दुनिया के हर देश में सोने की प्रति वैसे ही दीवानगी है जैसी कि भारत में है।यहाँ तक कि दुनिया के हर देश की मुद्रा की वैल्यू भी उसके सोने के स्टॉक पर ही निर्भर करती है।कहने का मतलब है कि धरती पर रहने वाले मनुष्यों के लिए सोने का बहुत महत्व है।
लेकिन, क्या कभी आपने सोचा है कि सोना के प्रति हम इंसानों की ये दीवानगी कब से है?
और, उससे भी बड़ी बात... क्या आपने कभी सोचा है कि... आखिर ये सोना धरती पर आया कहाँ से?
क्योंकि, पेट्रोल, कोयला, पानी तथा अन्य खनिजों के बारे में तो हम जानते हैं कि वे जीवाश्म के कारण आये, केमिकल रिएक्शन के कारण आये अथवा पेड़ पौधों के लंबे समय तक धरती के नीचे दबे होने के कारण आये...!लेकिन, सोना के बारे में ऐसा कुछ बताना अभी तक निश्चित नहीं हो पाया है।
कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार जब कोई बड़ा तारा (सूर्य से कम से कम दुगुना बड़ा) अपनी आयु पूरी कर लेता है अर्थात् अपना ईंधन वो खत्म कर लेता है तो फिर वो अपनी ही गुरुत्वाकर्षण बल से ढह जाता है और उसमें उसमें विस्फोट हो जाता है।उसी विस्फोट में उस ढहते तारे से ढेर सारा मलबा और गामा किरण की बौछार निकलती है।और, सोना भी तारों के उसी विस्फोट से प्राप्त होती है।तारों के उस विस्फोट के बाद सोने के कण ब्रह्मांड में हजारों लाखों प्रकाशवर्ष तक फैल जाते हैं।जिसके बाद वे धूमकेतु अथवा क्षुद्रग्रहों में चिपक जाते हैं।
तथा किसी ग्रह से उस क्षुद्रग्रहों अथवा धूमकेतु के टक्कर के दौरान सोना के कण उस ग्रह पर पहुँच जाते हैं।इसीलिए, कभी कभी कोई स्टेरॉइड्स सिर्फ सोने के ही बने होते हैं।
लेकिन, आखिर सोने का इतना महत्व है क्यों?
तो, इसका जबाब है इसकी प्रकृति में।सोना एक अक्रिय धातु है अर्थात्, यह किसी भी चीज से प्रतिक्रिया नहीं करता है।परन्तु सोना, ऊर्जा का सबसे अच्छा सुचालक होता है अर्थात् बिजली आदि के करेंट पार करवाने के लिए सोना सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि उसमें ऊर्जा का ह्रास नहीं होता है।इसके अलावा सोना एक बहुत ही अच्छा रिफ्लेक्टर होता है एवं, किसी भी प्रकार के रेडिएशन को रोक पाने में सक्षम होता है।इसके अलावा सोने का कभी ऑक्सीडेशन नहीं होता है अर्थात उसमें जंग आदि नहीं लगते हैं।इसीलिए, सोना इतना महत्वपूर्ण माना जाता है।
अब सवाल यह है कि सोने में इतने गुण होते हैं इसीलिए सोना को सहेज कर रखना चाहिए ये बात मनुष्यों को बताया किसने?
क्योंकि, सोने के आभूषण का जिक्र तो आज से हजारों लाखों साल पुरानी सभ्यता में भी देखने को मिलते हैं।यहाँ तक कि सतयुग की कथाओं में भी सोना वर्णन मिलता है।और तो और वेद तक में सोने की चर्चा की गई है।
तो ये समझने लायक बात ये है कि जब हमारे पूर्वज जंगल में रहते थे और जैसे तैसे एक वनवासी जीवन जिया करते थे तो फिर उन्हें सोना के उपरोक्त गुणों के बारे में मालूम कैसे पड़ा कि सोना इन कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है इसीलिए सोने को सहेजा जाना अत्यावश्यक है?
जाहिर सी बात है कि हमारे पूर्वजों को अपना स्पेसशिप, टाइम मशीन, डाइफन स्फेयर, ब्रह्मास्त्र आदि बनाने में सोना लगता होगा इसीलिए, उन्होंने सोना को इतना महत्वपूर्ण बताया और उसे सहेज कर रखने पर इतना जोर दिया.और, पीढ़ी दर पीढ़ी सोने को सहेज कर रखने की ये परम्परा बन गई जो आज भी हमलोगों के बीच मौजूद है।
इसमें एक अंतिम सवाल का जबाब ये हो सकता है कि सोने की उपयोगिता और उसके निर्माण के बारे में आखिर सबसे पहले बताया किसने होगा?
तो, जाहिर सी बात है कि सोने के निर्माण और उसकी उपयोगिता एवं उसके संचय की बात हम इंसानों को उसी ने बताया जिसने हमें प्रकृति में मौजूद खाद्य-अखाद्य वस्तुओं, औषधियों, विष आदि के बारे में बताया इसीलिए एक झटके से मुँह उठाकर ये कह देना कि इंसान तो क्रमिक विकास से आये हैं और, आज से हजारों लाखों साल पहले के इंसान जंगलों एवं कंदराओं में रहते थे एवं अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष कर रहे थे पूर्णतया गलत और भ्रामक है।
क्योंकि, सच्चाई तो ये है कि उस समय के हमारे पूर्वज हमसे कहीं ज्यादा एडवांस थे क्योंकि, उनके द्वारा सोने की खोज किये जाने के हजारों लाखों साल बाद भी आज तक हमलोग प्रकृति में सोने से बेहतर धातु नहीं खोज सके हैं जिससे कि सोने को रिप्लेस किया जा सके।
फिर क्यों न गर्व करें हम अपने वैसे विद्वान पूर्वजों पर एवं अपने आराध्य देवों पर?
जय महाकाल...