महान पुरखों द्वारा बनाई बनाई महान परंपराएं पूर्णतया वैज्ञानिक कसौटी पे खरी उतरती हैं आज भी।
महिलाएं दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करती हैं ? ये है भगवान जी को प्रणाम करने का सही तरीका
आपने अक्सर देखा है कि कई लोग मूर्ति अथवा अपने गुरुदेव के सामने लेट कर माथा टेकते है। इसी को साष्टांग दंडवत प्रणाम कहा जाता है।
इस प्रणाम में व्यक्ति का हर एक अंग जमीन को स्पर्श करता है। शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि व्यक्ति अपना अहंकार त्याग कर इस प्रकार प्रणाम करता है। इस क्रिया के द्वारा आप ईश्वर को यह बताते हैं कि आप उसे मदद के लिए पुकार रहे हैं। यह प्रणाम आपको ईश्वर की शरण में ले जाता है। लेकिन आपने यह कभी ध्यान दिया है कि महिलाएं इस प्रणाम को क्यों नहीं करती है ? इस बारें में शास्त्र में क्या बताया गया है ?
शास्त्रों के अनुसार स्त्री का गर्भ और उसके वक्ष कभी जमीन से स्पर्श नहीं होने चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि उसका गर्भ एक जीवन को सहेजकर रखता है और वक्ष उस जीवन को पोषण देते हैं। इसलिए यह प्रणाम को स्त्रियां नहीं कर सकती है। जो करती भी है उन्हें यह प्रणाम नहीं करना चाहिए। शास्त्रों में दंडवत प्रणाम विधि को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। हालांकि स्त्रियों के लिए दंडवत प्रणाम करना वर्जित होता है। लेकिन छठ पूजा के दौरान महिलाओं को भगवान भास्कर को दंडवत प्रणाम करने की बात कही गई है।
सनातन हिन्दू धर्म में भगवान जी के समक्ष प्रणाम करने और उनकी उपासना करने के लिए अलग-अलग समय पर अलग-अलग विधियां और नियम बताए गए हैं। इन्हीं में से एक है दंडवत प्रणाम या साष्टांग प्रणाम की विधि।
हिंदू परंपराओं में स्त्रियों को पूजनीय माना गया है। धार्मिक ग्रंथों में भी स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं को किसी के सामने दंडवत नहीं होना चाहिए। धर्मसिंधु नाम के ग्रंथ में महिलाओं को दंडवत प्रणाम क्यों नहीं करना चाहिए इसके बारे में विस्तारपूर्वक बताया गया है। धर्मसिंधु में एक श्लोक है “ब्राह्मणस्य गुदं शंखं शालिग्रामं च पुस्तकम् , वसुन्धरा न सहते कामिनी कुच मर्दनं” अर्थात ब्राह्मणों का पिछला हिस्सा शंख, शालिग्राम, धार्मिक पुस्तकें और स्त्रियों का वक्षस्थल यानी स्तन अगर सीधे धरती से स्पर्श करता है तो धरती इस भार को सहन नहीं कर पाती है।
ग्रंथों के अनुसार, ऐसी मान्यता है कि स्त्रियों का गर्भ और वक्षस्थल यानी स्तन जमीन में टच नहीं होना चाहिए। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि स्त्रियों का गर्भ एक जीवन को अपने भीतर सहेजे रखता है और और वक्ष उस जीवन को पोषण प्रदान करता है। अर्थात स्त्रियां जीवनदायिनी है इसलिए पूजनीय है। इसलिए स्त्रियों का दंडवत प्रणाम करना शास्त्रों में वर्जित बताया गया है।