वैसे तो इस फिल्म में आतंकवादियों की दुनिया का काला सच दिखाया गया है लेकिन ना जाने क्यों जब भी आतंकवाद के खिलाफ कोई फिल्म या कोई धारावाहिक आता है तो विशेष समुदाय और उनके नेताओं को बहुत तकलीफ होती है। "यह रिश्ता क्या कहलाता है" खैर सुना तो होगा ही कि "आतंक का कोई मजहब नहीं होता"
फिल्म के ट्रेलर को सर्टिफिकेट ना देने पर अशोक पंडित काफी नाराज हुए और उन्होंने कहा - अचानक क्यों किया इनकार?
फिल्म मेकर अशोक पंडित ने सीबीएफसी पर कई सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि जब फिल्म को सर्टिफिकेट दे दिया गया है तो ट्रेलर को क्यों नहीं मिल रहा है। ट्रेलर के जिस दृश्य पर आपत्ति जताई जा रही है, वह फिल्म का ही अंश है और इस फिल्म को सर्टिफिकेट दे दिया गया है। फिर ट्रेलर से क्या आपत्ति है? उनका यह भी कहना है कि सेंसर बोर्ड ने पहले ट्रेलर को सर्टिफिकेट दे दिया था और फिर अचानक इनकार कर दिया।
अशोक पंडित ने आगे कहा, 'चर्चा का विषय इसलिए हुआ क्योंकि आपने हमारे ट्रेलर को कट्स देकर कहा कि ये शॉट काटिए, उसके बाद आपको सर्टिफिकेट देंगे। हम एक प्रोड्यूसर, मेकर और इंडस्ट्री से होने के नाते यह सवाल कर रहे हैं कि जिस फिल्म को आपने सेंसर सर्टिफिकेट दिया है, जिसे आपने सराहा है, उसी फिल्म के ही शॉट का अंश है ट्रेलर। जब फिल्म में आपको पसंद है, आपने उसके लिए तालियां बजाईं तो आपको ट्रेलर में क्या दिक्कत है? यह साधारण सा सवाल है हमारा। यह लॉजिकल बात है।'
क्या है ट्रेलर में ...
ट्रेलर की शुरुआत में 'हूरों' का मतलब समझाया जा रहा है। बैकग्राउंड से एक शख्स की आवाज आती है, जो कहता है, 'हूरें समझते हो क्या होती हैं? कुंवारी अनछुई हुई...वह भी एक नहीं, दो नहीं....72 हूरें, 72 हूरें।' इसके बाद गोलियों की आवाज और धमाके के साथ नजर आता है खौफनाक मंजर। हर ओर लाशें बिछी हैं और महिलाओं का रूदन सुनाई पड़ रहा है। इस बीच एक शख्स को आतंकवादी बनने की ट्रेनिंग दी जा रही है।
यह फिल्म आतंकवाद पर आधारित है। फिल्म के ट्रेलर में आतंकवाद की दुनिया का काला सच दिखाने की कोशिश की गई है (लेकिन ध्यान दें तकलीफ मुश्लिम नेताओं , मुश्लिम परस्तों और अन्य मुस्लिमों को हो रही है ...पता नहीं क्यों?)। युवाओं का ब्रेनवॉश कर किस तरह उन्हें आतंकवाद के दलदल में धकेला जाता है, यह ट्रेलर में देखा जा सकता है। आतंकवाद की ट्रेनिंग के दौरान लोगों को जन्नत में 72 हूरें मिलने के सब्जबाग दिखाए जाते हैं और बताया जाता है कि यह जन्नत तब नसीब होती है, जब कोई अपनी जान की कुर्बानी देता है।
ट्रेलर में आगे दिखाया गया है कि ब्रेनवॉश का असर ऐसा होता है कि आतंकी न सिर्फ मासूमों की, बल्कि जिहाद के नाम पर अपनी जान का दुश्मन भी बन बैठता है। 'काफिरों' को मारने के लिए आत्मघाती कदम उठाता है। ऐसे गलत काम करने में कहीं उसकी अंतरात्मा उसे धिक्कारती है तो उसे ट्रेनिंग के दौरान मिली सीख याद आती है, जिसमें इस कदम को अल्लाह के लिए दी गई 'शहादत' कहा जाता है।'