राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की एक शाखा ‘संवर्धिनी न्यास’ ने बच्चों को मां के गर्भ में ही संस्कार देने के लिए 'गर्भ संस्कार' अभियान शुरू किया है।
इसमें गर्भवती महिलाओं को गीता, रामायण, शिवाजी महाराज और स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन और संघर्ष के बारे में जानकारी देने की बात कही गई है।
गर्भ में भ्रूण करता है जीवन की तैयारी
ब्रिटेन की वेबसाइट ‘बेबी सेंटर’ पर पब्लिश एक रिपोर्ट के मुताबिक, मां का गर्भ बच्चे के लिए सेंसरी प्लेग्राउंड है। 10 हफ्ते का होते ही गर्भ में बच्चा हिलने-डुलने लगता है और अपने नन्हे हाथ-पैरों से अंगड़ाई भी लेता है।
23 हफ्ते का होते ही वह मां की और दूसरी आवाजों पर ध्यान देना शुरू करता है। यहां तक कि मां जो खाना खाती है, उसका स्वाद भी लेता है।
जब कोई बेबी बंप को छूता है तो वह उस पर प्रतिक्रिया भी देता है। यह बताता है कि बच्चा जन्म के बाद अपनी जिंदगी जीने की तैयारी कर रहा है।
ऐसे में अच्छी कहानियां पढ़ना, संगीत सुनना और यहां तक कि अपने बच्चे से बात करने से भी उसका दिमागी विकास बेहतर होता है।
आखिरी के 10 हफ्तों में मां की हर बात सुनता है बच्चा
पैसिफिक लूथरन यूनिवर्सिटी, वॉशिंगटन की एक स्टडी कहती है कि आखिरी के 10 हफ्तों में बच्चा मांं की हर बात सुन सकता है।
बच्चा इस समय मां की हर बात ध्यान से सुनता है। क्योंकि, गर्भ में बच्चे के 30 हफ्ते में ही सेंसरी ऑर्गन (ज्ञानेन्द्रियां) पूरी तरह विकसित हो जाते हैं और सुनने के लिए ब्रेन भी काम करने लगता है।
गर्भ में बच्चा शब्द नहीं, पर आवाज की लय और पैटर्न समझने लगता है
स्टडी में यह भी कहा गया है कि गर्भ में पल रहा बच्चा शब्दों को तो नहीं समझ सकता, मगर आवाज की लय और उसके पैटर्न को जरूर समझता है।
खास बात यह है कि गर्भ में बच्चा भाषाओं में फर्क करना भी जान जाता है। वह मां की मातृभाषा और बाहरी भाषा में इसी लय और पैटर्न के आधार पर आसानी से अंतर कर पाता है।
गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए पहली टीचर है मां
मां गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए टीचर है। अगर मां दो भाषाओं की जानकार है तो बच्चे में भी दोनों भाषाओं की समझ उसके ब्रेन के विकास के साथ पनपने लगती है। जन्म के बाद बच्चा उन भाषाओं को सीखने में ज्यादा सहज हो पाता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन में इंस्टीट्यूट फॉर लर्निंग एंड ब्रेन साइंसेज की सह लेखक पैट्रिशिया कुहल कहती हैं कि मां गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग को प्रभावित करती है। वह जो भी बोलती है, उसका असर भ्रूण के मस्तिष्क पर पड़ता है।
कानों में भरा होता है फ्लूइड, जिससे सुन पाने में सक्षम
अमेरिका की पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर रिक गिलमोर कहते हैं कि बच्चा गर्भ में मां की बॉडी से बाहरी दुनिया की सूचनाएं लेता रहता है।
यूनिवर्सिटी ऑफ साउथ कैरोलिना की एक स्टडी में कहा गया है कि गर्भकाल के 16 हफ्ते में विकसित हो रहा भ्रूण बाहरी दुनिया की आवाजों को ग्रहण करना शुरू कर देता है।
