बड़बोले स्वामी प्रसाद मौर्य को मायावती ने कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि चुनावी माहौल में एक समुदाय की फिजा खराब करने से वे बाज आ जाएं! मंदिरों के बारे में अनर्गल प्रलाप कर रहे समाजवादी नेता मौर्य से मायावती ने कहा कि किसी की भावनाओं से खिलवाड़ की कोशिश बहुत बुरी बात है!
खिसियाए स्वामी प्रसाद ने कहा कि मायावती उनकी नेता रही हैं अतः उनके खिलाफ तो वे कुछ नहीं कहेंगे! परंतु अधिकांश हिंदू मंदिर पहले बौद्ध मंदिर थे, जिन्हें हिंदुओं ने तोड़ा! अपनी खीज को आगे बढ़ाते हुए मौर्य ने यहां तक कह दिया की सातवीं शताब्दी में आद्य शंकराचार्य ने बौद्ध मंदिर तोड़कर बद्रीनाथ मंदिर का निर्माण कराया?
अब स्वामी प्रसाद मौर्य का इतना बड़ा कद तो नहीं कि हम उन पर चर्चा करने बैठ जाएं। उन्होंने तो अपनी कुत्सित जुबान से काशी विश्वनाथ और ज्ञानवापी पर भी मूर्खतापूर्ण टिप्पणी कर डाली। लेकिन जवाबदेही तो अखिलेश यादव की हैं, जिनके महासचिव हैं स्वामी प्रसाद? स्वामी का क्या जाता है। बसपा से भाजपा और भाजपा से सपा में आए हैं। ऐसा कोई वोटबैंक भी उनके पीछे नहीं जो अखिलेश के काम आए।
मौर्य कभी तुलसीदास को गलत ठहराते हैं, कभी मनुस्मृति को? अब तो गिरावट की हद ही हो गई। वे बद्रीनाथ और विश्वनाथ सहित तमाम मंदिरों के अस्तित्व पर ही सवाल उठाने लगे हैं। ना जाने अखिलेश क्यों सहेज रहे हैं ऐसे समाज तोड़क आदमी को? मायावती ने ठीक किया को मौर्य को हदों में रहने की सलाह दे डाली।
दरअसल लोगों ने हिंदू धर्म को सॉफ्ट टारगेट समझ लिया है। उन्हें पता है कि यह सहिष्णु धर्म है, प्रतिक्रिया नहीं करता। तभी इस देश में आदिपुरुष जैसी फिल्में बन जाती हैं, मकबूल फ़िदा हुसैन जैसे चित्रकार एक एक पेंटिंग से करोड़ों करोड़ कमा लेते हैं। मोरारी बापू जैसे विद्वान व्यासपीठ पर बैठकर डम डम डिगा डिगा गा सकते हैं, इन्हीं लोगों ने ले लीन्हा दुपट्टा गा लेते हैं। तभी तो बड़े लोग कोर्ट तक में भगवान राम को काल्पनिक बता सकते हैं, चाणक्य के अस्तित्व को नकार सकते हैं और समुद्र में मिले राम सेतु को खामखयाली बता सकते हैं।
तभी तो राजनीति में बैठे लोग राममंदिर के स्थान पर अस्पताल और स्कूल बनाने की सलाह दे सकते हैं। तभी तो लोग हिन्दू आस्थाओं का उपहास उड़ा सकते हैं। तो स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे अदना नेता पर क्या टिप्पणी करें। जिसकी बुद्धि चौपट हो गई है, उसकी मनुहार की जरूरत भी नहीं। अफसोस तो अखिलेश पर है, जो न तो पिता की विरासत संभाल पा रहे हैं और न ही डॉट डॉट इंडिया में कोई मुकाम हासिल कर पाए हैं। अखिलेश की अपनी राजनीति भी बयानों के आधार पर चल रही है।