GEETA VIDEO AND PANCHANG : गीता वीडियो एवम पंचांग
गीता अध्याय ३ कर्मयोग श्लोक ४२
🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸
📢👉प्रशासक समिति द्वारा तैयार किए गए शुद्ध, सात्विक और स्वदेशी प्रोडक्ट देखने और मंगाने हेतु क्लिक करें
हमारी ये पहल आपको कैसी लगी कमेंट में अवस्य बताएं। और यदि ये पहल आपको अच्छी लगी तो हमारा सहयोग कर इस पहल को सफल बनाएं। (हिंदू राष्ट्र भारत के महायज्ञ में छोटिसी आहुति..)
🔴विशेष सूचना : अगर कोई साथी श्रीमद्भागवत गीता पढ़ने के लिए "गीता प्रेस गोरखपुर की श्रीमद्भागवत गीता" पुस्तक चाहता है तो हमसे संपर्क करें जो साथी पैसे देने में असमर्थ हैं लेकिन संकल्पित होकर गीता पढ़ने के इच्छुक हैं तो गीता जी की पुस्तक प्रशासक समिति की तरफ से बिल्कुल मुफ्त आपके घर पर पहुंचाई जाएगी बस आपको उसे पढ़ने का संकल्प लेना होगा)
🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸🔸
आज का पंचांग
मंगलवार ०७/०७/२०२३
श्रावण कृष्ण ०४, युगाब्ध - ५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - पंचमी रात्रि 12:17 तक तत्पश्चात षष्ठी
⛅दिन - शुक्रवार
⛅अयन - दक्षिणायन
⛅ऋतु - वर्षा
⛅मास - श्रावण
⛅पक्ष - कृष्ण
⛅नक्षत्र - शतभिषा रात्रि 10:16 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद
⛅योग - आयुष्मान रात्रि 08:30 तक तत्पश्चात सौभाग्य
⛅राहु काल - सुबह 11:03 से दोपहर 12:45 तक
⛅सूर्योदय - 06:00
⛅सूर्यास्त - 07:29
⛅दिशा शूल - पश्चिम दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:36 से 05:18 तक
⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:24 से 01:06 तक
⛅व्रत पर्व विवरण -
⛅विशेष - पंचमी को बेल खाने से कलंक लगता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🔹कर्णवेध संस्कार क्यों व कैसे ?🔹
🔸हिन्दू धर्म- संस्कारों में कर्णवेध (कान छेदना) संस्कार नौवाँ संस्कार है । बालकों व बालिकाओं की शारीरिक व्याधियों से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है ।
🔸'आयुर्वेद' (सुश्रुत संहिता, चिकित्सा स्थान : १९.२४) के अनुसार कान छेदने से अंत्रवृद्धि (inguinal hernia) होने की सम्भावना नहीं रहती ।
🔸यह मान्यता है कि कर्ण-छेदन करने से सूर्य की किरणें कानों के उन छिद्रों से प्रवेश पाकर सामने बालक-बालिका को तेज-सम्पन्न बनाती हैं । बालक के पहले दायें कान में और बाद में बायें कान में छेद करें तथा बालिका के पहले बायें कान में फिर दायें कान में छेद करें । बालिका के बायें नथुने में भी छेद करके आभूषण पहनाने का विधान है ।
🔸मस्तिष्क के दोनों भागों को विद्युत के प्रभावों से प्रभावशाली बनाने के लिए नाक और कानों में सोना पहनना लाभकारी माना गया है ।
🔹वर्षा ऋतु में विशेष लाभदायी🔹
🔹पेट के व अन्य विकारों में लाभकारी अजवायन
🔸अजवायन उष्ण, तीक्ष्ण, जठराग्निवर्धक, उत्तम वायु कफनाशक, आमपाचक व पित्तवर्धक है । वर्षा ऋतु (२१ जून से २३ अगस्त) में होनेवाले पेट के विकारों, जोड़ों के दर्द, कृमि- रोग तथा कफजन्य विकारों में अजवायन खूब लाभदायी है ।
🔹औषधीय प्रयोग🔹
🔸 भोजन से आधे घंटे पहले अजवायन में थोड़ा-सा काला नमक मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लेने से मंदाग्नि, अजीर्ण, अफरा (gas), पेट के दर्द एवं अम्लपित्त (hyperacidity) में राहत मिलती है ।
🔸भोजन के पहले कौर के साथ अजवायन खाने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है ।
🔸अजवायन और तिल समभाग मिलाकर दिन में १-२ बार खाने से अधिक मात्रा में व बार-बार पेशाब आने की समस्या में राहत मिलती है ।
🔸अजवायन और एक लौंग का चूर्ण शहद मिलाकर चाटने से उलटी में लाभ होता है ।
🔸१५ से ३० दिनों तक भोजन के बाद या बीच में गुनगुने पानी के साथ अजवायन लेने से मासिक धर्म के समय होनेवाली पीड़ा में राहत मिलती है । (यदि मासिक अधिक आता हो, गर्मी अधिक हो तो उक्त प्रयोग न करें । सुबह खाली पेट २ से ४ गिलास पानी पीने से अनियमित मासिक स्राव में लाभ होता है ।)
🔹उपरोक्त सभी प्रयोगों में अजवायन की सेवन मात्रा: आधा से २ ग्राम ।
🔹अजवायन का तेल🔹
🔸लाभ: अजवायन के तेल की मालिश संधिवात (arthritis) और गठिया में खूब लाभदायी है ।
🔸तेल बनाने की विधि : २५० मि.ली. तिल के तेल को गरम करके नीचे उतार लें । इसमें १५ से २० ग्राम अजवायन डालकर कुछ देर ढक के रखें फिर छान लें । अजवायन का तेल तैयार ! इससे दिन में २ बार मालिश करें ।
🔹सावधानी : ग्रीष्म व शरद ऋतु में तथा पित्त प्रकृति वालों को अजवायन का उपयोग अत्यल्प मात्रा में करना चाहिए ।
🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉️