समलैंगिक विवाह के विरुद्ध लगातार सभी जिम्मेदार लोग आवाज उठारहे हैं , CJI को ही नहीं अब तो राष्ट्रपति जी को भी पत्र लिखकर इसका विरोध किया जा रहा है .. पहले महाराष्ट्र के पूर्व DGP ने पत्र लिखा जिसपर १०० से अधिक नौकरशाहों के और १६ जजेस के हस्ताक्षर थे और अब आचार्य शिव मुनि जी ने भी राष्ट्रपति जी को पात्र लिख समलैंगिक विवाह का विरोध किया
जैन आचार्य शिव मुनि ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिख कर इसका विरोध जताया है। उन्होंने माँग की है कि समलैंगिक विवाह को कानून द्वारा मान्यता न दी जाए। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब भारत देश कई समस्याओं से जूझ रहा है, ऐसे विषय पर चर्चा की आवश्यकता ही नहीं है। उन्होंने गरीबी उन्मूलन, सभी तक शिक्षा की पहुँच, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण और जनसंख्या नियंत्रण को मुख्य समस्या करार दिया।
आचार्य जी ने कहा कि ऐसी समस्याओं पर सर्वोच्च न्यायालय ने कोई तत्परता नहीं दिखाई है। उन्होंने भारत को विभिन्न धर्मों, जातियों और उप-जातियों का देश बताते हुए लिखा कि शताब्दियों से जैविक पुरुष एवं जैविक महिला के बीच विवाह की मान्यता रही है, ऐसे में विवाह की संस्था न केवल दो विषम लैंगिकों का मिलन है बल्कि मानव उन्नति से भी संबंधित है। उन्होंने प्राचीन परिभाषाओं का जिक्र करते हुए कहा कि सभी धर्मों में विवाह की यही मान्यता है।
आचार्य जी ने सुप्रीम कोर्ट के पहले के फैसलों का संदर्भ लेते हुए कहा कि समलैंगिकों के अधिकारों को पहले ही संरक्षित किया जा चुका है, समलैंगिक विवाह का मामला मौलिक न होकर वैधानिक अधिकार हो सकता है, लेकिन ये मौलिक अधिकार नहीं है और संसद द्वारा कानून बना कर ही इसे संरक्षित किया जा सकता है। उन्होंने इसे विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत डालने का विरोध करते हुए कहा कि ये महिला-पुरुष के लिए है, ऐसे में इसके हर एक प्रावधान को नए स्वरूपों में परिभाषित करना पड़ेगा।
आचार्य जी ने पत्र में लिखा, “विवाह एक समाजिक/कानूनी संस्था है। अब न तो इसे नष्ट किया जा सकता है और न ही इसका नया स्वरूप बनाया जा सकता है। भारत में विवाह का सभ्यतागत महत्व है और ये एक महान संस्था है जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है। स्वतंत्र भारत में इस पर पश्चिमी प्रथाएँ थोपने का काम किया जा रहा है। लंबित मामले पूरे करने की बजाए काल्पनिक विषय पर सुप्रीम कोर्ट का समय नष्ट किया जा रहा है। ये अनुचित है।”