यह भी देखा जाता है कि ईमानदार, विश्वासपात्र और सच्चरित्र व्यक्तियों की सन्तानें कभी बेईमान, धोखेबाज और चरित्रहीन निकल जाती हैं। यह भी इसलिए कि माताएँ तथा परिवार में रहने वाली स्त्रियाँ बच्चों के प्रति विशेष रूप से सावधानियाँ नहीं रखतीं तथा कई भूलें और त्रुटियाँ कर डालती हैं, जिनका प्रभाव बच्चों पर पड़ता है।
गृहिणी को गृह लक्ष्मी के सम्मानजनक विशेषण से सम्बोधित किया गया है, जिसका अर्थ है- वह नैतिक दृष्टि से सुदृढ़ और स्वभाव की दृष्टि से देवी है। मधुरता तथा सद्भाव का अमृत उसमें बहता रहता है, जिसके द्वारा वह घर के अशान्त सदस्यों को धैर्य बँधाती, दिशा बताती और प्रेरणा देती है तथा परिवार - संस्था की नींव भी मजबूत बनाती है। परिवार में सुख-शान्ति का आधार उसके सदस्यों में रहने वाला स्नेह, सहयोग और सद्भाव है। घर में इसी से स्वर्गीय वातावरण का सृजन होता है। इसलिए गृहिणी को इसके लिए विशेष रूप से प्रयत्नशील रहना चाहिए । परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे की सुविधा का ध्यान रखें, परस्पर आदर सम्मान करें, एक दूसरे का सहयोग करें और स्नेह, सद्भाव तथा आत्मीयता, उदारता भरें। इसके लिए प्रेरणायें भरने का काम भी स्त्री ही अधिक कुशलतापूर्वक कर सकती है।
आमतौर से परिवार - भर के दोष- दुर्गुणों का दुःखदायी प्रभाव नारी अपने ऊपर सहती है। यह सहनशीलता तारीफ करने योग्य तो है, किन्तु इतना भर काफी नहीं । दुर्गुण और दुर्भाग्य जहाँ के तहाँ बने रहेंगे तो आपस का सहयोग बन ही नहीं पड़ेगा। स्नेह - सौजन्य का खाद पानी पाये बिना उस छोटे बगीचे का कोई भी पौधा पूरी तरह विकास पा ही नहीं सकता।
परिवार के सदस्यों की सच्ची सेवा उन्हें सद्गुणी और स्वावलम्बी बनाने में है। बाप-दादों की छोड़ी सम्पदा से ब्याज भाड़े पर गुजारा करने वाली सन्तान भले ही आराम के साथ दिन काट ले पर उसकी प्रतिभा का स्तर लुंजपुंज ही रहेगा। जिसने कठोर कर्मक्षेत्र में उतरकर भुजबल और मनोबल को चरितार्थ करने का अवसर नहीं पाया उसे एक प्रकार से अपंग ही कहना चाहिए । पूर्वजों की कमाई पर गुजर करने वाली सन्तान को पराक्रम की कसौटी पर कसते हुए अपंग ही घोषित करना पड़ेगा।
. 🚩जय जगदम्बे 🚩