हिन्दू मंदिरों को सुप्रीम कोर्ट क्यों मलिन करना चाहता है -
दूसरे धर्मों के लोगों को पुरी के जगन्नाथ मंदिर से क्या सरोकार है ?
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रवि कुमार की खंडपीठ ने ओडिशा सरकार से जगन्नाथ मंदिर के लिए 4 नवंबर, 2019 को जारी दिशा निर्देश के अनुपालन पर रिपोर्ट मांगी है जिसमें जगन्नाथ पुरी में सभी धर्मों के लोगों को जाने की अनुमति देते हुए दिशा निर्देश जारी किए थे - अदालत ने प्राचीन मंदिर के प्रबंधन के लिए पूर्णकालिक प्रशासक भी नियुक्त करने को भी कहा था -
अदालत ने 2019 के आदेश एक वकील मृणालिनी पाधी की याचिका पर दिए थे जिसमें उसने मंदिर में मुसलमानों के प्रवेश की अनुमति मांगी थी - अदालत ने कहा था कि "सभी भक्तों के शांतिपूर्ण दर्शन के लिए समुचित व्यवस्था करें और सभी आगंतुकों को मंदिर में 'दर्शन' करने दिया जाए, फिर चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो"
मंदिरों में कौन जाए कौन न जाए, यह अदालत को अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए - पुरी के जगन्नाथ मंदिर के वहां के सेवादारों और प्रबंधन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नाखुशी जताई थी - 12 सदी के इस मंदिर में कितनी ही बार मुगलों ने विध्वंस किया है और गैर हिन्दुओं का प्रवेश वर्जित रहा है -
सबरीमाला मंदिर में भी गैर हिन्दुओं की याचिका कर सुप्रीम कोर्ट ने मासिक धर्म से गुजर रही महिलाओं के प्रवेश को अनुमति दे कर मंदिर की पवित्रता भंग की थी क्योंकि कुछ महिलाओं ने अशोभनीय कार्य किये थे मंदिर में -
आज एक व्यक्ति PIL दायर करता है, चाहे वह हिन्दू है या गैर हिन्दू, उसकी याचिका पर 2 या 3 जज मिल कर 100 करोड़ हिन्दुओं की भावनाओं के साथ संविधान के नाम पर खिलवाड़ कर देते हैं -
जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन के दृष्टिकोण से सबसे बढ़िया है - हमारा सवाल बड़ा सीधा है सुप्रीम कोर्ट के जजों से कि कानून के पहलू आप केवल हिन्दू मंदिरों पर क्यों अमल में लाना चाहते हो - मस्जिद में मुस्लिम अपने ही लोगों को, महिलाओं को और छोटी जाति के लोगों को घुसने नहीं देते, लेकिन आप चाहते हैं मंदिरों में सबको जाने दो -
इस्लाम के अनुयायी तो वैसे भी मूर्तिपूजा नहीं करते, उन्हें मंदिर से क्या मतलब ? - ईसाई भी हिन्दू धर्म को किसी तरह स्वीकार नहीं करते, फिर आप इस सभी को मंदिरों में भेजने के लिए क्यों आमादा हैं - मृणालिनी पाधी खुद मुस्लिम नहीं है, फिर उसकी याचिका क्यों सुनी गई और उस पर आदेश क्यों दिए गए - एक हिन्दू मुस्लिम महिलाओं के मस्जिद में प्रवेश मांगने वाली याचिका दायर नहीं कर सकता पर आप मंदिरों पर यह दृष्टिकोण लागू नहीं करते आप -
पाधी की याचिका पर जस्टिस ए के गोयल और जस्टिस अब्दुल नज़ीर ने कहा था कि - ""Hinduism does not eliminate any other belief. It reflects eternal faith and wisdom and inspiration of centuries" ठीक कहा मीलॉर्ड, मगर हिन्दुओं को ख़त्म करने (eliminate) करने की तो कोशिशें सदियों से हो रही हैं - फिर आप आज उन्हें फिर संकट में क्यों डालना चाहते हो -
आप मंदिर प्रशासक नियुक्त करने की बात कर रहे हैं, कल को उसमे भी Secularism बीच में न आ जाए कि सब धर्मों के लोग प्रशासन में हों - मंदिरों के प्रशासन में मुसलमानों और ईसाइयों को बिठाती हैं राज्य सरकारें जबकि वे लोग मंदिरों में घोटाले करने और मंदिरों को मलिन करने में आगे रहते हैं - केरल में देख सकते हो जहाँ मंदिरों में मॉस, मदिरा का सेवन कराया जा रहा है क्योंकि प्रशासन में गैर हिन्दू बिठा दिए गए हैं
मीलॉर्ड मदिरों पर आर्डर आर्डर करने से पहले यह देख लेना चाहिए था कि Vatican City में एक भी गैर ईसाई नहीं रहता और न रह सकता है - दूसरी तरफ mecca madina में कोई भी गैर मुस्लिम प्रवेश नहीं कर सकता - इसलिए सेकुलरिज्म का ढोल हिन्दुओं के सर पर मत बजाइए -