उसके कान एम्ब्रियाॅनिक फ्लूइड से भरे होते हैं, जिससे आवाजें टकराती हैं, वहीं एब्डॉमिनल टिश्यूज ऑडिबल मशीन का काम करते हैं, जिससे बच्चा हल्की आवाजें सुन पाता है।
मां का पसंदीदा टीवी प्रोग्राम, गर्भ से बाहर आने पर बच्चे को भी पसंद
गर्भ में पल रहा बच्चा सबसे पहले मां की हार्टबीट, उसकी सांसें, आवाज, बॉडी में खून की पंपिंग और खाना पचाने की आवाजें और यहां तक कि दुनियाभर की बाहरी आवाजें भी सुनता है।
यही वजह है कि जन्म के बाद बच्चा जब यही आवाजें फिर सुनता है तो वह जरूरत से ज्यादा चौकन्ना हो जाता है। संभव है कि मां गर्भावस्था के दौरान अपना कोई पसंदीदा टीवी प्रोग्राम देखती हो तो जन्म के बाद बच्चे को भी वही प्रोग्राम अच्छा लगने लगे।
कोरिया और फ्रांस में गर्भवती महिलाओं के लिए गजब के रिवाज
कोरिया में गर्भवती महिला को हर दिन 'तैग्यो' करना होता है। इस रिवाज़ में महिला को अपना बर्ताव, अपनी सोच और अपना काम अच्छा रखने को कहा जाता है।
उसे खुश रहने और शांतिपूर्ण तरीके से रहने की सलाह दी जाती है। उसे अच्छा खाना मिलता है। ऐसा माना जाता है कि तैग्यो करने से गर्भ में बच्चे का टैलेंट, पर्सनैलिटी और इंटेलिजेंस निखरेंगे।
वहीं, फ्रांस में गर्भवती मां के लिए 'हैप्टोनॉमी' प्रथा का चलन है। इस प्रथा में मां अपने बेबी बंप पर हाथ फेरते हुए बेबी को अपने स्पर्श से महसूस करने के अहसास से गुजरती है।
इस दौरान मां को यह सोचना होता है कि वह बच्चे को यह अहसास कराए कि वह उसके लिए कितना महत्वपूर्ण है और परिवार का अभिन्न हिस्सा है।
इस प्रथा में यह दावा किया जाता है कि मां को बेबी की पोजिशन और मूवमेंट समझने में मदद मिलती है, ताकि बेबी बर्थ आसानी से हो सके।
वहीं, भारत में बड़े बुजुर्ग घर में गर्भवती महिला को गीता-रामायण या दूसरे धर्म ग्रंथों को पढ़ने या सुनने की सलाह दिया करते हैं।
बेबी प्लान के साथ ही शुरू हो जाता है गर्भ संस्कार?
गायनेकोलॉजिस्ट और जीवा फर्टिलिटी, दिल्ली-NCR की मेडिकल डायरेक्टर डॉ. श्वेता रजनी गोस्वामी कहती हैं कि एग्स और स्पर्म 60 या 90 दिन से पहले से बनने शुरू हो जाते हैं।
इसलिए इन पर मां के खानपान, लाइफस्टाइल, आसपास के वातावरण, पति-पत्नी की सोच सबका असर रहता है।
गर्भ में बच्चे का नहीं बदल सकता DNA, बर्ताव में आ सकता है अंतर
श्वेता कहती हैं कि गर्भ में पलने वाले भ्रूण का बाहरी वातावरण के चलते DNA नहींं बदल सकता। चूंकि भ्रूण का विकास पर जींस पर निर्भर करता है, इसीलिए अगर किसी फैमिली में डायबिटीज की बीमारी है तो वो अगली पीढ़ी को मिल सकती है।
लेकिन जींस या DNA का मूल ढांचा नहीं बदलेगा। हालांकि, शरीर को लेकर उसके डीएनए के व्यवहार में बदलाव जरूर आ सकता है।
इसे एपिजेनेटिक्स (Epigenetics) कहते हैं। यह जटिल विज्ञान है। ऐसा तय नहीं है कि कुछ खास तरीके अपनाने से बच्चे में कुछ खास गुण आएंगे, लेकिन विज्ञान यह मानता है कि रोजमर्रा की जिंदगी में पॉजिटिव बदलाव लाने से अच्छे नतीजे मिलते हैं।
बार्कर हाइपोथीसिस: गर्भ के दौरान मां के खानपान और सोच का असर भ्रूण पर
अगर प्रेग्नेंसी की बात करें तो बार्कर हाइपोथीसिस कहती हैं कि गर्भवती मां जो खा रही है, जो सोच रही है, उसका असर बच्चे के बाद के जीवन पर भी पड़ता है।
