#शुभ_रात्रि
सौंदर्य एक स्वाभाविक गुण है। जो स्वाभाविक रूप से सुन्दर होगा, वह सुन्दरता के किसी प्रसाधन का प्रयोग नहीं करेगा। उसका ओज-तेज सुन्दरता बनकर उसके मुख-मण्डल पर दमकता रहेगा। फूल-सा खिला हुआ उसका चेहरा स्वाभाविक रूप से दूसरे की दृष्टि आकर्षित कर लेगा। स्वाभाविक रूप से सुन्दर व्यक्ति को किसी भी कृत्रिम उपाय की आवश्यकता नहीं होती और यदि वह किसी प्रसाधन का प्रयोग करेगा तो उसका आकर्षण बढ़ने के बजाय घट जायेगा।
किस देश में कितना स्वाभाविक सौंदर्य है, इसका अन्दाज इसी से लगाया जा सकता है कि उस देश में कृत्रिम सौंदर्य सामग्री की कितनी खपत है। जिस देश में जितनी अधिक प्रसाधन सामग्री बिकती हो समझ लेना चाहिये कि उस देश के लोग उसी अनुपात में स्वाभाविक सुन्दरता से वंचित है और जिस देश में जितनी कम श्रृंगार सामग्री बिकती हो बिना किसी हिचक के विश्वास कर लेना चाहिये कि उस देश के लोग उतने ही स्वाभाविक रूप से सुन्दर है।
सुन्दरता का आगमन बाहर से नहीं अन्दर से होता है। उसका कारण 'प्रसाधन' नहीं बल्कि स्वास्थ्य है। स्वस्थ व्यक्ति, चाहे वह स्त्री हो अथवा पुरुष, कैसे भी फटे पुराने कपड़े क्यों न पहने हुए हो, कितना ही श्रम तथा पसीने से लथपथ क्यों न हो देखने में सुन्दर ही लगेगा। में उसकी स्वाभाविक सुन्दरता बाह्य दशा में छिप नहीं सकती। उसका भरा हुआ चेहरा, पुष्ट शरीर, सुडौल अवयव, कपोलों की लाली, माथे की चमक और आँखों की सम्पन्नता क्षीण वेशभूषा के ऊपर चढ़कर चमकेगी।
अस्वस्थ व्यक्ति क्यों न मखमल पहने हो, क्यों न कितना ही क्रीम और पाउडर का प्रयोग किये हुए हो, उसके पिचके गाल, उभरी हड्डियाँ, भद्दा शरीर, धँसी आँखें इस बात की गवाही देंगी कि यह व्यक्ति असुन्दर है। इतना ही नहीं अस्वस्थ व्यक्ति पर अच्छी वेशभूषा एक- - जैसी लगकर उसका उपहास ही उड़ाया करती है।
सुन्दरता स्वास्थ्य की देन है और स्वास्थ्य संयम और प्रकृति के संपर्क की देन है। प्रकृति की गोद में स्वास्थ्य और सुन्दरता दोनों का निवास है। जो व्यक्ति अधिक से अधिक अकृत्रिम और प्राकृतिक जीवन व्यतीत करते हैं, वे अवश्य ही स्वस्थ एवं सुन्दर रहते हैं। प्राकृतिक जीवन बिताने वाला संयमी वृद्ध भी असंयमी युवक से अधिक आकर्षक और सुन्दर लगा करता है। उसके चाँदी जैसे चमकते बाल, भरे हुए अरुणामय गाल और उभरा हुआ ललाट युवकों के लिये ईर्ष्या का विषय बन जाता है।
अपना भारत देश सदा ही धीरों-वीरों और बलवानों का देश रहा है। राम, कृष्ण, भीम, अर्जुन, भीष्म, द्रोण, प्रताप, शिवा, छत्रसाल जैसे वीर योद्धा इसी भूमि के रत्न थे। सिकन्दर की विश्वविजयी वाहिनी को रोक देने वाले पोरस और सेल्युकस जैसे दुर्धर्ष ग्रीक सेनानी को परास्त करने वाले चन्द्रगुप्त इसी भूमि पर उत्पन्न हुये। राममूर्ति, गामा और जोधासिंह पहलवान इसी भारत में हुए हैं, जिन्होंने मल्ल युद्ध संसार में ऊँचा किया है।
किन्तु आज उसी भारत भूमि पर पतली टाँगों और बैठी आँखों वाले नौजवान ही अधिक देखने में आते है। देश की तरुण पीढ़ी का स्वास्थ्य और उसके लक्षण देख कर आगे की सम्भावनायें भी कुछ अधिक आशापूर्ण नहीं दीखती । आज फैशन ने संसार में सबसे अधिक इस भारत, इस ऋषि भूमि को ही घेर रखा है। आमदनी को देखते हुए, जिस अनुपात से फैशन और प्रसाधन पर जितना पैसा भारत में व्यय किया जाता है, शायद उतना पैसा संसार में किसी भी देश में व्यय नहीं किया जाता ।
फैशन का रोग इस कदर बढ़ गया है कि घर में भले ही कठिनता से रोटी मिल पाती हो, लेकिन बाहर आधुनिक तरह की पोशाक पहनकर निकलना आवश्यक है। लोग एक कपड़े की सिलाई पर इतना पैसा व्यय करते हैं कि उतने 'में' एक और कपड़ा बन सकता है। फैशन के दीवाने ऐसे सैकड़ों नवयुवक देखने को मिल सकते हैं, जो एक बार अपनी हविस पूरी करने के लिये बहुत-सा पैसा विचित्र पोशाक बनवाने में लगा देते हैं और फिर उसका निर्वाह न कर सकने पर वही फटी-पुरानी फैशनेबुल ब्रुश-शर्ट और पतलून वर्षों पहनते हुए अपनी और अपने फैशन की मखौल कराया करते हैं। जितने पैसे को उन्होंने एक बार फैशन की हविस पूरी करने में व्यय किया था, यदि उससे वे साधारण से कपड़े बनवाते तो अवश्य ही कई वर्ष तक अच्छी दशा रह सकते थे। इस प्रकार के उपहासास्पद फैशन से यदि कोई आकर्षक दीखने के स्वप्न देखता है तो वह बहुत बड़ी गलती करता है।
. 🚩हर हर महादेव🚩