कृष्ण के जन्म के समय और उनकी आयु के विषय में पुराणों व आधुनिक मिथकविज्ञानियों में मतभेद हैं। कुछ उनकी आयु १२५ और कुछ ११० वर्ष बताते हैं व्यक्तिगत रूप से द्वितीय मत अधिक उचित प्रतीत होता है।
कृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल था। और उनके शरीर से एक मादक गंध स्रावित होती थी अतः उन्हें अपने गुप्त अभियानों में इनको छुपाने का प्रयत्न करना पडता था, जैसे कि जरासंध अभियान के समय।
कृष्ण की माँसपेशियाँ मृदु परंतु युद्ध के समय विस्तॄत हो जातीं थीं, इसीलिए सामन्यतः लडकियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था।
कृष्ण के परमधामगमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थी।
कॄष्ण की परदादी 'मारिषा' और सौतेली माँ रोहिणी [बलराम की माँ] 'नाग' जनजाति की थीं।
कॄष्ण से बदली गयी यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं।
श्री कृष्ण के पालक पिता नंद 'आभीर' जाति से संबंधित थे जिन्हें आज अहीर कहा जाता है जबकि उनके वास्तविक पिता वसुदेव आर्यों के प्रसिद्ध 'पंच जन' में से एक 'यदु' से संबंधित गणक्षत्रिय थे जिन्हें उस समय 'यादव' कहा जाता था।
श्री कृष्ण की 'राधा' का जिक्र महाभारत, हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण और भागवतपुराण में नहीं है, उनका उल्लेख बृम्हवैवर्त पुराण, गीत गोविंद और जनश्रुतियों में रहा है।
जैन परंपरा के अनुसार कॄष्ण के चचेरे भाई तीर्थंकर नेमिनाथ थे जो हिंदू परंपरा में "घोर अंगिरस" के नाम से प्रसिद्ध हैं।
कृष्ण अंतिम वर्षों को छोड्कर कभी भी द्वारिका में ६ महीने से ज्यादा नहीं रहे।
अपनी औपचारिक शिक्षा मात्र कुछ महीनों में पूरी कर ली थी। ऐसा माना जाता है कि घोर अंगिरस अर्थात् नेमिनाथ के यहाँ रहकर भी उन्होंने साधना की थी।
अनुश्रुतियों के अनुसार कृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था और डाँडिया रास उसी का नॄत्य रूप है। 'कलारीपट्टु' का प्रथम आचार्य कॄष्ण को माना जाता है। इसी कारण 'नारायणी सेना' भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गयी थी।
कृष्ण के रथ का नाम "जैत्र" था और उनके सारथी का नाम दारुक/ बाहुक था।
उनके अश्वों के नाम थे शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक।
कृष्ण के धनुष का नाम शार्ंग और मुख्य आयुध चक्र का नाम 'सुदर्शन' था। वह लौकिक, दिव्यास्त्र और देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य कर सकता था। उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल २ अस्त्र और थे पाशुपतास्त्र [शिव, कॄष्ण और अर्जुन के पास थे] और प्रस्वपास्त्र [शिव, वसुगण, भीष्म और कॄष्ण के पास थे।
कृष्ण के खड्ग का नाम "नंदक", गदा का नाम "कौमौदकी" और शंख का नाम पांचजन्य था जो गुलाबी रंग का था।
प्रायः यह मिथक स्थापित है कि अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे परंतु वास्तव में कृष्ण इस विधा में भी सर्वश्रेष्ठ थे और ऐसा सिद्ध हुआ मद्र राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में जिसकी प्रतियोगिता द्रौपदी स्वयंवर के ही समान परंतु और कठिन थी। यहाँ कर्ण और अर्जुन दोंनों असफल हो गये और तब कॄष्ण ने लक्ष्यवेध कर लक्ष्मणा की इच्छा पूरी की जो पहले से ही उन्हें अपना पति मान चुकीं थीं।
युद्ध: कृष्ण ने कई अभियान और युद्धों का संचालन किया था परंतु ३ सर्वाधिक भयंकर थे; १. महाभारत २. जरासंध और कालयवन के विरुद्ध ३. नरकासुर के विरुद्ध।
१. १६ वर्ष की आयु में विश्वप्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया [मार्शल आर्ट] २. मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया [मार्शल आर्ट]।
कृष्ण ने आसाम में बाणासुर से युद्ध के समय भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वर ज्वर के विरुद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम "जीवाणु युद्ध" किया था।
कृष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और पाशुपतास्त्र निकाल लिये थे बाद में देवताओं के हस्तक्षेप से दोंनों शांत हुए।
कृष्ण ने २ नगरों की स्थापना की थी; द्वारिका [पूर्व मे कुशावती] और पांडव पुत्रो के द्वारा इंद्रप्रस्थ [पूर्व में खांडवप्रस्थ]।
उन्होंने कलारिपट्टू की नींव रखी जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई।
श्रीमद्भगवतगीता के रूप में आध्यात्मिकता की वैज्ञानिक व्याख्या दी जो मानवता के लिये आशा का सबसे बडा संदेश थी, है और सदैव् रहेगी...
जय श्री कृष्ण...