इस खतरनाक कांड को हुए 2 से 3 दिन बीत गए लेकिन देश भर का हिंदू खामोश है, आखिर क्यों? क्या किसी ईसाई चर्च या किसी मुस्लिम मस्जिद का अध्यक्ष कोई धर्म परायण हिंदू बन सकता है? और बनाया गया तो क्या ईसाई और मुस्लिम समुदाय के लोग चुप बैठेंगे, वो स्वीकार करेंगे हिंदू अध्यक्ष?
आखिर क्यों हिंदुओं को राजनीति का मोहरा बनाया जाता है? आंध्र प्रदेश की सरकार को अपना निर्णय वापस लेना होगा। हिंदुओं को मंदिरों से सरकारी कब्जा हटाने के लिए एक बड़े आंदोलन की जरूरत है।
करुणाकर रेड्डी का परिवार ईसाई धर्म को मानता है, ऐसे में देश के सबसे अमीर मंदिर की कमान जैसे ही उनके हाथ में आई, वैसे ही हंगामा शुरू हो गया। हालांकि करुणाकर ने इस मामले में सफाई दी है। उन्होंने खुद को हिंदू धर्म का फॉलोवर बताया। लेकिन ये सच नहीं हैं।
मामले में टीडीपी प्रदेश सचिव बुच्ची राम प्रसाद ने कहा कि ये सरकार की संवेदनहीनता का उदाहरण है। जो शख्स हिंदू धर्म को ही नहीं मानता, उसको हिंदुओं के सबसे बड़े आस्था के केंद्र का अध्यक्ष कैसे बना दिया गया। सबको पता है कि वो और उनका परिवार ईसाई धर्म को मानते हैं। उन्होंने यहां तक आरोप लगाया कि रेड्डी की बेटी की शादी भी ईसाई धर्म के मुताबिक हुई है।
वहीं आंध्र प्रदेश बीजेपी चीफ डी पुरंदेश्वरी ने भी इस फैसले की आलोचना की। उन्होंने कहा कि जगन मोहन रेड्डी ने बोर्ड के अध्यक्ष पद को राजनीतिक बना दिया है। वो इसका इस्तेमाल राजनीतिक लाभ के लिए कर रहे। उन्हें तुरंत रेड्डी को उनके पद से हटाना चाहिए।