🙏 वोमेन्स डे के अवशर पर आइये जानते हैं ऐसी महिला- मातृशक्ति को जिसने स्वामिभक्ति, राष्ट्रभक्ति पर अपना शिशु तक बलिदान किया..."माँ पन्ना धाय" की जन्मजयंती पर कोटि कोटि नमन
✊ चितौड़गढ़ को शुरवीरों की भूमि कहा जाता है। यह मेवाड़ की राजधानी भी रहा है। चितौड़गढ़ वह वीर भूमि है, जिसने समूचे भारत में शौर्य, देशभक्ति और बलिदान का अनूठा उदहारण प्रस्तुत किया है। यहाँ के पुरुष के साथ-साथ वीरवती महिलाओं के किस्से भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं। चितौड़गढ़ के इतिहास में जहाँ पद्मिनी के जौहर की अमर गाथायें, मीरा बाई की भक्ति और माधुर्य प्रेम की कहानी है, तो वहीं ‘पन्ना धाय’ जैसी एक मामूली ‘गुर्जर’ स्त्री की ‘स्वामिभक्ति’ की भी कहानी है। जिसने अपने कुलदीपक का बलिदान देकर मेवाड़ के राजवंश की रक्षा की थी। आइए संक्षेप में पढ़ते हैं उस "वीरवती पन्ना धाय" के बारे में जिसका नाम मेवाड़ के गौरवपूर्ण इतिहास में गर्व से लिया जाता है।
● कौन थी पन्ना धाय
पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में एक साधारण परिवार में हुआ था।
👉 राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की।
● अपने बेटे का बलिदान देकर राणा उदयसिंह को बचाया
बात तब की है‚ जब चित्तौड़गढ़ का किला आन्तरिक विरोध व षड्यंत्रों में जल रहा था। मेवाड़ के भावी राणा उदय सिंह किशोरावस्था में थे। तभी उदयसिंह के पिता के चचेरे भाई बनवीर ने एक षड्यन्त्र रच कर उदयसिंह के पिता की हत्या महल में ही करवा दी तथा उदयसिंह को मारने का अवसर ढूंढने लगा। उदयसिंह की माता को संशय हुआ तथा उन्होंने उदय सिंह को अपनी खास दासी व उदय सिंह की धाय पन्ना को सौंप कर कहा कि -“पन्ना, अब यह राजमहल व चित्तौड़ का किला इस लायक नहीं रहा कि मेरे पुत्र तथा मेवाड़ के भावी राणा की रक्षा कर सके‚ तू इसे अपने साथ ले जा‚ और किसी तरह कुम्भलगढ़ भिजवा दे।” दासी पुत्र बनवीर अतिमहत्वकांक्षी था, वो मेवाड़ का शासक बनना चाहता था। इसके बाद उसने राणा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला। बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सूचना मिल गई।
👉 पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उन्होंने उदयसिंह को एक बड़ी-सी बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया। साथ ही बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को कुंवर उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया।बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना धाय ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उनका पुत्र चंदन सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र चंदन को उदयसिंह समझकर मार डाला। किंतु पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र के शरीर को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया।
● कौन थी पन्ना धाय
पन्ना धाय राणा साँगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थीं। पन्ना धाय किसी राजपरिवार की सदस्य नहीं थीं। अपना सर्वस्व स्वामी को अर्पण करने वाली वीरांगना पन्ना धाय का जन्म कमेरी गावँ में एक साधारण परिवार में हुआ था।
👉 राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी। पन्ना का पुत्र चन्दन और राजकुमार उदयसिंह साथ-साथ बड़े हुए थे। उदयसिंह को पन्ना ने अपने पुत्र के समान पाला था। पन्नाधाय ने उदयसिंह की माँ रानी कर्मावती के सामूहिक आत्म बलिदान द्वारा स्वर्गारोहण पर बालक की परवरिश करने का दायित्व संभाला था। पन्ना ने पूरी लगन से बालक की परवरिश और सुरक्षा की।
● अपने बेटे का बलिदान देकर राणा उदयसिंह को बचाया
