. #शुभ_रात्रि
श्रद्धा- सम्मान, विनम्रता, सौजन्य, सन्तुलन जैसे सद्गुणों के प्रशिक्षण का सर्वाधिक उपयुक्त स्थल संयुक्त परिवार ही है। बड़ों के प्रति श्रद्धा की अभिव्यक्ति, छोटों के प्रति प्यार दुलार की मधुरता, शील- संकोच, कब खुलकर बात करना, कब चुप रहना, कैसे- क्यों कहना, मनोरंजन आदि के समय भी कैसे मर्यादा बनाये रखना, ये सब संयुक्त परिवार में दैनन्दिन जीवन में ही स्वभाव का अंग बनते जाते हैं। अपनी आवश्यकताएँ दूसरों के तारतम्य के अनुसार मर्यादित करना, दूसरों के अंश का भी ध्यान रखना, दूसरों के लिये त्याग की तत्परता जैसे अमूल्य सद्गुण संयुक्त परिवार में ही स्वाभाविकता से सीखे जाते हैं। पति-पत्नी, बच्चों वाले परिवार में बच्चों को श्रेष्ठ गुण सीखने के अवसर कम ही मिलते हैं। उन्हें लेना ही लेना आता है, देने की त्याग की वृत्ति का उनका नियमित प्रशिक्षण नहीं हो पाता। यह भावनात्मक प्रशिक्षण संयुक्त परिवार प्रथा की सबसे बड़ी विशेषता है। श्रमशीलता, सहयोग, आत्मानुशासन, मितव्ययिता जैसे प्रगति के लिये आवश्यक गुणों का विकास पारिवारिक भावना की स्वाभाविक निष्पत्ति है। शिष्टाचार, वाक्- संयम, आवेग - आवेश पर नियन्त्रण का अभ्यास परिवार के वातावरण में अनायास होता चलता है।
साथ- साथ रहने पर कई तरह की बचत होती है। चार भाई अलग रहकर चार चुल्हे जलायेंगे। चार कमरे, चार उपकरण, चार अलग- अलग व्यवस्थाएँ जुटानी होंगी। यही बात प्रकाश, साज- सामान आदि पर लागू होती है। साथ रहने पर कम खर्च आता है। आमोद-प्रमोद के साधनों में तो अच्छी खासी बचत हो जाती है। एक रेडियो, एक अखबार, सम्मिलित पुस्तकालय से सबका काम चल जाता है। बच्चों की पुस्तकें भी एक दूसरे के काम आ जाती हैं। एक ही कक्षा के बच्चे किताबों के एक सेट से काम चला लेते हैं। इसी प्रकार अनेक मदों में बचत होती रहती है। छोटी- छोटी बचत ही कुल मिलाकर बड़ा रूप ले लेती है और ठोस लाभ का आधार बन जाती है। अपनी पत्नी- बच्चों को लेकर अलग परिवार बसा लेने वालों को रोग- विपत्ति, प्रसव- काल तथा बच्चों के लालन पालन के समय आटा दाल का भाव मालूम पड़ता है। ऐसे परिवार में पति या पत्नी अथवा छोटे बच्चे में एक से अधिक बीमार पड़ा, तो सारा कामकाज अव्यवस्थित होने लगता है। पत्नी रोग शय्या पर है तो घर और बच्चे की व्यवस्था सम्हालने के लिये पति अवकाश ले और खीझता- झन्नाता जैसे-तैसे काम निपटाए । घर का काम ही इतना हो जाता है कि रोगी की समुचित सुश्रुषा, देखभाल नहीं हो पाती और उसके अच्छा होने में अधिक समय लगता है। माता-पिता, भाई- बहन के साथ रहने पर, एक-दो व्यक्तियों की बीमारी से उनकी परिचर्या समान्य क्रम में ही होती रहती है, किसी एक को पूरे समय खपना नहीं पड़ता। घर में कोई अस्त व्यस्तता नहीं आती।
. *🚩जय मां काली 🚩*