बालासोर रेल दुर्घटना! गिद्ध राजनीति और कौआ मीडिया!!
बालासोर रेल दुर्घटना जितनी दर्दनाक है उससे भी ज्यादा शर्मनाक है इस पर हो रही निकृष्टतम राजनीति और कुछ सुपारी न्यूज चैनलों की असंवेदनशील गिरी हुई रिपोर्टिंग!
अंधेरी रात में अगर घर में एक बाल्टी पानी भी गिर जाए तो उसे भी पल भर में साफ नहीं किया जा सकता लेकिन जो अपना घर तक साफ नहीं कर सकते वे भी रेलवे के राहत कार्य और रिलीफ सिस्टम के विशेषज्ञ बने ज्ञान बघार रहे हैं!
न्यूज चैनलों की कुछ एंकरनियाँ तो अपनी विशेषज्ञता ऐसे झाड़ रही हैं मानों ज्ञान की देवी सरस्वती और देवताओं के गुरु बृहस्पति इनसे ही ट्यूशन पढ़ा करते थे!
दो ट्रेनों के बीच की टक्कर को रोकने के लिए कवच नामक एंटी कोलिसन डिवाइस (Anti Collision Device) का पिछले वर्ष केन्द्र सरकार और रेलवे ने इस्तेमाल शुरू किया था। लेकिन उस समय जो नेता कवच उपकरण का उपहास कर रहे थे वही नेता अब सवाल उठा रहे हैं कि दुर्घटनाग्रस्त ट्रेनों में 'कवच' क्यों नहीं लगा हुआ था !?
यद्यपि दुर्घटना की जड़ में जाकर इसके मूल कारण का पता लगाना अभी बाकी है लेकिन पतित हो चुकी राजनीति के अवसरवादी गिद्धों के लिए तो हरेक लाश एक डिश है,हरेक शव खाने की एक स्वादिष्ट थाली है और हर मरा आदमी इनकी राजनीतिक इमारत की एक संभावित ईंट है!!
मीडिया की रिपोटिंग ऐसी असंवेदनशील है मानों दुर्घटना और मृतक कोई दर्दनाक घटना न होकर एक बिकाऊ वस्तु हो, एक कमोडिटी हो!!
इस भीषण रेल दुर्घटना की जड़ में जाकर विभिन्न कोणों से इसका विश्लेषण और विवेचना करनी ही चाहिए क्योंकि दुर्घटना का एक स्थानविशेष पर होना और दुर्घटना का ढंग बहुत कुछ सोचने पर विवश कर रहा है!
जांच इस बात की भी हो और इसके तथ्य सार्वजनिक भी किये जाएँ कि आखिर वन्दे भारत ट्रेनों पर पथराव कौन करता है?
संप्रति घायलों की पूरी और निःशुल्क चिकित्सा करना, मृतक के परिजनों को आर्थिक क्षतिपूर्ति देना और रेलमार्ग को फिर से संचालन योग्य बनाना आदि ही इस समय की सर्वोच्च प्राथमिकताएँ है, गंदी और गिद्ध राजनीति नहीं!
रेलवे ने राहत और बचाव कार्य में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राज्य सरकार भी सहायता कर रही है!
इनके अतिरिक्त जिन स्थानीय लोगों और समाजसेवी संगठनों ने भीषण आपदा की इस अति कठिन घड़ी में आगे बढ़कर अपनी सेवाएँ दी हैं और दे रहे हैं, वे मानवता के प्रणम्य देवदूत हैं, उन्हें प्रणाम!!
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