. #शुभ_रात्रि
कर्तव्य परायणता का क्षेत्र भी बहुत व्यापक है। मनुष्य जीवन के साथ विभिन्न प्रकार के कर्तव्यों की लम्बी श्रृंखला जुड़ी है। शरीर के प्रति, मन के प्रति, आत्मा के प्रति, परिवार के प्रति, समाज के प्रति, राष्ट्र के प्रति अनेकानेक कर्तव्यों के पालन का उत्तरदायित्व मनुष्य पर आता रहता है। उन सब को समझना अपनाना तथा उनका निर्वाह करना - कर्तव्यपरायणता के अन्तर्गत आता है।
कर्तव्य परायणता की वृत्ति भी सतत साधना से परिष्कृत और विकसित की जा सकती है। अर्थ परायण व्यक्ति धन के लिए और स्वार्थ परायण व्यक्ति स्वार्थ सिद्धि के लिए जीवन में बड़ी से बड़ी बाजी लगा देता है । कर्तव्य परायणता के साधक को कर्तव्य सिद्धि के लिए कम से कम इस स्तर का साहस पैदा करना चाहिए। इस साधना में जो कर्तव्य हमें सौंपा जाय, जिसे हम स्वीकार कर लें, उसे अपनी आत्मिक प्रतिष्ठा का प्रश्न मानकर चलना होता है। सफलता-असफलता, हानि-लाभ, प्रशंसा आलोचना आदि का लेखा-जोखा करने से पूर्व यह देखना होता है कि निर्धारित कर्तव्य पालन में अपनी ओर से कितनी तत्परता बरती जा सकी कितना मनोयोग जुटाया जा सका।
मनुष्य जागने के समय से लेकर सोने के समय तक कर्तव्य साधना में लगा रहता है। अस्तु कर्तव्य परायणता का लेखा-जोखा नित्य लिया जाना चाहिए । प्रातः नींद खुलते ही यह विचार करना चाहिए कि एक परिपूर्ण जीवन है। हमें इस अवधि में सुनिश्चित कर्तव्य पूरे करने हैं। सारे दिन के कर्तव्यों का निर्धारण प्रातःकाल ही करके उठना चाहिए। इससे काम का समय संकल्प-विकल्प में निरर्थक नष्ट नहीं होता। भले ही थोड़े से कर्तव्यों का निर्धारण किया जाय, किन्तु उनको पूरा करने प्राणपण से जुट जाया जाय। रात्रि में शयन से पूर्व में स्वयं से जवाब तलब किया जाय कि जो कर्तव्य प्रातः निर्धारित किये गये थे उन्हें कितने अंशों में पूरा किया जा सका? जहां भूल हुई हो, स्तर घटा हो उसके लिए पश्चाताप प्रायश्चित की भी व्यवस्था बनायी जाय। जो कर्तव्य पूरे किए जा सके उनके लिए प्रसन्नता अनुभव करें। कर्तव्य पालन की शक्ति देने के लिए भगवान को हार्दिक धन्यवाद दिया जाय तथा अगले दिन जीवन के अगले चरण में मिलने वाले कर्तव्यों को अधिक तत्परता-अधिक प्रामाणिकता से पूरा कर सकने की क्षमता के लिए प्रार्थना करते हुए शयन किया जाय। यह क्रम आस्तिक बुद्धि एवं कर्तव्य परायणता दोनों के विकास के लिए बड़ा हितकारी सिद्ध होता है।
आत्म गौरव की अनुभूति कर्तव्य परायणता के आधार पर ही की जानी चाहिए। आत्म गौरव का बोध जब कर्तव्य परायणता से जुड़ जाता है तो उसका बढ़ना और स्थायित्व दोनों ही सुनिश्चित हो जाते हैं। इसी प्रकार व्यवहार क्षेत्र में भी कर्तव्य परायणता के आधार पर ही लोगों को सम्मान समर्थन एवं सहयोग दिया जाने लगे तो समाज में उसकी वृद्धि सुनिश्चित है। व्यक्तिगत जीवन में एवं सामाजिक स्तर पर भी कर्तव्य परायणता के विकास के ऐसे प्रयास किए जाने चाहिए।
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