वाराणसी बोले तो बनारस में कई रेलवे स्टेशन हैं। मुख्य स्टेशन वाराणसी था।
मोदी जी ने जब सांसद बन वाराणसी के विकास का बीड़ा उठाया तो उस क्रम में मुख्य स्टेशन BSB अर्थात् वाराणसी का बोझ कम करने के लिए एक तरफ़ MUV मने मडुआडीह और दूसरी तरफ़ BCY मने वाराणसी City को Develop किया।
मडुआडीह तो शानदार स्टेशन बना और उसका नाम भी बदल के बनारस बोले तो BSBS कर दिया गया।
इसी तरह वाराणसी City जो कि एक छोटा सा बेनूर वीरान उपेक्षित स्टेशन था वो आज 6 प्लेटफॉर्म्स का एक शानदार स्टेशन है । गोरखपुर और हाजीपुर छपरा रूट से आने बाली कई ट्रेन अब यहीं से शुरू होती हैं , मने वाराणसी नहीं जाती।
उसी तरह प्रयागराज , दिल्ली , मुंबई की कई गाड़ियां अब बनारस से शुरू होती हैं ।
इसी तरह गंगा किनारे एक और उपेक्षित स्टेशन है - काशी
रेलवे अब इस काशी स्टेशन को विकसित कर 350 करोड़ रू लगा के इसे शानदार स्टेशन बनाने जा रहा है ।
इसी काशी स्टेशन के ठीक सामने ही सर्व सेवा संघ नामक संस्था थी जिसने गांधी विनोबा और JP के नाम पे रेलवे की 14 एकड़ जमीन कब्ज़ा रखी थी ।
सर्व सेवा संघ यहां gandhian फिलोसोफी के प्रचार प्रसार हेतु एक प्रकाशन चलाता था , जिसमे कि कुछ किताबें, magazine, अखबार, साप्ताहिक छपते थे।
कुल मिला के Eyewash ही था ।
सर्व सेवा संघ की कुल गतिविधि दो कमरों के एक कार्यालय से चल सकती है पर गांधी के नाम पे इन्होंने रेलवे की 14 एकड़ भूमि कब्ज़ा रखी है पिछले 50 साल से ।
सिर्फ इतना ही नहीं, SSS ने इस भूमि की ख़रीद के फर्जी कागज़ तक बनवा लिए हैं।
बहरहाल, जब काशी स्टेशन के विकास की योजना बनी तो रेलवे को अपनी जमीन की सुध आई ।
उन्होने कानूनी कार्यवाही की और जिला प्रशासन ने लंबी जद्दोजहद और कानूनी लड़ाई के बाद अंततः अपनी जमीन कल खाली करा ली।
हालांकि फर्जी गांधी वादियों ने बहुत नाटक नौटंकी प्रपंच धरना प्रदर्शन किया पर प्रशासन के आगे एक न चली।
मेरी सहानुभूति SSS के कर्मियों/ निवासियों से है ।
आखिर किसी का घर उजड़ गया है ।
पर देश के विकास के लिए इतनी कुरबानी तो देनी ही होगी ।
फर्जी गांधी वादियों ने देश में हजारों लाखों एकड़ ज़मीन कब्जा रखी है ।
देखते हैं कि नक़ली गांधी इन बेचारे SSS वालों को कहां adjust करते हैं।