मेरे प्रिय बापू के ये वचन पढ़कर आंखों में आज आंसू आ गये... आप भी पढ़िये, आपकी आंखें भी दुख और असहनीय पीड़ा से नम हो जाएंगी... और साथ ही आपको इस सवाल का भी जवाब मिलेगा कि "आज जो हो रहा है, वो क्यों हो रहा है"!!!
बंटवारे के समय 1947 में मेवात के मुसलमान पाकिस्तान जा रहे थे... ऐसे माहौल में इन्हें भारत में ही रोकने के लिये गांधीजी 19 दिसंबर 1947 को झरसा गांव गये... गांधीजी ने एक सभा की और मेव मुसलमानों से भारत में ही रुकने का विनम्र आग्रह किया... गांधीजी ने जो भाषण उस दिन दिया था वो प्रकाशित हुआ है "संपूर्ण गांधी वांग्मय के खंड 90 के पेज नंबर 252" पर... गांधीजी ने मेव मुसलमानों के सामने इस सभा में कहा...
"मुझसे ये कहा गया है कि मेव करीब करीब ‘जरायम पेशा जाति (अपराध करके आजीविका चलाने वाली जाति)’ की तरह हैं। अगर ये बात सही है तो आप लोगों को अपने आपको सुधारने की कोशिश करना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि आप मेरी इस सलाह पर नाराज़ नहीं होंगे। केंद्र सरकार से मैं ये कहूंगा कि अगर मेवों पर ये आरोप (अपराधी होने के) सही हैं तो भी इस दलील के आधार पर उन्हें निकालकर पाकिस्तान नहीं भेजा जा सकता। मेव लोग भारत की प्रजा हैं इसलिये सरकार का ये कर्तव्य है कि वो मेवों को शिक्षा की सुविधा देकर, उन्हें बसाने के लिये बस्तियां बनाकर अपने आपको सुधारने में मदद करे।"
गांधीजी के विनम्र आग्रह और सरकार पर बने दवाब की वजह से मेव मुसलमान पाकिस्तान नहीं गये... फिर इसी शाम को गांधी ने दिल्ली के बिड़ला भवन में अपनी प्रार्थना सभा में जो कहा वो भी "संपूर्ण गांधी वांग्मय के खंड 90 के पेज नंबर 254" पर दर्ज है... गांधीजी ने तब कहा...
"ऐसा कहने से तो काम नहीं चलेगा कि मेव गुनाह करने वाली कौम है। गुनाह करने वाला कौन है और कौन नहीं... ये कौन जानता है? क्या जो लोग गुनाह करते हैं क्या उनको आप भारत से बाहर निकाल देंगे? यहां से निकाल देंगे या मार डालेंगे? तुम यहां से चले जाओ, ये कहने से तो काम नहीं हो सकता। इनको (मेव मुसलमानों) तो सुधारना चाहिए और अच्छी शिक्षा देना चाहिए। जो शराफत का रास्ता है वो इनको बताना चाहिए।"