वैसाख शुक्ल द्वादशी , २०८०
गीता वीडियो एवम पंचांग
गीता अध्याय 02 (सांख्ययोग) श्लोक 49
आज का पंचांग
मंगलवार,०२/०५/२०२३,
वैसाख शुक्ल द्वादशी , युगाब्ध - ५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
⛅ 🚩तिथि - द्वादशी रात्रि 11:17 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅दिनांक - 02 मई 2023
⛅दिन - मंगलवार
⛅शक संवत् - 1945
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - ग्रीष्म
⛅मास - वैशाख
⛅पक्ष - शुक्ल
⛅नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी शाम 07:41 तक तत्पश्चात हस्त
⛅योग - व्याघात सुबह 11:50 तक तत्पश्चात हर्षण
⛅राहु काल - दोपहर 03:22 से 05:30 तक
⛅सूर्योदय - 06:06
⛅सूर्यास्त - 07:07
⛅दिशा शूल - उत्तर दिशा में
⛅ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:38 से 05:22 तक
⛅निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:15 से 12:58 तक
⛅व्रत पर्व विवरण - परशुराम-रुक्मिणी द्वादशी
⛅विशेष - द्वादशी को पूतिका (पोई) खाने से पुत्र का नाश होता है । (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🌹वैशाख मास के अंतिम ३ दिन दिलायें महापुण्य पुंज (03 मई से 05 मई तक)
🌹 ‘स्कंद पुराण’ के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में अंतिम ३ दिन, त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ बड़ी ही पवित्र और शुभकारक हैं । इनका नाम ‘पुष्करिणी’ हैं, ये सब पापों का क्षय करनेवाली हैं ।
🌹 जो सम्पूर्ण वैशाख मास में ब्राम्हमुहूर्त में पुण्यस्नान, व्रत, नियम आदि करने में असमर्थ हो, वह यदि इन ३ तिथियों में भी उसे करे तो वैशाख मास का पूरा फल पा लेता है ।
🌹 वैशाख मास में लौकिक कामनाओं का नियमन करने पर मनुष्य निश्चय ही भगवान विष्णु का सायुज्य प्राप्त कर लेता है ।
🌹 जो वैशाख मास में अंतिम ३ दिन ‘गीता’ का पाठ करता है, उसे प्रतिदिन अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है ।
🌹 जो इन तीनों दिन ‘श्रीविष्णुसहस्रनाम’ का पाठ करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन करने में तो इस भूलोक व स्वर्गलोक में कौन समर्थ है । अर्थात् वह महापुण्यवान हो जाता है ।
🌹 जो वैशाख के अंतिम ३ दिनों में ‘भागवत’ शास्त्र का श्रवण करता है, वह जल में कमल के पत्तों की भांति कभी पापों में लिप्त नहीं होता ।
🌹 इन अंतिम ३ दिनों में शास्त्र-पठन व पुण्यकर्मों से कितने ही मनुष्यों ने देवत्व प्राप्त कर लिया और कितने ही सिद्ध हो गये । अत: वैशाख के अंतिम दिनों में स्नान, दान, पूजन अवश्य करना चाहिए ।
🔸सुखमय जीवन के सोपान-स्वाति के मोती🔸
🔹कलियुग से बचने के लिए हरेक भाई-बहन को नल-दमयंती की कथा पढ़नी चाहिए । नल-दमयंती की कथा पढ़ने से कलियुग का असर नही होगा, बुद्धि शुद्ध होगी ।
🔹गाय की सेवा करने से सब कामनाएं सिद्ध होती है । गाय को सहलाने से, उसकी पीठ आदि पर हाथ फेरने से वह प्रसन्न होती है । असाध्य रोगों में लगभग ६-१२ महीने यह प्रयोग करना चाहिए ।
🔹कहीं जाते समय रास्ते में गाय आ जाय तो उसे अपनी दाहिनी तरफ करके निकालना चाहिए । दाहिनी तरफ करने से उसकी परिक्रमा हो जाती है ।
🔹रोगी व्यक्ति कुछ भी खा-पी न सके तो गेहूँ आदि अग्नि में डालकर उसका धुआँ देना चहिये । उस धुएँ से रोगी को पुष्टि मिलती है ।
🔹मरणासन्न व्यक्ति के सिरहाने गीता जी रखें । दाह-संस्कार के समय उस ग्रन्थ को गंगाजी में बहा दें, जलाये नहीं ।
🔹मृतक के अग्नि-संस्कार की शुरआत तुलसी की लकड़ियों से करें अथवा उसके शरीर पर थोड़ी सी तुलसी की लकड़ियाँ बिछा दें, इससे दुर्गति से रक्षा होती है ।
🔹घर में किसी की मृत्यु होने पर सत्संग, मंदिर और तीर्थ - इन तीनों में शोक नहीं करना चाहिए अर्थात इन तीनों जगह जरुर जाना चाहिए ।
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