प्रेग्नेंट महिला की खुराक का असर बच्चे के वजन और उसकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता पर पड़ता है। अमेरिकी वैज्ञानिक बार्कर ने 1990 के दशक में अपनी रिसर्च में बताया था कि प्रेग्नेंसी के दौरान वातावरण का भी बच्चे पर असर रहता है।
गर्भ में क्या बच्चा 500 शब्द सीख सकता है
डॉ. श्वेता कहती हैं कि गर्भ में बच्चे के सुनने की क्षमता 14 हफ्ते में विकसित हो जाती है। वह आवाज तो सुनता है, मगर शब्द सीख पाता है या नहीं, इस पर शोध अभी बाकी है।
हालांकि, महाभारत की कथा में कहा गया है कि अभिमन्यु ने चक्रव्यूह तोड़ने की कला मां के गर्भ में ही सीख ली थी, जब अर्जुन सुभद्रा को ये कथा सुना रहे थे।
चक्रव्यूह से बाहर निकलने की प्रक्रिया सुभद्रा की आंख लगने की वजह से अभिमन्यु नहीं जान पाया और उसे युद्ध में जान गंवानी पड़ी।
इसी तरह राक्षसों के राजा हिरण्यकशिपु के घर में भक्त प्रह्लाद की कहानी तो आप जानते ही होंगे। उनके बारे में भी यही कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु की पत्नी को नारद मुनि ने भागवत कथा सुनाई थी, जिस वजह से राक्षस के घर में भक्त प्रह्लाद का जन्म हुआ।
महाराष्ट्र में गर्भ संस्कार ऐप के सब्सक्राइबर ज्यादा
‘कृष्णा कमिंग गर्भ संस्कार’ ऐप के फाउंडर प्रोफेसर विपिन जोशी ने वुमन भास्कर को बताया कि ऐप सबक्राइबर्स में देश-विदेश में रहने वाले हिंदू कपल शामिल हैं।
गर्भ में संस्कार देने के लिए सबसे ज्यादा सब्सक्राइबर महाराष्ट्र, यूपी और फिर कर्नाटक से आते हैं।
ऐप पर ‘गर्भ संस्कार’ में दंपती को वैदिक हवन, मंत्रों के पाठ, आध्यात्मिक ग्रंथों का पढ़ना और गर्भवती महिला को रहन-सहन के बारे में बताया जाता है।
न्यूट्रिशनिस्ट गर्भवती महिला को खानपान और परहेज की जानकारी देते हैं। पति-पत्नी की राशि के हिसाब से मंत्रों का जाप करना होता है। भागवत कथा, ऋषि-मुनियों के जीवन के बारे में बताया जाता है ताकि बच्चा भी गुणी पैदा हो।
10 साल पहले इंजीनियर अब संस्कारी बनाना चाहते हैं पेरेंट्स
नए कपल्स कैसी संतान की चाहते रखते हैं? इस सवाल पर विपिन जोशी कहते हैं कि 10 साल पहले पेरेंट्स बोलते थे कि मेरे बच्चे को ‘आईआईटियन’ बना दो।
लेकिन अब दंपती कहते हैं कि बेटा ‘आईआईटियन’ बने या न बने, वो बुरी चीजों से दूर रहे। बस सही राह पर चले और माता-पिता की सेवा करे। लोग पुराने मूल्यों की तरफ लौट रहे हैं। आजकल के पेरेंट्स संस्कारी बच्चा चाहते हैं।
सामवेद के मंत्र, कल्याणी राग और वीणा-वायलिन का असर संभव
प्राचीन भारतीय चिकित्सा शास्त्रों के मुताबिक, सामवेद के मंत्र और आत्म संस्कार शतकम जैसे संगीत मां को मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से प्रसव के लिए तैयार करने में मददगार होते हैं।
कल्याणी जैसे शांत राग गर्भ में बच्चे को सजग बनाने में सहायक हो सकते हैं। इससे गर्भवती महिला और बच्चे की मानसिक सक्रियता और सुनने की क्षमता पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
वीणा, वायलिन और बांसुरी की धुनें सुनने से मां को सुकून मिलेगा और यह अजन्मे बच्चे के लिए भी शांत वातावरण तैयार करने में सहायक होगा।