बड़ी विचित्र बात है मेरे देश में कि यहां जब मुसलमानों के कुकृत्य का भी विरोध होता है तो भी बुद्धिजीवी बड़े-बड़े सेलिब्रिटी मुसलमानों के साथ खड़े हो जाते हैं और जो विरोध कर रहा होता है उसे ही सांप्रदायिक सिद्ध करने में लग जाते हैं।
ऐसा ही कुछ मुंबई के मीरा रोड में स्थित एक सोसाइटी का मामला है जो 27 तारीख से ही हाईलाइट हो रहा है जिसमें मुस्लिम दंपत्ति सोसायटी के नियमों को भंग करते हुए ईद के लिए बकरा सोसाइटी में अपने घर पर ले आते हैं जिसके बाद उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए समझाया जाता है लेकिन नेतागिरी के पावर के मद में चूर मोहसिन सोसायटी के अन्य मेंबर्स के साथ बदसलूकी करता है जिसके बाद मामला बिगड़ जाता है और सोसाइटी के लोग मोहसीन के विरोध प्रदर्शन करने लगते हैं।
अब खबर आ रही है कि मोहसिन की नेतागिर चलती रही हिंदी गुटकी शिवसेना ने इन्हें बाहर निकाल दिया साथ ही इन पर एफ आई आर भी दर्ज कर दी गई है।
अब कुछ लोग जो प्रदर्शन करने वाले लोगों को सांप्रदायिक बता रहे हैं उन्हें बता देना चाहते हैं कि उसी सोसाइटी में 1 साल पहले गणेश मंदिर का उद्घाटन किया गया था उस समय मुस्लिम लोगों ने उसका विरोध किया था साथ ही उन्होंने मंदिर परिसर के पास मस्जिद बनाने की मांग की थी। लेकिन उस समय इन बुद्धिजीवी हो को मुसलमानों में सांप्रदायिकता नजर नहीं आई।
मंदिर बनने या मंदिर के उद्घाटन होने और बकरे काटने में बहुत अंतर है एक तरफ सब के कल्याण की कामना की जाती है और दूसरी तरफ एक निरीह पशुओं को तड़पा तड़पा कर मारा जाता है। एक तरफ सबके कल्याण की कामना की जाती है तो एक तरफ एक प्राणी से उसका जीवन चीन लिया जाता है ... लेकिन बुद्धजीवियों के अनुशार विश्व कल्याण का विरोध होना उचित है लेकिन पशु हत्या का विरोध गलत
खैर इस प्रकरण से ये समझा जा सकता है की हिन्दुओं को केवल मुर्ख बनाया जाता है , भाईचारे के नाम पर , समस्जिक शौहर्द्य के नाम पर , साम्प्रदाइकता के नाम पर