Khilji/ खिलजी के बारे में पढेंगे तो एक तथ्य पता लगेगा कि उसे बहुत कष्टप्रद मृत्यु प्राप्त हुई थी। पेट में पानी भर जाने से उसकी मृत्यु हुई थी, पर दो वर्षों से उसे कोढ़ हो गया था और अंग सड़ने लगे थे।
हालांकि ऐसी बीमारियां किसी सभ्य-सज्जन व्यक्ति को भी हो सकती हैं, पर जब किसी अत्याचारी, असभ्य, बर्बर के साथ ऐसा होता है तो उस विश्वास को बल मिलता है कि आदमी को उसके कुकर्मों का फल यहीं मिल जाता है। यह होता ही है, ऐसा होना ही चाहिए...
ऐसा केवल खिलजी के साथ नहीं है। मध्यकाल के लगभग हर अत्याचारी शासक की मृत्यु बड़ी कष्टप्रद रही थी। मुगलों की तो परम्परा ही बन गयी थी कि बुढ़ापे में अपने बेटों को आपस में लड़ कर एक दूसरे को मारते हुए देख कर तड़पते हुए मरना था। अकबर, जहांगीर, शाहजहां, औरंगजेब... सब बुढ़ापे में अपने बच्चों का युद्ध देख कर तड़पते हुए मरे।
पारिवारिक षड्यंत्रों में अपने दो बेटों मुराद और दनियाल की मौत देख कर टूट चुका अकबर जहांगीर के आगे गिड़गिड़ाता रहा, पर वह इसके लोगों को मारता रहा। उसने अबुल-फजल जैसे अकबर के अधिकांश करीबियों को मार दिया और बादशाह गिड़गिड़ाते तड़पते रहे, मर गए। जहांगीर के साथ भी यही हुआ।
शाहजहां को दुनिया एक प्रेमी के रूप में जानती है, पर वह भी उतना ही क्रूर था जितना अन्य मुगल थे। हिंदुओ पर अत्याचार के मामलों में वह दूसरों से कहीं अधिक कट्टर था। उसकी मृत्यु तो और दुखद हुई। उसके प्रिय बेटे दारा शिकोह का कटा हुआ सर खंजर की नोक पर टांग कर पूरे आगरा में घुमाया गया और अंत में कैदी शाहजहां के आगे थाल में रखा सर पेश किया गया। और यह सब किया उसके दूसरे बेटे ने... अपने एक बेटे द्वारा की गई अन्य सभी बेटों की हत्या पर रो चुका शाह उस कैदखाने में कैसे तड़प तड़प कर मरा होगा, इसका सहज अंदाज लगाया जा सकता है।
ऐसा केवल इन्ही के साथ नहीं हुआ, हर अत्याचारी शासक के अंतिम समय की दशा लगभग ऐसी ही रही है। और सबसे बड़ी बात, सबको सत्ता से धकिया कर बाहर किया गया है। कोई भी शान्ति से अपनी अगली पीढ़ी को सत्ता नहीं सौंप सका।
हमें लगता है इतिहास की किताबों में बादशाहों की मृत्यु अवश्य पढ़ाई जानी चाहिये। ताकि सबको पता रहे कि कर्मों का हिसाब यहीं होता है। एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए आवश्यक है कि जनता असभ्यों के दुखद अंत की कथाएँ याद रखे।
बिल्कुल इसे पढा़ई में शामिल करना चाहिए।
ReplyDelete