मामला मई 2020 का है , मई 2020 में मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले साजोर गाँव में 20 साल के विकास शर्मा से मनोज कोली और उसके घर की दो महिलाएँ- तारावती कोली और प्रियंका कोली ने मारपीट की थी और बाद में में उसे पेशाब पिला दी थी। इससे क्षुब्ध होकर विकास शर्मा ने आत्महत्या कर लिया था। विकास शर्मा ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि वह अपवित्र हो गया, इसलिए वह आत्महत्या कर रहा है।
“विकास शर्मा को दलित समाज के लोगों ने पेशाब पिलाया, मारपीट की, मानसिक प्रताड़ना दी। इससे तंग आकर विकास ने फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली। ये वीडियो भी वायरल हुआ था। 2020 शिवपुरी की इस घटना पर मृतक को अभी न्याय नहीं मिला। स्वच्छ समाज के लिए मनोज कोली और प्रवेश शुक्ला जैसे लोग कलंक हैं।”
प्रश्न ये उठता है की एक मामला जहां किसी के ऊपर पेशाब किया गया उसमें बड़े बड़े बुद्धिजीवी और उनके मुत्रजीवक चमचे जातिवाद छेड़ते हुए न्याय मांगने लगे और सरकार तथा प्रशासन ने भी त्वरित कार्यवाही करते हुए कड़े कदम उठाए ,लेकिन विकास शर्मा वाले मामले में जहां दलितों ने विकास शर्मा के ऊपर पेशाब नहीं किया बल्कि उसे पेशाब पीला दिया जिसके बाद पीड़ित ने आत्महत्या कर ली,
इस पर मामा का एक्शन क्यू नहीं? क्या ये अपराध के श्रेणी में नही आता या फिर इसमें पीड़ित ब्राह्मण है और अपराधी दलित है इसलिए? न ही nsa लगाया न ही घर गिराया और न ही कोई करवाई हुई। मामा का यह चरित्र बहुत ही घटिया है और बेहूदा है।”
ये सब देखते हुए कानून व्यवस्था की पोल खुल जाती है, समझ आ जाता है की कैसे भारत का कानून दबाव में काम करता है और बिलकुल निष्पक्ष नहीं है।
इसके अलावा एक और मामले में कानून की निष्पक्षता की पोल खुलती है जहां 7 मुसलमान मिलकर 2 दलितों को मार पीटकर, मुंह पर कालिख पोतकर, जूतों की मामला पहनाकर जुलुश निकालते हैं और मैला खिलाते हैं लेकिन वहां कोई NSA या बुलडोजर कार्यवाही की खबर नहीं आती..