बात तब की है‚ जब चित्तौड़गढ़ का किला आन्तरिक विरोध व षड्यंत्रों में जल रहा था। मेवाड़ के भावी राणा उदय सिंह किशोरावस्था में थे। तभी उदयसिंह के पिता के चचेरे भाई बनवीर ने एक षड्यन्त्र रच कर उदयसिंह के पिता की हत्या महल में ही करवा दी तथा उदयसिंह को मारने का अवसर ढूंढने लगा। उदयसिंह की माता को संशय हुआ तथा उन्होंने उदय सिंह को अपनी खास दासी व उदय सिंह की धाय पन्ना को सौंप कर कहा कि -“पन्ना, अब यह राजमहल व चित्तौड़ का किला इस लायक नहीं रहा कि मेरे पुत्र तथा मेवाड़ के भावी राणा की रक्षा कर सके‚ तू इसे अपने साथ ले जा‚ और किसी तरह कुम्भलगढ़ भिजवा दे।” दासी पुत्र बनवीर अतिमहत्वकांक्षी था, वो मेवाड़ का शासक बनना चाहता था। इसके बाद उसने राणा के वंशजों को एक-एक कर मार डाला। बनवीर एक रात महाराजा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक विश्वस्त सेवक द्वारा पन्ना धाय को इसकी पूर्व सूचना मिल गई।
👉 पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उदयसिंह को बचाना चाहती थी। उन्होंने उदयसिंह को एक बड़ी-सी बांस की टोकरी में सुलाकर उसे झूठी पत्तलों से ढककर एक विश्वास पात्र सेवक के साथ महल से बाहर भेज दिया। साथ ही बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को कुंवर उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया।बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना धाय ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उनका पुत्र चंदन सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र चंदन को उदयसिंह समझकर मार डाला। किंतु पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र के शरीर को चूमकर राजकुमार को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। स्वामिभक्त वीरांगना पन्ना धन्य हैं! जिसने अपने कर्तव्य-पूर्ति में अपनी आँखों के तारे पुत्र का बलिदान देकर मेवाड़ राजवंश को बचाया।
👉 पुत्र की मृत्यु के बाद पन्ना उदयसिंह को लेकर बहुत दिनों तक सप्ताह शरण के लिए भटकती रही पर दुष्ट बनवीर के खतरे के डर से कई राजकुल जिन्हें पन्ना को आश्रय देना चाहिए था। उन्होंने पन्ना को आश्रय नहीं दिया। पन्ना जगह-जगह राजद्रोहियों से बचती, कतराती तथा स्वामिभक्त प्रतीत होने वाले प्रजाजनों के सामने अपने को ज़ाहिर करती भटकती रही। कुम्भलगढ़ में उसे यह जाने बिना कि उसकी भवितव्यता क्या है शरण मिल गयी। कुंवर उदयसिंह क़िलेदार का भांजा बनकर बड़े हुए। तेरह वर्ष की आयु में मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को अपना राजा स्वीकार कर लिया और उनका राज्याभिषेक कर दिया। इसके बाद उदय सिंह 1542 में मेवाड़ के वैधानिक महाराणा बन गए। इसके बाद उन्होंने 1570 ईस्वी तक मेवाड़ी सत्ता पर सुशोभित थे। जिसके बाद उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप ने सत्ता संभाली जिनके अदम्य साहस के समक्ष मुस्लिम शासक थर-थर कांपते थे।
👉 टिप्पणी : पन्ना धाय का नाम राजपूताना इतिहास के पन्नों पर स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। जब-जब याद किया जाएगा। राजपूती परम्परा को, उसके गौरव को तब तब हमें याद आएगा पन्ना धाय का त्याग, उनकी स्वामीभक्ति और उनका अदम्य साहस भी। विडम्बना ये है कि इतिहास की मोटी-मोटी क़िताबों में कहीं ज़िक्र नहीं है उनके आँसुओं का, न ही जिक्र मिलेगा उनके फौलादी हौसलों का, जो चित्तौड़ के फ़ौलादी किले से ज्यादा अटल थे। कल्पना कीजिए उस माँ की मनोस्थिति क्या रही होगी जब उसके पुत्र की रक्त से लथपथ देह उसके सामने पड़ी थी, लेकिन वो एक आंसू भी नहीं बहा सकी। आंखें मूंदकर सोचिए, आख़िर वह क्षण कैसा रहा होगा, जब पन्ना धाय पर मातृत्व से बढ़कर
सत्ता बचाने का अस्तित्व हावी हो गया। हम नमन करते हैं उस माता को जिसने अपने पुत्र का बलिदान देकर भारतभूमि के हज़ारों पुत्रों को बचा लिया।
_"तू पुण्यमयी,तू धर्ममयी,तू त्यागतपस्या की देवी_
_धरती के सब हीरेपन्ने,तुझ पर वारें पन्ना देवी"_
"तू भारत की सच्ची नारी, बलिदान चढ़ाना सिखा गयी, तू स्वामिधर्म पर, देशधर्म पर, हृदय लुटाना सिखा गयी"
🙏 माँ पन्ना धाय की जन्मजयंती पर कोटि कोटि नमन।
स्त्रीत्व, महिला, नारीशक्ति को समझना है तो ऐसी भारत की महान विभूतियों को समझना होगा। लेकिन वर्तमान स्थिति तो ये है की होलिका, शूर्पनखा, पूतना जैसी रक्षसियों को स्त्री कहा जा रहा है, रावण जैसे राक्षस को ब्राह्मण बताया जा रहा है। शब्दबोध ही खत्म हो चुका है