सुप्रीम कोर्ट को, सरकार को सबको निष्पक्ष और खुली चुनौती देने की हिम्मत केवल इनमे ही है.. इन्हें ना राजनीति से मतलब ना कानून से ये केवल धर्मदंड के सहारे चलते हैं
कोटि कोटि प्रणाम है शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी को🙏🙏👇
सेम सेक्स मैरिज यानि समलैंगिकता को मान्यता देने वाली 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में छठे दिन की सुनवाई खत्म हो गई है। कोर्ट ने केंद्र सरकार से 3 मई तक जवाब मांगा है कि वे बताएं कि समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता के बिना भी शादी की अनुमति दिए जाने से क्या फायदा होगा?
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के अनुशार गोवर्धनमठ पुरी पीठाधीश्वर शंकाराचार्य स्वामी निश्चलानंद जी ने आने वाले फैसले को मानवता के लिए कलंक बताया है। उन्होंंने कहा- ये हमारा मामला है। इसमें कोर्ट को नहीं पड़ना चाहिए। जजों को कह देना चाहिए कि प्रकृति ऐसे लोगों को दंड देगी। यदि न्यायालय का कोई ऐसा फैसला होता है तो उसे मानने की आवश्यकता नहीं है।
वे बोले- जिन न्यायाधीशों से निर्णय आने वाला है या आएगा उनसे पूछना चाहिए कि क्या आप नपुंसक होकर नपुंसक से शादी कर चुके हैं ? आप पुरुष हैं तो पुरुष से शादी कर चुके हैं क्या? आप स्त्री हैं तो स्त्री से शादी कर चुके हैं ? यह मानवता के लिए कलंक है। इससे व्यभिचार को बढ़ावा मिलेगा। विवाह धार्मिक क्षेत्र में पहला स्थान रखता है। यह हमारे क्षेत्र का विषय है, न्यायालय के क्षेत्र का नहीं। समलैंगिकता से पशुता की भावना आएगी, यह प्रकृति के खिलाफ है।
शंकराचार्य ने मैकाले पर टिप्पणी की। वे बोले- मैकाले ने 3C भारत को अस्तित्व और आदर्श विहीन बनाने के लिए दिया था। पहले C का अर्थ है क्लास और को- एजुकेशन। दूसरे C का अर्थ है क्लब। तीसरे C का अर्थ है कोर्ट। मैकाले के द्वारा दिया हुआ यह षड्यंत्र है। उसी का अनुगमन करके देश का अस्तित्व और आदर्श विकृत करने का प्रकल्प चल रहा है।
आपको बता दें की शुरू से ही समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर जोरदार विरोध हो रहा है , सुप्रीम कोर्ट पर लोग तरह तरह की टिप्पणी भी हो रही है , लेकिन CJI चंद्रचूड़ साहब इसकी सुनवाई कर रहे हैं , उन्होंने शुरू में ही कह दिया था की 'मैं कोर्ट का इंचार्ज हूँ। यह फैसला मैं करूँगा।"
केंद्र सरकार शुरू से ही इसके विरोध में हैं, अखिल भारतीय हिन्दू संघ ने विरोध दर्ज करवाया , कुछ मुश्लिम संगठनों में भी विरोध किया, जैन मुनि ने पात्र लिखकर विरोध किया, २१ रिटायर्ड जजेस और खुद बार कॉउन्सिल ऑफ़ इंडिया SC में सुनवाई का विरोध कर कह चुके हैं की " मामला संवेदनशील है इसपर संसद और राज्य विधानसभा में विस्तृत बहस होनी चाहिए" और अब सर्वोच्च पद पर आसीन शंकराचार्य निस्चलानन्द जी ने भी कड़े शब्दों में विरोध दर्ज करवाया है , लेकिन सुप्रीम कोर्ट किसीकी नहीं सुन रहा और लगातार सुनवाई आगे बढ़ा रहा है मानो किसी भी हाल में समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देना पहले से तय कर लिया गया हो