि प्रभु इन वृक्षों को बाली एक ही बाण से भेद देता है। यदि तुम भी ऐसा कर पाते हो तो मुझे विश्वास हो जाएगा। भगवान श्री राम जी ने ताल के सातों वृक्षों को एक ही बाण से भेद दिया।
दुंदभि अस्थि ताल देखराए।
बिनु प्रयास रघुनाथ ढहाए।।
अब सुग्रीव जी के मन में विश्वास हो गया कि यह बाली को अवश्य मार देंगे।
देखि अमित बल बाढी प्रीति।।*l
फिर सुग्रीव जी मन ही मन विचार करने लगे। अब तो बाली मर ही जाएगा। रामजी उसे मार ही देंगे। किंतु यह कलंक मैं अपने माथे पर क्यों लूं? मैं इनसे ऐसा क्यों कहूं कि तुम बाली को मार दो ।यह तो रघुकुल शिरोमणि रामजी हैं ।जब इन्होंने प्रतिज्ञा की है तो उसे मारेंगे ही सही ।और मैं साफ बच जाऊंगा। यदि मेरे सामने कोई बात आएगी भी तो मैं तो यही कहूंगा। कि मैंने बाली को मारने को थोड़ी कहा था। रामजी ने उसे मारा है ।बाली की और राम जी की कोई ऐसी बात रही होगी। जिसके कारण राम जी ने बाली को मारा है। रामजी ने ताल के वृक्षों को ढहा दिए। और सुग्रीव जी की और देखकर पूंछा। ?अब तो निश्चिंत हो ?अब तो तुम्हें विश्वास हो गया होगा? सुग्रीव जी अनजान बनते हुए कहने लगे किससे निश्चिंत हूं? रामजी ने कहा तुम्हारे शत्रु वाली से। सुग्रीव जी कहने लगे भगवान कैसी बात करते हो। बाली मेरा शत्रु नहीं है। वह तो मेरा परम हितेषी है ।उसके कारण तो आप मुझे मिले हो।
बालि परम हित जासु प्रसादा।
मिलेहु राम तुम्ह समन बिषादा।।
और यह संसार में शत्रु मित्र दुख सुख यह सब होते नहीं है। स्वप्न की भांति भासते हैं। महसूस होते हैं।
सपने जेहि सन होई लराई।
जागे समुझत मन सकुचाई।।
रामजी ने लक्ष्मण जी की ओर देखकर मन ही मन कहा देखो लक्ष्मण। अभी कुछ देर पहले इनका ज्ञान कहां चला गया था ।अभी तो कह रहे थे कि बाली मेरा शत्रु है ।और अब वेदांत की बातें कर रहे हैं। लक्ष्मण जी ने मन ही मन कहा देख रहा हूं प्रभु। सुन रहा हूं आप ही सुनो इसकी वेदांत की बातें। राम जी ने सुग्रीव जी से कहा। सुग्रीव जी हम वेदांत की आध्यात्मिकता की बातें करेंगे। और करते रहना चाहिए। किंतु जीवन में व्यवहारिकता का भी एक महत्व है ।व्यवहार के आधार पर भी जगत में जीना होता है ।उस दृष्टि से मैं तुमसे पूछ रहा हूं। कि, अब तुम्हारा क्या ख्याल है? सुग्रीव जी कहने लगे प्रभु ।अब तो मेरा बस एक यही विचार है कि सब कुछ छोड़ छाड़ कर केवल आप का भजन करूं ।और कुछ नहीं चाहिए।
अब प्रभु कृपा करहु एहि भांति।*l
सब तजि भजनु करौं दिन राती।।
यह सुनकर लक्ष्मण जी धीरे से मुस्कुराए ।राम जी ने पूछा लक्ष्मण , हंस क्यों रहे हो? लक्ष्मण जी ने कहा प्रभु सुग्रीव जी की बात पर हंसी आ रही है ।अब यह कह रहे हैं कि सब कुछ छोड़कर केवल आपका भजन करूं। अब आप इन से पूछो कि इनके पास सब कुछ है क्या ? अभी कुछ देर पहले तो कह रहे थे कि बालि ने मुझसे सब कुछ छुड़ा लिया है। जब सब कुछ छुड़ा लिया तो इनके पास है क्या जो छोड़ना चाहते हैं?इनकी बातों से मुझे ऐसा लग रहा है। कि यह चाहते हैं कि पहले सब कुछ दिला दो। फिर मैं छोड़ूंगा। लक्ष्मण जी की बातें सुनकर राम जी भी मुस्कुराने लगे ।
सुनि बिराग संजुत कपि बानी।
बोले बिहंसि रामु धनपानी।।
इसके आगे का प्रसंग अगली पोस्ट में जय श्री राम।।