GOOD NIGHT #शुभ_रात्रि
प्रेम क्या है? जीवन का इससे बड़ा गूढ सम्बन्ध क्यों है? किस अशान्त शक्ति के अंतर्गत मनुष्य जाने अनजाने ही इसे तलाश करता है । वह सदा प्रेम की एक गुदगुदी की प्रतीक्षा करता है व मिल जाने पर कभी न बिछुड़ने की आशंका की व्याकुलता सी अनुभव आती है। प्रेम एक मीठा सा दर्द है जो जीवन का सुरीला तार है, दुखियों की आशा और वियोगियों का आकर्षण तथा थकावट की मदिरा व्यथितों की दवा है जो हृदय में कोमलता भर कर आत्मा पर एक आनन्द का बोझ डाल देता है।
इस प्रेम दर्द ने ही शायद दुनिया को प्रकृति के कष्ट प्रिय होने का आभास कराया है। उन्होंने कहा है कि प्रकृति ने हर सुन्दर वस्तु के साथ इसकी कठिन वस्तु को अवश्य पैदा करके उसका लालित्य नष्ट करना चाहा है। उसने हमें वह प्रेम दिया जो संसार की परम विमोहक वस्तु है, साथ ही उसने मनुष्य को निर्दयता भी दी है, फिर भी प्रेम निर्दयी को करुण बनाने की ताक़त रखता है, यहाँ तक कि मनुष्य क्या प्रभु को भी गज और ग्राह की लड़ाई में गज की प्रेम पुकार में नंगे पाँव दौड़ना पड़ा था-
भक्ति भी दिल में तब तक नहीं होती जब दिल में प्रेम न हो, सच्चा प्रेम ही भक्ति व भगवान हैं, स्वर्ग है, प्रेम में बड़ा विचित्र नशा है, उसमें थकावट नहीं हैं, बड़ी मस्त तबियत रहती है-
किस तरह प्रेम में दीवानापन आता है कि आदमी छक जाता है, नशे में चूर हो जाता है, सुधि बुद्धि खो देता है, प्रेम के रंग में रंग जाता है, अमीरी-गरीबी भूल जाता है, भूख प्यास और निद्रा खो देता है, अपना पराया भूल जाता है वहाँ केवल प्रेमी और प्रेम रहता है, कैसा मीठा दर्द है।
जीवन में सभी प्राणी किसी न किसी को प्रेम करते ही हैं और उस प्रेम को अपनी-अपनी कसौटी में कसते हैं। बगैर प्रेम के कोई जीवित नहीं रह सकता, किसी को भी प्यार करना ही पड़ेगा, नीरस जीवन किसी ने नहीं काटा है। यहाँ उस प्रेम का वर्णन है जिसे हमारे कवि प्रेम-दर्द कह कर अमर करते हुए हमारे हृदय पट खोल गये हैं। प्रेम तो सभी का जन्मसिद्ध अधिकार है-
प्रेम में बड़ा दर्द है, प्रेम के नशे में प्रेमी बड़ी जिद करता है, प्रेम के बाण लगने का कोई इलाज नहीं है, जिसका बाण हैं वही इलाज कर सकता है। तभी तो देवी मीरा कहती है-
"मैं तो प्रेम की दीवानी, मेरो प्रेम न जाये कोय।
कितना ऊँचा अकथनीय प्यार था, वह भी किस से, जिसे कभी न देखा था, केवल सुना था, धन्य है । ऊधो जब योग का संदेशा लेकर विरहणी गोपियों को समझाने जाते हैं तो गोपी कहती हैं-
"ऊधो ब्रह्म ज्ञान का संदेशा नहीं देते नेकु
देख लेते कान्ह जो हमारी अंखियान ते।"
गोपी कृष्ण भगवान के प्रेम में छकी थीं, प्रेम में पीड़ित गोपियों ने एक न सुनी और कैसे अपनी पीड़ा, अपनी दुनिया, अपना सर्वस्व इन शब्दों में प्रकट कर संदेश दूत का मुख बन्द कर दिया वह थोड़े शब्दों में सुनिये-
* श्याम तन श्याम मन, श्याम ही हमारो धन, आठों याम ऊधो हमें श्याम ही से काम है। श्याम हिये, श्याम जिये, श्याम बिन नाहीं तिथे, अन्धे को सी लाकड़ी आधार श्याम नाम है ॥ श्याम गति श्याम मति श्याम ही हैं प्राणपति, श्याम सुखदाई सो भलाई शोभा धाम है। ऊधो तुम भये बोरे पाती लेके आये दौरे, और योग कहाँ यहाँ रोम रोम श्याम है।*
यदि प्रेम की इतनी जंची दिव्य विभूतियाँ पैदा न हुई होतीं तो आज प्रेम की कीमत शायद कुछ भी न होती, जब हृदय प्रेम से विभोर हो उठता है तब उसे कुछ नहीं सूझता, तभी तो कहते हैं कि प्रेम अन्धा है।
भक्त सूरदास तो इतने से ही नहीं मानते थे तो अपनी सगाई अपने प्रेमी के साथ नहीं बल्कि प्रेम की सगाई प्रेमी के करके ही चैन पाते हैं -
"सब से ऊँची प्रेम सगाई।"
. 🚩जय राधे कृष्ण 🚩