. #शुभ_रात्रि
सनातन परंपरा के अनुसार एक व्यक्ति ईश्वर को ज्ञान, कर्म और भक्ति के कई मार्गों द्वारा पाने का प्रयास करता है लेकिन इनमें भक्ति सर्वश्रेष्ठ है। ईश्वर की भक्ति या फिर कहें उसकी साधना का सरल, सुगम और सुंदर माध्यम है कीर्तन। देवी-देवताओं के लिए किए जाने वाले इस कीर्तन से तन-मन और धन से जुड़ी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और सुख-सौभाग्य और समृद्धि प्राप्त होती है। जब हम अपने आराध्य के नाम का जप करते हैं तो इसका प्रभाव सामान्य होता है, वहीं कीर्तन के दौरान श्रद्धा भक्ति की पराकाष्ठा के साथ किए जाने वाले मंत्र या भजन गायन या जप से उस पर ईश्वर की अद्भुत कृपा बरसती है। जहां पर कीर्तन होता है, वहां पर ईश्वर का वास रहता है। मान्यता है कि कीर्तन जितने अधिक लोगों के साथ और जितनी देर तक किया जाए, उतना ही प्रभावशाली होता है।
कीर्तन को नादयोग का एक अंग माना जाता है, जिसमें ध्वनि तरंगें उत्पन्न कर चेतनतापूर्वक उसका अनुसरण करते हैं। कीर्तन द्वारा आप स्वयं को शरीर तथा बाह्य वातावरण से दूर ले जा सकते हैं। इसके अभ्यास से मानसिक जड़ता नहीं संवेदना घनीभूत होती है। सामान्य तौर पर किसी शब्द को दोहराने से मन की कमजोरी जाहिर होती है पर जब आप कीर्तन करते है तब आपके मन से संघर्ष नहीं होता।
कीर्तन की कुछ धुनें सीखकर समूह में उनका अभ्यास कीजिए। कीर्तन को प्रभावी बनाने के लिए हारमोनियम, मृदंग और मंजीरों का उपयोग करना चाहिए। इन वाद्यों के साथ अपने हृदय पक्ष और श्रद्धा का संपुट भी कीजिए। *कीर्तन के द्वारा आप स्वयं को कुंठाओं से मुक्त कर सकते हैं। याद रखिए, कीर्तन कोई बौद्धिक योग नहीं है। कीर्तन में उत्पन्न हर ध्वनि तरंग आपकी चेतना की गहराई में उतरती है। बुद्धिजीवी कीर्तन को यदि बुद्धि के माध्यम से समझने की कोशिश करें तो संभवत: उनके पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा, क्योंकि कीर्तन का प्रयोजन व्यक्ति के भावनात्मक पक्ष को छूना है।*
यद्यपि भावनाओं को न तो समुचित ढंग से समझा जाता है और न ही उनका उपयोग किया जाता है, तथापि उन्हें व्यक्ति के हाथ में अत्यंत प्रभावी उपकरण माना जाता है। बुद्धि के द्वारा आप कभी भी चेतना की गहराई में नहीं उतर सकते और न ही उसे पकड़ सकते हैं। हां बुद्धि के द्वारा ब्रह्म, जगत, सत्य आदि की सैद्धांतिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। परंतु इनका अनुभव कदापि नहीं कर सकते।
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