सेक्युलर और समाजवाद ये दो शब्द संविधान में उस समय जोड़े गए थे जब आपातकाल के नाम पर पूरा विपक्ष जेल में बंद था और लोकतंत्र इंदिरा गांधी की मुट्ठी में छटपटा रहा था।
सेक्युलरिज्म का विरोध तो अब तीव्र हुआ है लेकिन समाजवाद को लोग इग्नोर कर रहे है और ये किसी दिन बहुत भारी पड़ने वाला है।
गूगल माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ भारतीय है लोगो के रोल मॉडल है लेकिन जो भारत के लिये काम कर रहे है वो भारतीयों के प्रमुख दुश्मन है। सुंदर पिचाई आज तक देश के कुछ काम नही आया है मगर हीरो है वही उड़ीसा के ट्रेन हादसे में मदद देने वाला गौतम अडानी दुश्मन है।
सत्या नाडेला माइक्रोसॉफ्ट का सीईओ है ये सबको पता है लेकिन टीसीएस का सीईओ पूछो तो आधे लोग तो रतन टाटा ही कहेंगे जबकि 1 जून को ही के. कृतिवासन ने पद संभाला है। सुंदर पिचाई का बंगला ऐसा है ऋषि सुनक के पास वैसी कार है ये गर्व की बात है वही हमारा उद्योगपति कोई बिजनेस डील भी करे तो वो तो चोर ही है।
कभी सोचा है हमारे अचेतन मन मे ये सब किसने कैसे फीट किया? पूंजीवाद शब्द सुनते ही अंग्रेज और पश्चिम क्यो घूमता है? जबकि जापान और ऑस्ट्रेलिया भी तो पूंजीवादी देश है। ये सब शीत युद्ध की काली यादे है, जब गुटनिरपेक्ष होकर भी हम सोवियत संघ के खेमे में हुआ करते थे।
सोवियत ने हमारी उंगली के साथ साथ सिर भी पकड़ा हुआ था ताकि भारत कभी पूंजीवाद की राह पकड़ कर अमेरिका के साथ ना खड़ा हो जाये। एक वजह यह भी थी कि पूंजीवादी व्यवस्था भारत को आत्मनिर्भर बनाएगी जो कि सोवियत संघ के हित मे तो कतई नही था।
यही कारण था कि हमारी विषम परिस्थितियों का दबाव बनाकर संविधान में यह शब्द जोड़ा गया, कक्षाओं में पूंजीवाद के दोष और लाभ दोनों पढ़ाये जाएंगे जबकि समाजवाद ना जाने कैसे बस महान है। भारत मे भी एक राज्य ने आज तक सिर्फ समाजवाद चुना बदले में उसे कंगाली, भुखमरी और गुंडों का आतंक ही मिला, क्या आज को कोई आदर्श मान सकता है?
दूसरी ओर गुजरात है जिसने पूंजीवाद चुना था और आज गुजरात किसी परिभाषा का बपौती नही है। सुंदर पिचाई या किसी भी NRI से मेरा व्यक्तिगत विरोध नही है बिल्कुल उनके पदचिन्हों पर चलकर प्रगति करना चाहिए लेकिन वही सुंदर पिचाई जब अंबानी, अडानी, टाटा, बिड़ला की कंपनियों में सीईओ बनते है तो आपके दुश्मन क्यो बन जाते है।
समाजवाद धर्मनिरपेक्षता जितना ही बड़ा एक ढकोसला है, 1947 के समय लोग ईस्ट इंडिया कंपनी जैसे तंत्र से डरे थे बस इसलिए यह बीमारी हमारे देश मे घुस गई। लेकिन 2023 का भारत बहुत परिपक्व है ऐसे फिसड्डी तंत्रों की हमे कोई आवश्यकता नही है।
दुनिया का ऐसा कोई देश नही है जो आजाद होते ही अपनी एयर लाइन ऑपरेट कर रहा हो लेकिन टाटा की बदौलत हमारे पास एयर इंडिया था। रूस यूक्रेन युद्ध यदि 15 साल पहले हो गया होता तो हम तेल के मोहताज होते लेकिन मुकेश अंबानी की वजह से आज भारत ऐसी स्थिति में भी तेल निर्यात कर रहा है।
इसलिए ये सम्मान के पात्र है उतना ही जितना देश के किसान और जवान है, ये जन गण नही भारत भाग्यविधाता है। इनकी अनुपस्थिति में आज का भारत भारत नही हो सकता था इसीलिए कथित धर्मनिरपेक्षता की तरह समाजवाद का भी त्याग कीजिये।