सोमवार 13 मार्च 2023 को सुप्रीम कोर्ट में होगी समलैंगिक विवाह को सुनवाई, यदि आप चाहते हैं की ऐसी विनाशकारी कुरीति हमारी भारतीय संस्कृति में ना आने पाए तो हर सनातनी को इसका विरोध करना अनिवार्य है। वैसे ही एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर, लिव इन रिलेशनशिप जैसी गंदगियां समाज को बर्बाद कर रही हैं
वैसे केंद्र सरकार ने समलैंगिक शादी का विरोध किया है। समलैंगिक शादी के खिलाफ केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया है। दरअसल, कोर्ट में सेम सेक्स मैरेज को मान्यता देने की मांग को लेकर जनहित याचिकाएं डाली गई हैं।
समलैंगिकों की शादी को मान्यता देने की याचिका का सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने विरोध किया है। केंद्र ने कहा कि सेम सेक्स मैरेज को वैध करार नहीं दिया जा सकता है और याचिकाकर्ता इसे मौलिक अधिकार के तौर पर दावा नहीं कर सकते हैं। समलैंगिक की शादी को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की गई थी जिस पर सोमवार को सुनवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने 25 नवंबर को समलैंगिक की शादी को कानूनी मान्यता देने की गुहार वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले में अटॉर्नी जनरल से भी जवाब मांगा था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में दो पीआईएल गे कपल की तरफ से दाखिल की गई है। इनमें गुहार लगाई गई है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत समलैंगिक की शादी को मान्यता दी जाए।
केंद्र ने दाखिल किया है हलफनामा
केंद्र सरकार ने कहा है कि सहमति से अप्राकृतिक यौन संबंध के मामले को अपराध की श्रेणी से बाहर किए जाने के बावजूद याचिकाकर्ता होमो सेक्सुअल की शादी को मान्यता देने के लिए दावा नहीं कर सकते हैं। मौलिक अधिकार के आधार पर यह दावा नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार ने इस मामले में हलफनामा दायर किया है और याचिका का विरोध किया है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा है कि शादी की जो अवधारणा है उसके तहत यह जरूरी है कि दो लोगों के बीच मिलन होता है जो अलग-अलग लिंग के होते हैं और यह परिभाषा सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी तौर पर मान्य है। इस सिद्धांत को किसी भी तरह से न्यायिक व्याख्या से हल्का या कमजोर नहीं किया जा सकता है। मौजूदा मामले में याचिकाकर्ता ने जो गुहार लगाई है वह टिकने वाला नहीं है और उसमें दम नहीं है। सभी धर्म के पर्सनल लॉ हैं और उसमें तमाम नियम हैं। हिंदू में मिताक्षरा और दायभाग सिद्धांत है वहीं अन्य धर्म के अलग-अलग पर्सनल लॉ हैं। हिंदू में जहां शादी एक पवित्र बंधन है, वहीं मुस्लिम पर्सनल लॉ में यह कॉन्ट्रैक्ट है। लेकिन यहां भी परिकल्पित है कि जोड़े में एक पुरुष और दूसरी स्त्री होगी। मौजूदा मामले में दाखिल रिट को स्वीकार नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह पूरे विधायी पॉलिसी को चेंज कर देगा।
केंद्र ने अपने हलफनामे में कहा है कि धारा-377 के तहत अप्राकृतिक संबंध के मामले में सहमति से ऐसे बनाए गए संबंध को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया है लेकिन याचिकाकर्ता समलैंगिक की शादी को मान्यता देने का दावा नहीं कर सकता है। संसद ने शादी के लिए कानून बना रखे हैं और वह पर्सनल लॉ के तहत होता है। केंद्र ने कहा कि समलैंगिक साथ में रहते हैं लेकिन उसकी तुलना भारतीय परिवार से नहीं की जा सकती है जिसमें एक पति होता है, दूसरी पत्नी होती है और उनकी शादी के उपरांत पैदा हुए बच्चे होते हैं। दो विपरीत लिंग के लोगों के बीच शादी की मान्यता के लिए एक तर्क है। नवतेज सिंह जोहर जजमेंट में होमो सेक्सुअल रिलेशनशिप को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया लेकिन उस आधार पर होमो सेक्सुअल के रिलेशनशिप को शादी और उस शादी को मान्यता देने का दावा नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र ने कहा है कि इस मामले में कोई भी मौलिक अधिकार का हनन नहीं होता है। समलैंगिक की शादी की मान्यता न देने से मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है। केंद्र ने हलफनामा में कहा है कि याचिका में मेरिट नहीं है और उसे खारिज किया जाए।
क्या है गे कपल की याचिका
