दुनियाँ में हर जाति व राष्ट्र ने अपने इतिहास को लिखा लेकिन हिंदुओं ने अपने इतिहास की अविस्मरणीय घटनाओं को अपने उत्सवों व संस्कारों में शामिल कर रक्त की बूँद बूँद में पिरो लिया।
हजारों हमले सहे, मुस्लिमों के हाथों तो अनगिनत मंदिरभंजन, करोड़ों हिन्दुओं के प्राणों व लाखों अभागी स्त्रियों जिन्हें जौहर करने का अवसर न मिला, उनके सतीत्व हरण की दारुण घटनाएं देखीं और झेलीं लेकिन अपने सिर को कभी झुकने न दिया।
लेकिन जो काम सहस्त्रों वर्ष में आक्रांता न कर सके वह पिछले बीस वर्षों में बॉलीवुड व टिकटॉक ने कर दिखाया।स्त्री एक देह बनकर रह गयी और अब वह विवाह जैसा सामाजिक संस्कार भी इससे प्रदूषित हो चुका है।
पहले तो वैवाहिक रस्मों को पिछड़ा व सामंती व बर्बर घोषित कर राजपूत युग की परंपराओं से जोड़ा जबकि यह शुद्ध रूप से उन कडवे दिनों की यादें है, जिनसे कभी हमारे पूर्वज गुजरे थे।
उसके बाद मेंहदी, प्रीवैडिंग शूट जैसी वाहियाद विकृत चीजें जोड़ी गईं जो आज हास्यास्पद स्तर से गुजरकर अश्लील स्तर तक पहुंच गईं जबकि ये परंपरा भी हमारे इतिहास की सबसे बड़ी घटनाओं से एक थी।
एक हिंदू विवाह मात्र उत्सव ही नहीं बल्कि पूरे हिंदू इतिहास का सजीव प्रदर्शन होता है।
1.वरमाला श्रीराम व सीता के विवाह सहित नारी गरिमा की सर्वोच्चता के प्रतीक स्वयंवर जैसी प्रथा का आनंदमय प्रतीकात्मक प्रदर्शन है।
2.बारात मुसलमान हिंदूओं के विवाह नहीं होने देते थे और घात लगाकर दूल्हे को मार डालते थे ताकि विधवाओं की संख्या बढे और वे उनका अपहरण कर सकें या हिंदू समाज में व्यभिचार फैले। इसी कारण उसके दोस्त बीड़ा या हल्दी चावल उठाकर उसको घेर कर चलने का कौल उठाते थे। ये होती थी बारात।
3.केसरिया बाना माँ द्वारा दूध ना बख्शने और घर की ओर मुड कर देखने का निषेध साके की वह प्रतिज्ञा जो युवक को प्राणों के मूल्य पर भी उसकी दुल्हन को साथ लाने को विवश करती थी।
4.दुल्हे का किसी के आगे ना झुकना क्योंकि परंपरा के अनुसार साका का व्रत लिये युवक राजा माना जाता था और वो किसी के सामने नहीं झुकता था।
5.तोरण या तोता मारना पिता द्वारा कन्या व प्रणीत वर को अस्वीकार करने पर युद्ध व विजय का शौर्य स्मरण। रुक्मिणी, संयोगिता, दुर्गावती आदि हिंदू देवियों के विवाह का स्मरण।
6.दुल्हन का डोली में बैठना और कटार लेकर बैठना ताकि दुल्हे के मारे जाने पर आत्मघात कर अपने सतीत्व की रक्षा कर सके।
7.खोइया पुरुषों के बारात में चले जाने पर असुरिक्ष्त गाँव में स्त्रियों का शस्त्र धारण करते हुए जागरण करना और खुद को जगाये रखने के लिये उल्टासीधा चिल्ला चिल्ला कर गालियां बकना।
8.कंकण खुलाई व मत्स्यवेध द्रौपदी स्वयंवर की परंपरा का आनंददायी स्मरण जिसमें वर तीर कमान से आटे की मछली पर निशाना लगाता है।
इनमें से आपको कौन सी परंपरा सामंती लगती है? कौन से परंपरा नारी गरिमा के विरुद्ध है? ये सिर्फ हिंदुत्व विरोधियों का गहन षड्यंत्र है। इन परंपराओं का गरिमापूर्वक पालन करो।
ये वैवाहिक परंपराएं राम-सीता के धनुर्यज्ञ और द्रौपदी स्वयंवर के इतिहास की मधुर मनोहर स्मृतियां हैं। ये परंपराएं उन लाखों राजपूत और अन्य हिंदू योद्धाओं के बहाए गये रक्त की स्मृति और पद्मिनियों के जौहर की तपिश भी है जो हमें अभी भी जलाती है। उनकी तकलीफों को कभी भूलना मत। ये परंपरायें तुम्हारा जिंदा इतिहास हैं। ये उनके संघर्षों की बोलती स्मृतियां भी है।
उनके संघर्षों को प्रणाम करो। रक्त देकर बनायी गयी परंपराओं की गरिमा की रक्षा करो। विवाह संस्कार में छिपे उनके इतिहास का मजाक मत बनाओ।
क्योंकि..
जो कौमें अपने इतिहास को भूल जाती हैं वक्त भी उन्हें भुला देता है।
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