. #शुभ_रात्रि
ब्राह्मण वह है जो ब्रह्म को जानता हो । जानने का अर्थ शाब्दिक ज्ञान नहीं । पतञ्जलि मुनि ने शाब्दिक ज्ञान को मिथ्या कहा ।
सच्चे ब्राह्मण और सच्चे कलाकार में कोई अन्तर नहीं । यज्ञ केवल पार्थिव कुण्ड में आहुति देकर ही नहीं होता । यज्ञ के कई भेद हैं । शब्दों वा चित्रों वा मूर्ति आदि के माध्यम से सत्य का साक्षात्कार कराना भी यज्ञ है । पार्थिव कुण्ड में आहुति देकर भी जो यज्ञ होता है उसमें भी शब्दों और मूर्त पदार्थों का प्रयोग होता ही है । विधि का ज्ञान चाहिए ।
सत्य का साक्षात्कार कराने से पहले स्वयं सत्य का साक्षात्कार करना पड़ता है । माया से समझौता करने वालों के बूते की यह बात नहीं कि कलाकार या ब्राह्मण बने । देवता को पूजने से देवता नहीं मिलते;अपने भीतर देवत्व को जगाने से देवता मिलते । इस जागरण का कौशल ही ‘कला’ है । असत् से ही सत् उत्पन्न होता — ऋग्वेद का वचन है । पाप के कीचड़ में पुण्य का कमल खिल सकता है,बशर्ते उस कमल में मल से लड़कर स्वयं को व्यक्त करने की जिद्दी जिजीविषा हो । तब कीचड़ का महासागर भी एक अदने से कमल को रोक नहीं पाता । नास्तिक भी अपने प्रति ईमानदार हो तो परम सत्य तक पँहुच सकता है,किन्तु सत्य का धन्धा करने वालों से ऐसी आशा न करें!क्योंकि सत्य आपके अन्दर है,केवल उस “आत्म” के प्रति ईमानदार रहने की आवश्यकता है,सपनों में भी । सच बोलना इसका एक छोटा सा हिस्सा है ।
अपने अस्तित्व का खूँटा समाज में गाड़ने से अस्तित्व खो जाता है । क्योंकि व्यक्ति सत्य है,समाज नहीं ।
सम्राट अशोक ने पत्थर पर राजाज्ञा खुदवाई थी — समाज का निषेध करें । मैकॉलेपुत्रों ने समाज का अर्थ सोसाइटी कर दिया,यूरोपियनों की तरह सोचने लगे । समाज का भारतीय अर्थ है अनुचित वा अधार्मिक वा निरर्थक जमावड़ा,भले ही घर के भीतर ही हो ।
एकान्त में सोचिये कि आप कौन हैं,और संसार में क्यों आये हैं । उत्तर न मिले तो पूर्वजों के ज्ञान में ढूँढिये ।
स्वयं से जुड़ने के लिये समाज का निषेध करें । तब अन्दर का सर्जक जाग सकेगा ।
. *🚩जय सियाराम 🚩*
. *🚩जय हनुमान 🚩*