सुन्दरकाण्ड की बुकिंग करने के बाद कई लोग फोन लगा-लगा कर कहते हैं कि पंडित जी! अच्छे से करना, मज़ा आ जाए एकदम।
"वैसे तो हम फलानी मंडली को बुलाते थे पर आपके बारे में सुना तो सोचा आपको बुलाएं, इसलिए ऐसा सुन्दरकाण्ड करना कि माहौल बन जाए।
सच में क्या अजीब मानसिकता हो गई है आज लोगों की? सुन्दरकाण्ड जैसी अद्भुत हनुमान कथा को मनोरंजन बनाकर रख दिया है और ऐसा भी नहीं है कि वह सुन्दरकाण्ड की चौपाई सुनकर आनंदित होना चाहते हैं। नहीं! वह सुनना चाहते हैं तड़कता-भड़कता हुआ संगीत।
हम सभी कहते हैं कि हमें अपनी संस्कृति बचानी है, धर्म बचाना है तो क्या ऐसे बचेगी संस्कृति? हमने हर चीज़ को तो मनोरंजन बना कर रख दिया है और फिर धर्म बचाने की बात करते हैं।
सुन्दरकाण्ड एक बहुत सामर्थ्यशाली, ऊर्जा प्रदायक, प्रेरणादायक, समाधान कारक, प्रबंधन के सूत्रों से भरा और शांति देने वाला एक अमूल्य साधन है, पर हमने आज उसी सुन्दरकाण्ड पाठ की इतनी फजीहत कर रखी है कि क्या ही कहा जाए और इसीलिए सुन्दरकाण्ड करने-कराने का फल हमें नहीं मिल पाता, क्योंकि हम सुन्दरकाण्ड के प्रति अपना भाव ही नहीं रखते, बल्कि हमारा पूरा ध्यान मात्र थिरकने पर होता है।
मैं आश्चर्य से तो तब भर जाता हूं कि लोग मुंह में गुटखा भरकर, बीच-बीच में चाय और शरबत की चुस्कियां लेकर सुन्दरकाण्ड पाठ करते हैं और इसमें सबसे बड़े सहयोगी होते हैं आयोजक जो कि बीच-बीच में शरबत और चाय पेश करते हैं।उतने ही दोषी है सुंदरकांड मण्डली भी जो विकृति को बढ़ावा देती है।
सुन्दरकाण्ड कराते समय एक आसन पर स्थिर होकर बैठना चाहिए। अगर बहुत जरूरी हो तो पानी लिया जा सकता है, पर बीच-बीच में पार्टी की तरह शरबत और चाय लेकर नहीं घूमना चाहिए।
अतः निवेदन है कि अपनी संस्कृति और धर्म का उपहास न बनाएं। सुन्दरकाण्ड पाठ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि उसमें श्री हनुमान जी का पवित्र चरित्र है।
जय जय सियाराम 🙏🚩
जय महावीर हनुमान🙏🚩