12 जून को मोरारी बापू की पत्नी का निधन हुआ और 14 जून को ही महाराज पहुंच गए काशी विश्वनाथ के दर्शन करने। हर हिंदू समझता है कि सूतक में क्या करना चाहिए लेकिन ये तो "अली मौला" वाले है न और चिता को अग्निनियर फेरे करवाते है। जब विद्वानों ने विरोध किया तो इन्होंने माफी तो मांगी लेकिन माफी में भी शब्दों की चतुराई आप देख सकते हैं... ऐसे लोगों से हिंदुओं को बचना चाहिए
पत्नी का निधन हुए 2 दिन भी नहीं हुए की मोरारी निकल पड़े राम कथा करने ... इसपर जितेंद्राचार्य जी ने तो साफ साफ कहा कि इन्हें धर्म से ऊपर अर्थ प्रिय है इसलिए सूतक में भी कथा करा रहे हैं। जितेंद्राचार्य जी ने कहा इससे पहले उन्होंने यह जानते हुए भी कि 32 प्रकार की अग्नि होती है, उन्होंने चिता की अग्नि के सामने फेरे डलवाए थे। व्यास पीठ पर बैठकर अल्लाह-मौला करना उचित नहीं। मंगल का अमंगल से कनेक्शन जोड़ते हैं।
स्वामी जितेंद्रानंद ने सवाल उठाए कि ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मचारी और राजा को सूरत नहीं लगता, तो मोरारी बापू को बताना चाहिए वो किसमें आते हैं? सिर्फ संन्यास परंपरा में ही जीवित खुद का पिंडदान करता है। मोरारी बापू समाज को धोखा न दें, धर्म को धंधे में न बदलें, यही बेहतर होगा।
मोरारी बापूर ने विरोध के बाद माफी मांगी वो भी आप पढ़िए
उन्होंने कहा कि हम यहां आए। शिवजी के दर्शन करने गए। जल चढ़ाया और कथा गाने लगे। यह बात कई पूज्य चरणों और कई महापुरुषों को ठीक नहीं लगी। किसी को ठेस लगी हो तो मैं आप सबके प्रति क्षमा प्रार्थी हूं।