सुप्रीम कोर्ट में गे कपल (समलैंगिक पुरुषों) ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि होमो सेक्सुअल की शादी को स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत मान्यता दी जाए। याचिकाकर्ता सुप्रियो चक्रवर्ती और अभय डांग की ओर से कहा गया है कि वे 10 साल से कपल की तरह रह रहे हैं। दोनों को कोविड के दूसरे चरण में कोविड हुआ था। दोनों ठीक हो गए। दोनों ने तय किया है कि वह शादी सेरेमनी करें। अपने रिलेशनशिप की 9 वीं सालगिरह के मौके पर वह शादी सेरेमनी चाहते हैं। दिसंबर 2021 में प्रतिबद्धता सेरेमनी उन्होंने किया था। उनके रिलेशनशिप को उनके पैरेंट्स का आशीर्वाद हासिल है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट लिंग के आधार पर भेदभाव करता है और यह गैरसंवैधानिक है। इस ऐक्ट के मुताबिक समलैंगिक के संबंध और शादी को मान्यता नहीं है। याचिकाकर्ता ने कहा है कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट हमेशा अंतरजातीय और अंतर धर्म की शादी को प्रोटेक्ट किया है। अपनी पसंद की शादी हर आदमी का अधिकार है। संवैधानिक विकास के रास्ते में समलैंगिक की शादी भी एक सतत प्रक्रिया है। नवतेज सिंह जोहर से संबंधित केस और पुत्तुस्वामी केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एलजीबीटीक्यू (लेस्बियन, गे, बाइ सेक्सुअल और ट्रांसजेंडर) शख्स को समानता का अधिकार है और साथ ही उन्हें गरिमा के साथ जीने और निजता का अधिकार है। अपनी पसंद की शादी का जो अधिकार है वह एलजीबीटीक्यू को भी दिया जाना चाहिए। स्पेशल मैरिज ऐक्ट के तहत एलजीबीटीक्यू की शादी की मान्यता से संबंधित 9 याचिका अलग-अलग हाई कोर्ट में पेंडिंग हैं।
सुप्रीम कोर्ट में दूसरी याचिका
सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य याचिका भी इससे संबंधित दाखिल की गई है जिसमें एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के लोगों की शादी की मान्यता को लेकर गुहार लगाई गई है और कहा गया है कि हर इंसान को पसंद की शादी का अधिकार है। इस याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा है कि स्पेशल मैरिज ऐक्ट एक सेक्युलर कानून है जिसमें दो अलग-अलग धर्म के लोगों को बिना धर्म बदले शादी का अधिकार है इसे जेंडर न्यूट्रल भी किया जाना चाहिए। याची ने कहा कि शादी का अधिकार हर शख्स का अधिकार है और अपनी पसंद से शादी का अधिकार मौलिक अधिकार है और इस तरह से देखा जाए तो एलजीबीटीक्यू को शादी की इजाजत न दिया जाना मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता पार्थ और उदय राज 17 साल से रिलेशनशिप में हैं। उनके पास दो बच्चे भी हैं लेकिन वह कानूनी तौर पर शादी नहीं कर सकते हैं। ऐसे में कपल का बच्चों के साथ कानूनी पैरेंट्स का हक नहीं मिल रहा है। याचिकाकर्ता ने कहा कि नवतेज सिंह जोहर केस में समलैंगिकता को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दे दी थी और उसे अपराध से बाहर कर दिया था।
याचिकाओं में धारा-377 और निजता के अधिकार के जजमेंट का जिक्र
धारा-377 के तहत सहमति से अप्राकृतिक संबंध को अपराध के दायरे से बाहर किया जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2018 को समलैंगिकता मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। फैसले के बाद बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिकत संबंध अपराध की श्रेणी से बाहर हो गए। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि धारा-377 के तहत दो बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध अपराध नहीं है। इस प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने गैर संवैधानिक करार दिया था और इसे समानता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन बताया। बालिगों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध को धारा-377 के तहत अपराध मानना अतार्किक और साफ तौर पर मानमाना प्रावधान है।
निजता के अधिकार के जजमेंट से ही समलैंगिकता को अपराध से बाहर रखने का रास्ता बना
सुप्रीम कोर्ट ने पांच साल पहले निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार माना था और उस जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सेक्सुअल ओरिएंटेशन निजता का महत्वपूर्ण अंग है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 24 अगस्त 2017 को ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है। निजता के मूल में व्यक्तिगत घनिष्ठता, पारिवारिक जीवन, शादी, प्रजनन, घर, सेक्सुअल ओरिएंटेशन सबकुछ है। साथ ही प्राइवेसी व्यक्तिगत स्वायत्ता की सेफगार्ड है जो किसी की जिंदगी में महत्वपूर्ण रोल रखता है।
क्या है स्पेशल मैरिज ऐक्ट
स्पेशल मैरिज ऐक्ट 1954 के तहत शादी के प्रावधान के मुताबिक लड़का और लड़की बालिग होने चाहिए। दोनों शादी करने की योग्यता रखते हों और किसी भी धर्म के हो सकते हैं। यानी लड़का और लड़की अगर अलग-अलग धर्म के हैं तो उन्हें शादी करने के लिए अपने धर्म को बदलने की जरूरत नहीं है बल्कि अलग-अलग धर्म में रहते हुए वह शादी कर सकते हैं और अपने धर्म पर कायम रख सकते हैं। लड़की की उम्र कम से कम 18 साल और लड़के की उम्र कम से कम 21 साल होना चाहिए और दोनों शादी की योग्यता रखते हों। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में स्पेशल मैरिज ऐक्ट को जेंडर न्यूट्रल किए जाने की गुहार लगाई गई है।