सर्वप्रथम तो सभी सनातनियों को हनुमान जयंती / जन्मोत्सव/ प्रकटोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं. आज इस लेख में हम बात करेंगे एक सन्देश की जिसके माध्यम से लोगों को हनुमान जन्मोत्सव कहने और हनुमान जयंती ना कहने की सलाह दी जा रही है .. लेकिन क्या है सच ये जाने बिना यदि हम कुछ संदेशों के आधार पर चलेंगे तो भटक जायेंगे , इसलिए सच को समझना जरुरी है.
आजकल एक संदेश बडा वायरल हुआ है की भगवान श्री हनुमान जीवित है चिरंजीव है अतः उनकी जयन्ती नही अपितु जन्मोत्सव होता है।
चैत्र माह की पूर्णिमा तिथि पर हर वर्ष ‘हनुमान जयन्ती’ मनाई जाती है । प्रभु श्रीराम के परम भक्त बनकर इस दिन भगवान शिव ने ‘हनुमान जी’ के रूप में अपना ग्याहरवाँ अवतार लिया था। हिंदू इस पावन जयन्ती को धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन मंदिरों से लेकर हिंदुओं के घर में हनुमान जी की विशेष पूजा होती है और बाहर बड़ी-बड़ी शोभा यात्राएँ निकलती हैं। सोशल मीडिया आ जाने के बाद से इस दिन का जो उत्साह बढ़ा है वो देखते ही बनता है। लेकिन इस उत्साह के अलावा इस दिन जो सोशल मीडिया पर बहस चलती है वो यह कि हमें हनुमान जी की जन्मतिथि को ‘जयन्ती’ कहना चाहिए या फिर ‘जन्मोत्सव’?
कुछ संदेश सोशल मीडिया पर वायरल होते देखते हैं जिनमें अनुरोध किया जाता है कि हनुमान जी के अवतरण दिवस को ‘जयन्ती’ न कहकर ‘जन्मोत्सव’ कहा जाए…। ऐसा कहने के पीछे उनका तर्क होता है कि जयन्ती ‘मृत लोगों के जन्मदिन’ के लिए प्रयोग में लाई जाती है और हनुमान जी तो चिरंजीवी हैं जो आज भी धरती पर हैं और कलयुग के अंत तक रहेंगे।
वैसे गूगल पर सर्च करेंगे तो पाएंगे की अधिकतर मीडिया वाले भी देक्लैमेर डालकर यही बात बिना किसी शास्त्रीय प्रमाण के फैला रहे हैं , अब कहे हैं ना जब तक सच बहार आता है तब तक झूंठ पूरी दुनिया घूम लेता है , इस मामले में भी कुछ ऐसा ही समझिये
लेकिन एक Opindia है जिसने कुछ अलग बताया और तर्कों के साथ बताया ..
Opindia के अनुशार जब इस शब्द का अर्थ गूगल पर खोजा गया तो सबसे ऊपर ही इसका एक अर्थ ‘विजयिनी’ पाया और दूसरा अर्थ ‘किसी पुण्य आत्मा की जन्मतिथि वाला दिन’ पाया। इसके अलावा पताका, दुर्गा जी का नाम आदि-आदि आया। बहुत खोजने पर भी हमें कहीं इस शब्द का अर्थ ‘मृत लोगों से संबंधित’ नहीं मिला।
लोकगाथा नाम के यूट्यूब चैनल पर दिलचस्प जानकारी मिली। ये वीडियो 11 माह पहले 2022 में चैनल पर अपलोड हुई थी। वीडियो में ‘जयन्ती’ शब्द के संस्कृत में अर्थ बताए गए। इसके बाद यहाँ शास्त्रों का हवाला देकर ‘जयन्ती’ शब्द की व्याख्या की गई है।
बताया गया कि स्कंद पुराण में लिखा है,
“जयं पुण्य च कुरुते जयन्तीमिति तां विदु:।” अर्थात जो जय और पुण्य प्रदान करे उसे ‘जयन्ती’ कहते हैं।
इसके बाद वीडियो में भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का उदाहरण दिया गया।
हम लोग इस पवित्र तिथि को जन्माष्टमी के नाम से जानते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि शास्त्रों में इस तिथि को ‘जयन्ती’ ही कहा जाता है।
स्कंद पुराण के एक श्लोक में कहा गया है-
जयन्त्याम उपवासश्यच महापातकनाशन:।
सर्वै कार्यो महाभक्त्या पूजनीयश्य केशव:।।
इसका अर्थ होता है श्रीकृष्ण जयन्ती का व्रत महापातक का विनाश कर देता है। अत: भक्तिपूर्वक यह व्रत करते हुए भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें।
विष्णु पुराण में भी कहा गया है- रोहिणी नक्षत्र संयुक्त जन्माष्टमी जयन्ती कहलाती है।
इसके अलावा भगवदगीता में भगवान ने अपने जन्म को दिव्य बताया है। उन्होंने चौथे अध्याय के 9वें श्लोक में कहा है- जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्वत:। अर्थात “अर्जुन मेरा जन्म और कर्म दोनों ही दिव्य हैं।”
अब सोचने वाली बात यह है कि भगवान श्रीकृष्ण की तरह क्या हनुमान जी का जन्म दिव्य नहीं है जबकि वह तो खुद शिवजी के ग्याहरवें अवतार हैं जो प्रभु राम की सहायता करने के लिए पृथ्वी पर जन्मे और आज भी धरती के संरक्षक हैं।
इसके अलावा कुछ शास्त्रों को समझने वालो ने भी जयंती शब्द को मरे हुए लोगों की जन्मतिथि से जोड़ने से इंकार किया है ...और उनके भी कुछ सन्देश सोशल मीडिया पर शास्त्रीय प्रमाणों के साथ वायरल होते हुए मिल रहे हैं
न हनुमान जयन्ती में समस्या है न हनुमान जन्मोत्सव में
तो अब स्पष्ट है कि ‘जयन्ती’ का अर्थ मरणशील व्यक्ति से नहीं जुड़ा है, इसलिए हनुमान जन्मतिथि को ‘जयन्ती’ कहने में कोई समस्या नहीं हैं। जो लोग इस दिन को हनुमान जी का जन्मोत्सव कहते हैं वो भी गलत नहीं है, क्योंकि हनुमान जी के अवतरण दिवस को उत्सव के तौर पर मनाने को ही जन्मोत्सव कहा गया है और शहर-शहर में निकलती शोभा यात्राएँ, घर-घर में लहराती हनुमान जी की पताका इस बात का सबूत है कि हिंदुओं के लिए यह मात्र तारीख नहीं बल्कि उत्सव है। इसलिए जन्मोत्सव कहना भी उचित है, मगर साथ में यह तर्क देना कि जयन्ती का अर्थ केवल मृत व्यक्ति से है…वो गलत है।